ऐसे मुखर का मौन हो जाना…
आशीष दशोत्तर
यह तस्वीर एक दिन दिखाते हुए वे बोले, देखो किसी प्रोफेशनल फोटोग्राफर की तरह लगता हूँ कि नहीं..? मैंने कहा, तस्वीर से तो बिल्कुल लग रहे हैं । वे कहने लगे मुझे फोटोग्राफी का भी बड़ा शौक है। बस अब नौकरी के बचे हुए कुछ साल गुज़ार लूं , उसके बाद खूब घूमूँगा। जगह-जगह की सैर करना, अच्छे लोगों से मिलना, अपने लोगों से बतियाना, सुंदर नज़ारों को क़ैद करना… ऐसे ही जिंदगी का आनंद लेंगे। यह कहते हुए चित-परिचित शैली में वे मुस्कुराने लगे। किसे पता था कि ऐसा कुछ होने वाला है जो उनकी तमन्नाओं को खत्म कर देगा।
श्री अकील खान ……। इस नाम के साथ कई सारी यादें जुड़ी है ।कई सारी बातें जुड़ी है। कई सारे मंजर भी जुड़ें हैं। आज कोरोना से लड़ाई लड़ते हुए यह मुस्कुराता हुआ चेहरा खामोश हो गया। उनकी मुखरता मौन में तब्दील हो गई।
अभी दो-एक माह पहले की बात है जब उन्होंने स्वेच्छा से जनजातीय कार्य विभाग के सहायक संचालक का प्रभार छोड़ दिया था। एक दिन कहने लगे, अब बहुत भागदौड़ कर ली। सोचता हूं अपनी संस्था में आराम से नौकरी करूँ और परिवार को पूरा समय दूं । वे शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय बाजना प्राचार्य थे। उनकी इच्छा थी कि अब अपनी संस्था में रहकर ही बच्चों के लिए कुछ रचनात्मक प्रयास किए जाएं। वे जहां-जहां पदस्थ रहे उन्होंने विद्यार्थियों के लिए बेहतरीन कार्य किए।
पिपलोदा में जब दिव्यांग संस्था का प्रभार उन्हें मिला तो उन्होंने एक दिन फोन किया , आशीष । इन बच्चों के लिए एक संगीत का प्रोग्राम करना है..और देखते ही देखते उन्होंने वहां एक बेहतरीन संगीत का प्रोग्राम आयोजित कर दिया। अभी एक दिन कहने लगे , यार बड़ी इच्छा है, कुछ अच्छी शायरी सुनी जाए। तुम ऐसा करो अपने शायर साथियों को एक दिन बुलाओ । अपन कहीं अच्छा सी नशिस्त रखते हैं। ऐसी कई खूबसूरत ख़यालों को अपने दिल में बसाने वाले श्री अकील खान साहब का व्यक्तित्व कई सारी खूबियों से मिलकर बना था।
ऐसे खुशमिजाज व्यक्तित्व का जाना यकीनन रिक्तता पैदा कर देता है। अल्लाह उन्हें जन्नतुल फिरदौस अता करें… खिराज़े-अक़ीदत…।