कुकुरमुत्ता का मशरूम हो जाना
संजय भट्ट
शब्द जब खामोशी धारण कर लें तो मौन मुखर होकर बोलने लगता है, लेकिन इसे समझ पाना सभी के बस की बात नहीं होती। वक्त का नियम है बदलते रहना, इसलिए इसे हमेशा ही बदलने देना चाहिए। वैसे हर कुकुरमुत्ता की चाहत होती है कि वह मशरूम हो जाए, लेकिन ये कुछ के ही भाग्य में होता है। कुछ कुकुरमुत्ते बरसात में उगते हैं और बस बरसात के बाद खतम हो जाते हैं, लेकिन कुछ पाॅली हाउस में उगते हैं, कुछ मेहनत की खेती से उगाए जाते हैं और वही मशरूम हो जाते है। किसको पता था कि हर छोटी बड़ी जगह बरसात में उगने वाला कुकुरमुत्ता भी कभी मशरूम हो जाएगा तथा फाईव स्टार हाॅटल के साथ ही बड़े घरानों के किचन की शोभा बढ़ाएगा।
वैसे जगह का अपना महत्व होता है, हर कहीं उग आए तो कुकुरमुत्ता और पाॅली हाउस या खेत में उगाया जाए तो मशरूम। कोई बच्चों के खेल का साधन तो कोई किचन की शान। जिन्दगी का फलसफा भी कुछ इसी तरह का है। हर आदमी की अपनी अहमियत है, लेकिन कोई समाज में पूजनीय और वंदनीय हो जाता है तो कोई दयनीय हो जाता है। कुकुरमुत्ता का मशरूम हो जाना और आदमी का वंदनीय या दयनीय हो जाना रहट की तरह है। जो उपर भी जाता है, नीचे भी आता है और सवारी बैठाने के दौरान काफी देर तक बीच में ही अटका भी रह जाता है। जब रहट उपर जाता है तो भय मिश्रित आनंद की अनुभूति देता है, लेकिन जब नीचे आने लगता है तो सिर्फ भय का अनुभव होता है।
जिन्दगी में कोई भी लम्बे समय तक कुकुरमुत्ता बन कर नहीं रहना चाहता सभी के मन की भावना होती है वह मशरूम हो जाए। रहट का खेल और हवा का मेल किसी को भी हमेशा उपर की ओर नहीं रखता। इसी उपर नीचे के समामेलन में रहट का समय खतम हो जाता है।
इसी तरह सफलता-असफलता और जिन्दगी जीवन तमाम हो जाता है। लालसा, इच्छा और मनोभिलाषा व्यक्ति को कभी शांत नहीं बैठने देती। हर समय प्रेरित करती है कि वह कुछ करे। इसी करने न करने के चक्कर में कभी ठीक तो कभी गलत भी हो जाता है। जब वह सफलता के शिखर पर होता है तो लगता है कि उसके अलावा कोई भी नहीं है, दुनिया में जो भी है बस वही हैैैै। खुद के सामने सारा जगत उसे महत्वहीन लगने लगता है। ऐसा हमेशा कभी धन, बल या पद के कारण होता है।
जैसे जैसे कुकुरमुत्ता मशरूम होने लगता है, उससे समाज की अपेक्षाएं भी बढ़ जाती है। हर कोई चाहता है कि उसकी थाली की शान बने उसके स्वाद का हिस्सा बने, लेकिन न तो यह मशरूम के बस में होता है और न ही उस गरीब के बस। यहाॅं मशरूम का उॅंचा होना आड़े आ जाता है। वह भूल जाता है कि वह भी कभी कुकुरमुत्ता हुआ करता था। व्यवहार में इसी बदलाव के कारण वह मशरूम असफलताओं की ओर बढ़ने लगता है, जैसे रहट का समय समाप्त होने के साथ ही वह गति धीमी कर नीचे की ओर आने लगता है और अपनी सवारियों को उतार कर दूसरी सवारियों को बैठाने का इंतजार करता है।
अक्सर फलों से लदे वृक्षों को पत्थर खाने के आदत हो जाती है। वह पत्थर की मार खा कर भी मारने वाले को अपने फल देता है, लेकिन कभी-कभी उसकी छाया में बैठे हुए को भी उसके पके हुए खट्टे मीठे फलों का आनंद मिल जाता है। अब यह फल न्युटन को मिले तो विज्ञान का नियम और शबरी को मिले तो भगवान का प्रसाद हो जाता है। कई के पत्थर तो दूसरों के सिर भी फोड़ देते हैं और फल ही नहीं मिलता।
बदलते समय, बदलते समाज और बदले हालातों में सभी का रवैया भी बदल रहा है। अब लोगों को मशरूम और कुकुरमुत्तों का अंतर भी पता चलने लगा है। उपयोग और जरूरत के हिसाब से किचन की शान तथा सड़क किनारे उगने का मतलब निकालने लगे हैं। उपर जाते रहट को हरसत भरी निगाह से देखते हैं तो नीचे आते हुए से दूर भागने लगते हैं। फिर भूल जाते हैं कि कभी भी कुकुरमुत्ता से मशरूम और कड़वा होने पर मशरूम से कुकुरमुत्ता होते देर नहीं लगती।
संजय भट्ट