वर्तमान समय में स्वतंत्रता का नया वर्जन ‘परतंत्रता..?’
परतंत्रता..?
उमा त्रिवेदी
क्या हें..
परतंत्रता…?
मौन संस्कार..
प्राचीन धरोहर..
अपनो की घृणा,
जीत जलन की..
या
नीम सी..
कड़वाहट…?
अपनों की तलाश
परायों का कटू स्वर…?
अखंड संकीर्ण
सकुचाती ..
ये रूढ़िवादिता,,
परम्परागत एक चुप्पी..
पिजरबदध मनोवृत्ति..
रूदन सलाखों..
और
इन खामोश बैडियों का,
पता करो…?
कैसी नकली जिंदगी…
डरी-डरी सहमी सी,
निष्ठुर घात..
जीवन एक कैद..
खौफ अन्तर-मन का
दबे हुए अल्फाजों से
वार पर अज्ञात है
ग्लानि स्वतंत्रता की,,
शरमाता प्रजातन्त्र,
हर प्यासा दुखित मन
दिन हो..
या फिर रात,
कुचलते आघात….
ईमान-सच्चाई से परे,
पेबन्द हजारों लगे..
स्वयं औरों से..
बढ़ता आक्रोश…?
ध्वस्त कर दो…
या,
निर्माण…..।।
उमा त्रिवेदी