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पंजों पर खड़े  होकर, कद बड़े नहीं होते

 डॉ. प्रकाश उपाध्याय

पंजों  पर  खड़े  होकर,  कद  बड़े नहीं  होते
कामयाबी के खज़ाने, पैरों तले गड़े नहीं होते

लिखते नज़र आते हैं, जो रोशनी की इबारत
वो अँधेरों  की  खिलाफत  में, खड़े नहीं होते

जो  घूमते  हैं  अक्सर, सीने  पर लिये  तमगे
वो  ज़िदगी की जंग, कभी भी लड़े नहीं होते

उठा पाते  हैं  सिर्फ  वे ही, लुत्फ़ ज़िंदगी  का
जो कदम दर कदम अहम  में,अड़े  नहीं होते

तज़ुर्बों  के  समंदर  में गहरे, डूबना पड़ता  है
नसीहतों  के  मोती,  सरेराह  पड़े  नहीं  होते

मुमकिन नहीं ख्वाबों का, हकीकत में बदलना
ग़र  दिल में  जुनून  और  इरादे कड़े नहीं होते

 डॉ. प्रकाश उपाध्याय

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