…और भारत से इतनी मदद के बाद भी इस्लामिक अफगान सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया तालिबान के सामने
🔲 डॉ. रत्नदीप निगम
सोवियत रूस ने अरबों रूबल खर्च किए अफगान समाज के विकास के लिए। अमेरिका ने 100 अरब डॉलर खर्चे किए अफगान की सुरक्षा के लिए। भारत ने 3 अरब डॉलर की मदद के साथ परिवहन के लिए 1500 बसें, पानी के लिए 4 बाँध , बिजली उत्पादन के लिए 6 पॉवर प्लांट, हज़ारों किलोमीटर की सड़कों का निर्माण , 100 से अधिक हॉस्पिटल का निर्माण और उसके लिए डॉक्टरों एवं नर्सिंग स्टॉफ की व्यवस्था जैसे कई सुविधाएं भारत ने अफगान समाज को उपलब्ध करवाई। 3 लाख अफगान सैनिकों को आधुनिक हथियार से सुसज्जित करना, प्रशिक्षण देना और उनको वेतन देने का कार्य अमेरिका ने किया ।
इसके बावजूद भी इस्लामिक अफगान सेना और अफगान समाज ने तालिबान के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इससे सिद्ध होता है कि कोई कितनी भी सुविधा इन इस्लामिक समाज को दे दी जाए लेकिन ये मजहबी कट्टरपंथ को ही स्वीकार करेंगे। अमेरिका ने इसको समझ लिया इसलिए उसने अफगान इस्लामिक समाज को अपने करदाताओं का पैसा अब और नहीं देने का फैसला करते हुए वापस लौटना पसंद किया। उनके वापस लौटते ही परिणाम सामने है।
वे जरा करें चिंतन
यही परिस्थिति भारत में कश्मीर में है। हमारे द्वारा चुकाए गए करों से भारत सरकार ने खरबों रुपये कश्मीर घाटी में कश्मीर के इस्लामिक समाज के लिए , वहाँ के विकास के लिए, कश्मीर की सुरक्षा के लिए खर्च किए। हमारे देश के हजारों सैनिकों ने बलिदान दिया। उसका भी परिणाम अफगानिस्तान की तरह ही मिला। भारत के झण्डे को फहराने से मना करने से लेकर जलाने तक, सैनिकों पर पत्थरबाजी से लेकर कश्मीर में खून खराबे की धमकी तक , कश्मीरी हिंदुओं को निकालने से लेकर भारत के नागरिकों को सम्पति खरीदने के अधिकार नहीं देने तक, कश्मीर के लिए अलग वजीर ए आजम बनाने से लेकर भारत के नागरिकों के प्रवेश के लिए परमिट लेने तक ऐसे कई घटनाक्रम है जो कश्मीर घाटी के इस्लामिक समाज और अफगान समाज मे समानता दर्शाते हैं। इसलिए हिंदू मुस्लिम करने को लेकर जो पाखण्डी, देश के हिन्दू समाज और हिन्दू संगठनों को उपदेश देते रहते हैं। वे जरा चिंतन करें कि अफगान समाज और कश्मीर घाटी के समाज ने क्या किया और क्यों किया?