जब विदेश यात्रा से हरिवंश राय बच्चन इलाहाबाद लौटे तो उनके सम्मान में विश्वविद्यालय में हुआ कवि सम्मेलन
वरिष्ठ भाषाविद्, कवि,चिंतक डॉ. जयकुमार जलज का 2 अक्टूबर को जन्मदिन
एक पूरा भूमिखण्ड साथ है मेरे
आशीष दशोत्तर
वरिष्ठ भाषाविद्, कवि, चिंतक डॉ. जयकुमार जलज का 2 अक्टूबर को जन्मदिन है। जलज जी के बारे में जितना कहा जाए वह कम है। उन्होंने उस पीढ़ी के साथ अपना स्वर्णिम समय गुज़ारा है जिनके बारे में सोचते हुए भी हम रोमांचित हो जाते हैं। ऐसे महान साहित्यकारों के बीच रहने के बाद भी जलज जी में जो सरलता, सहजता है वही उनके व्यक्तित्व की विशालता को परिलक्षित करती है ।
जलज जी के पास अनुभव का खज़ाना है । उनके भीतर अपने वक्त के ऐसे प्रसंग हैं जो हमारे लिए सीख और भविष्य के लिए धरोहर हैं। जलज जी के जन्मदिन पर उन्हीं के मुख से सुने हुए कुछ प्रसंग यहां पर हम पढ़ें और उनकी व्यक्तित्व की विशालता को महसूस करें।
एक विद्यार्थी हर दिन महाविद्यालय के मुख्य द्वार पर चढ़कर बैठ जाता। आने-जाने वाले लोगों को कुछ न कुछ कहना उसकी आदत में शामिल था। हर विद्यार्थी अपने महाविद्यालय के दिनों में कुछ न कुछ इस तरह की हरकत करता ही है । मगर मुझे हर बार ऐसा लगता कि इस विद्यार्थी को सही मार्ग पर लाना आवश्यक है वरना इसकी देखादेखी अन्य विद्यार्थी भी ऐसा करने लगेंगे। एक दिन चपरासी को भेज उस विद्यार्थी को अपने कक्ष में बुलवाया। कक्ष में मेरी टेबल के सामने सोफा लगा था। विद्यार्थी को वहां बैठने का इशारा किया। विद्यार्थी बैठ गया। कुछ देर बैठने के बाद उसने पूछा, सर, आपने बुलाया था । हमने इशारे से उसे कहा, हां बुलाया था । बैठो आराम से। फिर कुछ समय बीता। विद्यार्थी ने फिर पूछा, सर, आपने मुझे बुलाया था। बताइए मुझे क्यों बुलाया था? हमने कहा, यहां आराम से बैठने के लिए ही बुलाया था। वहां दरवाजे पर चढ़कर बैठते हो। ठीक से बैठ नहीं पाते हो। यहां सोफा खाली ही है। इस पर बैठो तो ठीक रहेगा। विद्यार्थी इस बात से इतना शर्मिंदा हुआ कि उस दिन के बाद कभी दरवाज़े पर नहीं बैठा, बल्कि इस तरह की हरकत करने वाले अन्य विद्यार्थियों को भी ऐसा करने से रोकता रहा।
बच्चन साहब के दोनों बेटे भी थे साथ में
विदेश यात्रा से हरिवंश राय बच्चन जब इलाहाबाद लौटे तो उनके सम्मान में विश्वविद्यालय में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया । इस कवि सम्मेलन में उस वक्त के नामवर कवि शायर मौजूद थे। इस मौके पर बच्चन साहब अपने साथ अपने दोनों बेटों अमिताभ और अजिताभ को भी लेकर आए थे। जब कविता पढ़ने का क्रम बच्चन साहब का आया तो उन्होंने दोनों पुत्रों की तरफ इशारा कर मुझे कहा ये यहीं बैठे हैं । इनका ख़्याल रखना। स्नेहवश मैंने उनके कंधों पर हाथ रख दिया। दोनों बेटे आत्मीयता के साथ मुझे देखते रहे। आज अमिताभ बच्चन का हाथ कई लोगों के कांधे पर होता है। ऐसे में यदि किसी को कहा जाए कि कभी हमने भी उनके कंधे पर हाथ रखा था तो शायद ही कोई यकीन करेगा। उस दौर में फोटो सेशन नहीं हुआ करते थे। आज की तरह आगे बढ़ चढ़कर सबके साथ फोटो खिंचवाने की प्रवृत्ति उस दौर में नहीं थी। मगर मन में खिंचे ऐसे कई संस्मरण चित्र मौजूद हैं।
विशाल व्यक्तित्व का परिचय कराते हैं संस्मरण
जलज जी ऐसी शख्सियत हैं, जिनसे मिलना, जिनसे बातें करना और जिनके अनुभव को सुनना भी तक़दीर वालों को ही नसीब हो पाता है। जलज जी की ख़ासियत यही है कि कोई भी प्रसंग वे दोहराते नहीं। हर बार नई बात ही उनसे सुनने को मिलती है। उनका अनुभव और उनके भीतर मौजूद संस्मरण उनके विशाल व्यक्तित्व का परिचय करवाते हैं।
जन्म से बड़ा होता है कर्म
अपने जन्म स्थान ललितपुर से उन्हें जितना स्नेह है, उतनी ही आत्मीयता इलाहाबाद में गुज़ारे वक्त से भी है । इन सब के बावजूद वे अपनी कर्म स्थली रतलाम के प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हुए भाव विभोर हो जाते हैं। वे कहते हैं ” रतलाम मेरी कर्मभूमि है। जन्म से बड़ा होता है कर्म।रतलाम ने मुझे सदैव अपनत्व दिया है, निश्चल अपनत्व। कभी किसी गली कूचे में जाऊं कोई न कोई पहचान लेता है। मैं अकेला नहीं हूं । एक पूरा शहर, आसपास का एक पूरा भूमिखण्ड मेरे साथ है।”
रतलाम की कई पीढ़ियों को शिक्षा ही नहीं संस्कारों से जोड़ा
यकीनन जलज जी ने रतलाम की कई पीढ़ियों को न सिर्फ शिक्षा बल्कि संस्कारों से भी जोड़ा है। यही कारण है कि उनके प्रति सभी के मन में एक निष्ठा एवं आदर मौजूद है। जलज जी हम सभी के साथ अपनी पूरी रचनात्मकता के साथ बने रहें, यही कामना है।
12/2, कोमल नगर, बरवड रोड, रतलाम
मो.9827084966