आत्मशक्ति को जगाने के लिए रहे उत्साह से परिपूर्ण:तप केसरी राजेशमुनि

हरमुद्दा
रतलाम,26 अप्रैल। बचपन में मां का सहारा, जवानी में पत्नी का सहारा, बुढ़ापे में लकड़ी का सहारा और मरते समय भगवान का सहारा होता है। बिना सहारे इंसान कभी नहीं रहता। इसलिए आत्म शक्ति को भूल बैठा है। आत्म शक्ति को जगाने के लिए उत्साह से परिपूर्ण रहना चाहिए।
यह बात अभिग्रह धारी, तप केसरी श्री राजेशमुनिजी म.सा. ने कही। मालव केसरी श्री सौभाग्यमलजी म.सा.एवं आचार्य प्रवर श्री उमेशमुनिजी म.सा. के कृपापात्र तथा घोर तपस्वी पूज्य श्री कानमुनिजी म.सा. के सुशिष्य श्री राजेशमुनिजी म.सा. ने नोलाईपुरा स्थित श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक पर कही।
पुरुषार्थ सबसे बड़ा
उन्होंने कहा कि व्यक्ति के पुण्य और पाप,परभव में साथ चलते है। पुण्य, हमारा खरा डालर और पाप, खोटा डालर है। भारत के नोट जिस प्रकार अमेरिका में नहीं चलते, वहां डालर चलते है। परभव की यात्रा में ये दो डालर ही साथ होंगे। लक, भाग्य, नसीब, किस्मत, तकदीर आदि सभी एक-दूसरे के पर्यायवाची है। पुरुषार्थ इन सबसे बड़ा होता है।
जीवन में रखें उत्साह
व्यवहार में कही मना मिले, तो मानना चाहिए कि अच्छा सुअवसर आपकी प्रतीक्षा कर रहा है। अंग्रेजी में नहीं को नो कहा जाता है। नो में एन का मतलब नेक्स्ट एवं ओ का मतलब ओपोरच्युनिटी अर्थात अगला सुअवसर ही होता है। इसलिए हताश और निराश होने के बजाए जीवन में उत्साह भरेंगे, तो जिदंगी आसान हो जाएगी।
रहे उत्साह से भरपूर
श्री राजेशमुनिजी ने कहा कि कार्य का प्राण उत्साह है। उत्साह हमारे अंदर जोश भरता है। दुनिया में जितने भी सफल व्यक्ति हुए, वे उत्साह से भरपूर थे। वे अकेले जीत के नजदीक पहुंचे और फिर सारी दुनिया उनके साथ हो गई। उन्होंने कहा कि चंद्रमा एक होता है और तारे अनेक होते है, लेकिन अकेले चंद्रमा का प्रकाश तारों से अधिक होता है। इसी प्रकार एक अकेला व्यक्ति मेहनत कर अनेक लोगों से आगे निकल सकता है और उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है।
प्रवचन के दौरान सेवाभावी श्री राजेंद्रमुनिजी म.सा. मौन साधना में रहे। कई धर्मालुजनों ने तप-आराधना के प्रत्याख्यान लिए। संचालन सौरभ मूणत ने किया।
शनिवार को 1581 वां अभिग्रह रखेंगे विश्व रिकार्डधारी
गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्डस में नाम दर्ज करा चुके तप केसरी एव अभिग्रहधारी श्री राजेशमुनिजी म.सा.27 अप्रैल को अपना 1581 वां अभिग्रह (संकल्प) रखेंगे। वे बीते 14 सालों से यह अनूठा तप कर रहे है, जिसमें दो दिन के उपवास के बाद तीसरे दिन सुबह जल्द उठकर मन में एक संकल्प लेते है और उसके पूरा होने पर ही भोजन ग्रहण करते है। दो दिन उपवास और तीसरे दिन अभिग्रह के फलस्वरूप महीने में मात्र 10 दिन भी भोजनचर्या करने वाले मुनिश्री ने वर्ष 2014 में चातुर्मास के दौरान रतलाम में 1008 वां अभिग्रह किया था। इसमें उन्होंने सुबह ऐसा आदमी देखने का संकल्प लिया था, जिसके हाथों में दस अंगूठियां हो। यह अभिग्रह तब चांदनी चौक में कमल धम्माणी के यहां महेश सोनी के हाथों में अंगूठियां दिखने पर पूरा हुआ था। मुनिश्री के 1008 वें अभिग्रह की अनुमोदना रतलाम श्री संघ ने 5 हजार एकासना से की थी। मुनिश्री द्वारा 8 जुलाई 2015 को इंदौर में जब 1100 वां अभिग्रह रखा गया, तो गोल्डन बुक ऑफ वल्र्ड रिकार्ड ने इसे अनूठे रिकार्ड के रूप में शामिल किया है।

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