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अधिक आक्रामक होनी चाहिए भारत की सुरक्षा एवं विदेश नीति

🔲 प्रो. डी. के. शर्मा

भारत की अधिकतर सीमा दो बड़े दुश्मन देश, चीन और पाकिस्तान, से मिली हुई है। दोनों ही देश भारत विरोधी गतिविधियों में बहुत सक्रिय है। विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधियों में सक्रिय है। विभाजन के बाद काश्मीर के राजा ने भारत में विलिन होना स्वीकार किया, किन्तु पाकिस्तान को यह निर्णय पसंद नहीं आया। कारण काश्मीर में मुस्लिम जनसंख्या का बहुमत होना। विभाजन के बाद ही पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया। नेहरूजी इस समस्या को सयुक्त राष्ट्र संघ ले गए। कुछ हिस्सा पाकिस्तान के पास रह गया जिसे पी.ओ.के. कहा जाता है। सर्वविदित है कि 1947 में प्रारंभ हुई पाकिस्तानी हरकतें आज तक चल रही हैं। वह आज तक आतंकवादियों को काश्मीर में भेज रहा हैं। तब से अब तक हमारे हजारो नागरिक और सैनिक मारे जा चुके है। काश्मीरी पण्डितों का कत्लेआम और महिलाओं के साथ हुए व्यभिचार को नहीं भुलाया जा सकता। घटनाएं आज भी हो रही है।

आतंकवादी निर्दोष नागरिकों और सैनिकों को मार रहे हैं। हम अपने घर में युद्ध कर रहे है। इसे सुरक्षात्मक नीति कहते है। परन्तु किसी भी देश के लिए यह नीति उचित नहीं होती। इस नीति से कुछ प्राप्त नहीं होता, नुक्सान ही होता है। इसे बदल कर आक्रामक नीति अपनाना चाहिए। अगर हमारे सैनिकों को मरना ही है तो दुश्मन की भूमि पर स्थित आतंकवादी अड्डो पर लगातार हमले करना चाहिए। मारकर मरना अधिक सुरक्षित होता है। अग्रेंजो ने सुरक्षा का बहुत ही सरल प्रभावी सिद्धांत, आक्रमण ही सबसे अच्छी सुरक्षा है, को माना है। भारत को भी अपने दुश्मनों के प्रति अधिक आक्रामक नीति अपनाना चाहिए।
यद्यपि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत की सुरक्षा सुदृढ और प्रभावी हुई हैं किन्तु अभी भी हमारी सुरक्षा नीति मूलतः सुरक्षात्मक ही है। यद्यपि भारतीय सेना ने पाकिस्तान में जाकर आतंकवादी अड्डो को नष्ट किया है किन्तु एक बार यह करने से काम नहीं चलेगा। पाकिस्तान में अनेक आतंकवादी अड्डे है उन्हे भी नष्ट किया जाना चाहिए। यह सिद्धांत की “हम छेड़ेंगे नहीं और छेड़ोगे तो छोड़ेंगे नहीं“ बदलना चाहिए। पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान आतंकवाद का अड्डा है। दुर्भाग्य से किसी भी देश ने पाकिस्तान में बसे आतंकियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की। सभी जानते हैं कि अफगानिस्तान पर आतंकियों का कब्जा करने में पाकिस्तान ने पूरी मदद की। अब दुनिया में आतंकवाद को और अधिक बल मिलेगा।

यह अच्छी बात है कि अफगानिस्तान पर विचार करने के लिए भारत ने कुछ देशो की गोष्ठी आयोजित की है। किन्तु अफगानिस्तान में मिली सफलता से आतंकवादियों के होंसले बहुत बढ़ जायेगें। यह कई देशो के लिए भविष्य में खतरा हो सकता है। भारत भी उन में है। आर्थिक दृष्टि से भी भारत को बहुत हानि होने वाली है। हमनें कई अरब रूपये अफगानिस्तान में कई योजनाओं में लगा रखे है। पूरे विश्व को मिलकर आतंकवाद को समाप्त करना चाहिए। हमारे देश की इसमें प्रमुख भूमिका हो सकती है। हमारे लिए अफगानिस्तान एक बड़ा खतरा है क्योकि वहाँ का आतंकवाद पाकिस्तान प्रायोजित है। अतः हमें पाकिस्तान के खिलाफ अधिक आक्रामक नीति अपनाना चाहिए।

भारत को पाकिस्तान से भी अधिक खतरा चीन से है। नेहरू जी के जमाने में ही सियाचीन में बहुत बड़े भू&भाग पर चीन ने कब्जा कर लिया था। तब भारत ने विरोध तक नहीं जताया। तब से अब तक चीन भारत की भूमि पर कब्जा करने का प्रयास करता रहता है। 1962 का युद्ध और उसका परिणाम सब को मालूम है। अभी भी लदाख में हमारी सीमा पर चीन हरकतें कर रहा है। यह देश के लिए गर्व की बात है कि मोदी सरकार ने दर्ढता से चीन का मुकाबला किया। किन्तु हमें और अधिक आक्रामक होने की आवश्यकता है।

चीन को दबाने के लिए हमें अर्थिक नीतियाँ बदलनी चाहिए। अभी इलेक्ट्रोनिक और कई अन्य सामान चीन से आयात करते है। कैची, चाकू, छूरी तक चीन से आते है, इन सामानों को हमारे देश में बनाया जाना चाहिए। इन्हे बनाने के लिए घरेलू उद्योग स्थापित किए जा सकते है। अभी चीन से व्यापार में हमें बहुत घाटा होता है इसे बदला जाना चाहिए। हम आर्थिक हानि देकर चीन को कमजोर कर सकते है। निश्चित ही नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद नीतियों में परिवर्तन हुआ है फिर भी ओर अधिक आक्रामक नीतियों की आवश्यकता है।

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