विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस: पत्रकारों को आखिर कब मिलेगा न्याय? सरकारों को नहीं कोई सरोकार

हरमुद्दा
दुनिया भर में 3 मई को वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे या विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है। हर साल इसकी थीम अलग होती है। इसकी मेजबानी भी हर साल अलग-अलग देशों को मिलती है। संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने 3 मई को विश्व प्रेस दिवस या विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस घोषित किया, ताकि प्रेस की आजादी के महत्व से दुनिया को आगाह कराया जाए। इसका एक और मकसद दुनिया भर की सरकारों को यह याद दिलाना है कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की रक्षा और सम्मान करना इसका कर्तव्य है। लोकतंत्र के मूल्यों की सुरक्षा और उनको बहाल करने में मीडिया अहम भूमिका निभाता है। इसलिए सरकारों को पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। देश-प्रदेश में मजीठिया को लेकर पत्रकारों व प्रेस कर्मचारियों ने न्यायालय की शरण में अर्जी दी है। न्याय देने वाले बाहुबली के सुर में सुर मिला रहे है। सरकारों की सेहत पर कोई असर नहीं हो रहा है। आखिर न्याय कब मिलेगा? कई साथी तो तंगहाल जीवन में बीमारियों से जूझ कर इहलोक छोड़ गए। परिजन मोहताज है। सरकारों को कोई सरोकार नहीं है।
इसबार की थीम
विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस 2019
दुनिया भर मनाया जा रहा है। इस बार की थीम है ‘लोकतंत्र के लिए मीडिया: फर्जी खबरों और सूचनाों के दौर में पत्रकारिता एवं चुनाव’।
मीडिया की भूमिका पर चर्चा
26 वें विश्व प्रेस दिवस के मुख्य कार्यक्रम का आयोजन इथोपिया की राजधानी आदिस अबाब में होगा। यूनेस्को और इथोपिया सरकार कार्यक्रम में योगदान करेंगे। मीडिया को चुनावों के दौरान जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उन चुनौतियों पर खासतौर पर प्रकाश डाला जाएगा। शांति और समृद्धि को बहाल करने में मीडिया की भूमिका पर भी चर्चा होगी।
कोलकाता में आयोजन
भारत की बात करें तो भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी, कोलकाता का पत्रकारिता और जनसंचार विभाग कार्यक्रमों का आयोजन करेगा। इस मौके पर वाद-विवाद, निबंधन लेखन प्रतियोगिता, क्विज और कई अन्य कार्यक्रमों का आयोजन होगा। लोकतांत्रिक देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया के महत्व पर सेमिनारों और परिचर्चाओं का भी आयोजन किया जाएगा।
1991 में मनाया पहली बार
1991 में अफ्रीका के पत्रकारों ने प्रेस की आजादी के लिए एक पहल की थी। उन्होंने 3 मई को प्रेस की आजादी के सिद्धांतों से संबंधित एक बयान जारी किया था जिसे डिक्लेरेशन ऑफ विंडहोक के नाम से जाना जाता है। उसकी दूसरी जयंती के अवसर पर 1993 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने पहली बार विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस का आयोजन किया। तब से हर साल 3 मई को यह दिन मनाया जाता है।
जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित करते है सरकारों को
दुनिया भर के कई देश पत्रकारों और प्रेस पर अत्याचार करते हैं। मीडिया संगठन या पत्रकार अगर सरकार की मर्जी से नहीं चलते हैं तो उनको तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। मीडिया संगठनों को बंद करने तक के लिए मजबूर किया जाता है। उनको आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं जैसे उन पर जुर्माना लगाना, आयकर के छापे, विज्ञापन बंद करना आदि। संपादकों, प्रकाशकों और पत्रकारों को डराया-धमकाया जाता है। उनके साथ मारपीट भी की जाती है। अगर इससे भी वे बाज नहीं आते हैं तो उनकी हत्या तक करा दी जाती है। ये चीजें अभिव्यक्ति की आजादी के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। इन चीजों को ध्यान में रखते हुए दुनिया भर में प्रेस की आजादी का दिन मनाया जाता है। इस मौके पर नागरिकों को बताया जाता है कि कैसे प्रेस की आजादी को छीना जा रहा है। साथ ही सरकारों को भी जिम्मेदार बनने के लिए प्रेरित किया जाता है।
नहीं मिल रहा है न्याय
प्रेस से जुड़े देश प्रदेश में लाखों कर्मचारी न्यायालय के दरवाजे पर सालों से न्याय की आस लगाए बैठे हैं। दैनिक भास्कर, नईदुनिया, पत्रिका सहित अन्य अखबार मालिकों द्वारा कर्मचारियों को शारीरिक, मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। कर्मचारी आर्थिक रूप से कमजोर है। मजीठिया लागू नहीं किया जा रहा है। श्रम न्यायालय में केस चल रहे है। न्याय की कुर्सी पर बैठे लोग अखबार मालिकों के हाथों की कठपुतली बने है। सरकारों का इस ओर ध्यान नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *