विश्व हिंदी दिवस पर परिसंवाद : माताओं को बच्चों में भाषा संस्कृति का सम्यक ज्ञान और रुझान पैदा करना जरूरी
परिसंवाद में डॉ. अर्चना सक्सेना ने कहा
भारतीय भाषा मंच की रतलाम इकाई का हुआ गठन
हरमुद्दा
रतलाम, 11 जनवरी। कोई देश, कोई ध्रुव ऐसा नहीं जहाँ हिंदी बोली व समझी न जाती हो। विश्व की सिरमौर है हिंदी। पाश्चात्य के प्रभाव में हमारी पीढ़ी दिग्भ्रमित अवश्य हुई है। हमें यह देखना है कि कमी कहाँ रह गई। हमें बच्चों को शैशवास्था से ही भाषा के संस्कार डालने होंगे। माताओं को बच्चों में भाषा संस्कृति का सम्यक ज्ञान और रुझान पैदा करना होगा। पश्चिम का अनुकरण ही हमारी कमजोर कड़ी है। अपनी भाषा मे सीखा हुआ कही नहीं जाएगा।
यह विचार कला एवं विज्ञान महाविद्यालय रतलाम में हिंदी विभाग की प्राध्यापक डॉ. अर्चना सक्सेना ने व्यक्त किए। डॉ. सक्सेना भारतीय भाषा मंच एवं सुमन शोध संस्थान और मालवांचल लोक कला संस्कृति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में हिंदी दिवस पर वर्तमान परिवेश में हिंदी विषय पर परिसंवाद कार्यक्रम मैं बतौर अध्यक्ष मौजूद थी। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में कन्या महाविद्यालय रतलाम की प्राध्यापक डॉ. मंगलेश्वरी जोशी मौजूद थी।
हमारे पिछड़ेपन के लिए परिवेश जिम्मेदार : डॉ. जोशी
डॉ. जोशी ने कहा कि सम्पूर्ण देश में हिंदी नेतृत्व कर रही है। हमारे पिछड़ेपन के लिए परिवेश जिम्मेदार है। हम हिंदी के लिए कर्तव्यनिष्ठ एवं एक निष्ठ होंगे, तभी वह हमारे आचरण एवं व्यवहार में उतरेगी। आदतें ही स्वभाव बन जाती है। स्वभाव ही प्रवृत्ति और प्रवृत्ति से ही चरित्र निर्माण होता है। हमारी भावी पीढ़ी का भाषायी ज्ञान महबूत करने की महती आवश्यकता है। हिंदी ही ओजस तेजस और वर्चस्व की धनी है।
सबसे पहले संस्कार भाषायी संस्कार के लिए कृत संकल्प होना जरूरी
डॉ. शोभना तिवारी ने कहा कि हमारी हिंदी विश्व फलक पर विराजमान है । आज हमें प्राथमिक कक्षा से लेकर उच्च शिक्षा में अध्ययनरत छात्रों के भाषायी परिष्कार की आवश्यकता महसूस हो रही है इसीलिए अब हमें बच्चों के समग्र विकास के लिए सबसे पहले संस्कार भाषायी संस्कार के लिए कृत संकल्प होना होगा। हमारे आचार, विचार, आचरण, व्यवहार एवं काम काज की भाषा हिंदी हो यही हमारा ध्येय होना चाहिए।
हमारी विरासत है हिंदी
अंतिमा भागचन्दानी ने कहा कि क्या अपनी नसों से खून को अलग किया जा सकता है ? क्या दिल धड़कना छोड़ सकता है ? हिंदी हमारी विरासत है । जब तक विश्व रहेगा तब तक हिंदी समूचे विश्व मे गुंजायमान होगी।
भाषायी संस्कार होना चाहिए सत्रहवां संस्कार
रश्मि उपाध्याय ने कहा कि लोक भाषा हमे समृद्ध बनाती है। देशज शब्द, क्षेत्रीय भाषाओं के शब्द जो लुप्तप्रायः हो गए है उन्हें पुनर्स्थापित करके इस अंगेरजीयत को पीछे छोड़ सकते है । हमारी संस्कृति में सोलह संस्कारों की बात कही है अब सत्रहवा संस्कार भाषायी संस्कार होना चाहिए । बच्चों को अपनी मातृभाषा की शिक्षा ही उसे शिखर पर ले जा सकती है।
भारतीय भाषा मंच की रतलाम इकाई का गठन
इस अवसर पर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के भारतीय भाषा मंच की रतलाम इकाई का गठन डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति शोध संस्थान में डॉ. प्रेमलता चुटैल पूर्व विभागाध्यक्ष विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन द्वारा किया गया।
यह थे मौजूद
कार्यक्रम में एमए प्रथम सेमेस्टर की छात्राओं में भावना डामर, अनिता मुनिया, सोनम सिकरवार, दीपिका कल्याने आदि ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवार हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता एवं मातृभाषा सम्मान की सुरुचिपूर्ण अभिव्यक्ति की। संचालन डॉ. शोभना तिवारी ने किया। आभार रश्मि उपाध्याय ने माना।