मां ही पक्की डोर

मां घर का आरंभ है,
मां ही अंतिम छोर
संबंधों के बीच में
मां ही पक्की डोर

मां ….. ऐसा शब्द है जिसके कई अर्थ, जिसकी अंतहीन व्याख्या। न कोई इसे किसी तराजू में तोल सकता है। संबंधों ,रिश्तो के अपने अर्थ हो सकते हैं मगर मां जैसे पवित्र शब्द का अर्थ किसी दायरे में सीमित कर नहीं लगाया जा सकता।
मां हमें जीवन देती है, हमें संस्कार देती है, हमें शिक्षा देती है। हमारी उंगली पकड़कर हमें चलना सिखाती है। हमें गलत राहों से बचाती है । हमें सही मार्ग की ओर अग्रसर करती है। मां शारदा भी है, मां सावित्री भी है , मां कौशल्या भी है और मां वासंती भी है।
मां के साथ जीवन की हर ऋतु जुड़ी हुई है। मां के साथ जीवन की सुबह और जीवन की शाम जुड़ी हुई है। जिनके सर पर मां का साया होता है वे किसी भी धूप को सहन कर सकते हैं और मां के आंचल के साए तले अपने जीवन को सुखी और समृद्ध बनाते हैं। मां जो किसी को जन्म न दे लेकिन उसे पुत्र की तरह प्यार करें। मां के लिए हर बच्चा उसका ही पुत्र होता है।
मां कभी अपने बच्चों में भेद नहीं करती ।उसके लिए सभी बच्चे समान होते हैं। फिर चाहे अपना बेटा हो या किसी गैर का। मां का स्नेह, मां का वात्सल्य ,मां का प्रेम ,मां का अपनत्व कभी किसी के लिए कम नहीं होता।
वह हमेशा सभी पर अपना आशीष लुटाती है। उसके लिए जीवन में कितने ही संघर्ष हों लेकिन वह अपने बच्चों की राह में कभी कोई संघर्ष नहीं आने देती। उनके सारे संघर्षों को वह सरलता में तब्दील कर देती हैं । उनकी सारी मुसीबतों को वह अपने सर ले लिया करती है । मां उस वक्त तक भूखी रहती है जब तक बच्चे का पेट न भर जाए। इस रिश्ते को अब क्या कहा जाए कि मां के दिल में हर बच्चे की सांसे धड़कती है। हर बच्चे के लिए मां की आंखों में आंसू आते हैं। हर बच्चे के लिए मां सिर्फ मां होती है ।

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      आशीष दशोत्तर, साहित्यकार

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