जाऊंगा मैं कल वोट डालने के लिए

जाऊंगा मैं कल वोट डालने के लिये ,

अपनी आत्मा को घर पर ही छोड़ जाऊंगा
और अपना दिमाग भी ,
क्योंकि आत्मा अनपढ है अभी तक
और दिमाग भूत बन जाता है
बूथ पर जा कर ।
दलगत छुआछूत के चलते
वहाँ मैं आँखें चुराऊंगा या वे ,
धोखे में कब कौन सा बटन दबेगा ,
विचार करने वाली इंद्रिय को पता नहीं ।

जाऊंगा मैं कल वोट डालने के लिये ,
न गया तो घसीट कर ले जाया जाऊंगा ।
जाऊंगा वैसे ही ,जैसे हमाम में जाता हूँ ।
जाऊंगा वैसे ही ,जैसे उठावने में जाता हूँ ।
जाऊंगा वैसे नहीं ,जैसे मंदिर में जाता हूँ ।
चुनना क्या है मुझे ?
कुछ कंकड़ों में से एक कंकड़ ।
चुनना क्या है मुझे ?
कुछ भेरुओं में से एक भेरू
जो खुश रहे तो जमाना चलता रहे ,
चलेगा या नहीं चलेगा ,
विचार करने वाली इंद्रिय को पता नहीं ।

जाऊंगा मैं कल वोट डालने के लिये ,
मेरे एक वोट से सरकार बनेगी ,
मेरे एक वोट से सरकार चलेगी ,
पाँच साल तक चलने वाले
ईंधन की लकड़ी हूँ मैं
या लोकतंत्र का पैदल सिपाही ,
यह वजूद है मेरा
जो बरकरार रहेगा वोट पड़ने तक ,
कल के बाद मेरा क्या होगा ?
विचार करने वाली इंद्रिय को पता नहीं ।

जाऊंगा मैं कल वोट डालने के लिये ,
गूँगा होगा या बहरा होगा ,
अंधा होगा या दिल का मरीज होगा ,
कुटिल होगा , छलिया होगा ,
पहलवानों में नामी – गिरामी होगा ,
धन का लोभी होगा , चतुर चालाक होगा,
थोड़ा सा बेईमान होगा ,
थोड़ा मदारी होगा , थोड़ा शिकारी होगा ,
होगा तो होगा
मेरा माई -बाप तो बस वही होगा ,
वह मुझे हँसाएगा या रुलाएगा ?
विचार करने वाली इंद्रिय को पता नहीं ।

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✍  डॉ. मुरलीधर चाँदनीवाला
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