बुद्ध लौट आये हैं म्यांमार से यहाँ

अपने सारे पिटक
और उन सभी कथानकों के साथ,
जो घटित हुए थे कभी कपिलवस्तु में,
कौशाम्बी,उरुवेल में ।

इस गुम्बद के नीचे
बिछी पड़ी हैं वे सब तरंगें
जिन पर लेटे हुए बुद्ध
सोच रहे हैं
उत्तर से चलकर दक्षिण
और पूरब से चलकर पश्चिम की यात्रा के
प्रस्थान का शुभमुहूर्त ,
एक अनुस्वार गूँजता है
विश्व के इस सबसे बड़े गुम्बद के भीतर लगातार ।

लौट आये हैं बुद्ध,
स्वर्णिम कंचुक ओढकर
महाभिक्षु खड़ा है समुद्रतट पर
विपश्यना का छोटा सा बीज अंजुलि में लिये हुए,
बुद्ध जब भी चलने के लिये उठेंगे
वह चल पड़ेगा पीछे- पीछे
शान्त, नीरव भिक्षुओं के संघ को साथ लेकर ।

बुद्ध जितना लौट कर आते हैं यहाँ,
उतना ही पीछे छूट जाते हैं हिमालय के उस पार
हरी-भरी वादियों वाले जनपदों में वहाँ- वहाँ,
जहाँ घूमता धर्मचक्र
पहुँचा था सदियों पीछे ।

सचमुच लौट आये हैं बुद्ध,
लौट रहे हैं थोड़ा- थोड़ा अब भी ,
बहुत धैर्य है बुद्ध के भीतर ।
इस ग्रामीण समुद्र के सिरहाने खड़े बुद्ध
सींचते उस वृक्ष की जड़ों को
जो बुद्ध है अभी तक ,
और जिसमें कोमल पत्तियाँ फूटने लगी हैं ।

फिर याद आती है पाँवों में पड़ी यशोधरा,
याद आते हैं राहुल,
शुद्धोधन,महामाया,
जरा,रोग,वह मृत्यु, वे स्वप्न,
कुछ भी तो नहीं भूलते हैं बुद्ध,
उस देवदत्त को भी नहीं
जो मिलता रहा
दया की झील में तैरते रक्तबिंदु की तरह,
बड़े दयालु हैं बुद्ध ।

पूरे के पूरे विष्णु हैं बोधिसत्व ,
न शंख;न चक्र; न गदा ;न पद्म।
खाली हाथ
घूम आये हैं मगध से बाहर ,
न लीला रची,न लिखी समरगाथा ,
एकदम शांत- निस्पन्द,
चीत्कार के विरुद्ध
केवल एक मंद मुस्कान ।

बुद्ध लौट आये हैं म्यांमार से यहाँ,
यह लौट कर आना ही तथागत है,
प्रव्रज्या है ।

बुद्ध रहेंगे यहाँ सदियों तक,
फिर लौट जायेंगे वहाँ
जहाँ बुद्ध की प्रतीक्षा में खड़ी
मानवजाति की वृहत् श्रृंखला ।
बुद्ध तब भी यहाँ होंगे ,
बुद्ध तब भी वहाँ होंगे ।

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✍ डॉ. मुरलीधर चाँदनीवाला

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