लोभ सिर्फ धन का नहीं होता, अपितु कई रूपों में होता है : प्रवर्तकश्री

 नोलाईपुंरा स्थित श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक में व्याख्यान

हरमुद्दा
रतलाम,23 मार्च। लोभ के कई रूप है। ये केवल धन का नहीं होता, वरन पद का, प्रतिष्ठा का, द्रव्य आदि कई चीजों का होता है। लोभ की प्रवृत्ति जब भी आत्मा में जागती है, तो तहस-नहस ही करती है। रूस और यूक्रेन का युद्ध इसी लोभ का प्रतीक है, जिसमें सिर्फ विनाश हो रहा है। लोभ में व्यक्ति खुद भी दुखी होता है और दूसरों को भी दूख देता हैं। त्यागी वहीं होता है, जो लोभ मुक्त रहता है।

यह बात मालव केसरी प्रसिद्ध वक्ता पूज्य गुरुदेव सौभाग्यमल जी मसा के सुशिष्य श्रमण संघीय प्रवर्तक पंडित रत्न पूज्य प्रकाश मुनिजी मसा निर्भय ने कही। नोलाईपुंरा स्थित श्री धर्मदास जैन मित्र मंडल स्थानक में व्याख्यान देते हुए उन्होंने कहा कि परिवार और समाज में झगडे पद और प्रतिष्ठा के लोभ के कारण होते है। व्यक्ति इन झगडों में ऐसा उलझता है कि घर उजड जाते है। लोभ में चक्कर में लोग सम्मान पाने के लिए लाखों रूपए खर्च भी करते है। कई पदवियां ऐसे ही मिल रही है।

लोभ से बचने के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण जरूरी

प्रवर्तकश्री ने कहा कि लोभ से बचने के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण करना आवश्यक है। पांच इंद्रियों में तीन इंद्रिया भोगी और दो कामी है। इन्हें नियंत्रित करने के लिए मन को काबू में रखना चाहिए। त्यागी व्यक्ति मन को काबू में रख सकता है, लेकिन उसके लिए अंदर से त्याग का भाव होना जरूरी है। दिखावे के लिए किया गया त्याग भी त्याग नहीं होता। व्यक्ति जब अंदर से जागृत होता है, तभी आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर होता है।
व्याख्यान के आरंभ में सेवाभावी पूज्य श्री दर्शन मुनिजी मसा ने विचार रखे।

यह थे मौजूद

इस दौरान पूज्या महासती श्री महिमाजी, श्री चेतना जी,श्री लाभोदया जी, श्री चंदनबालाजी श्री रमणीक कुँवर जी, श्री कल्पना जी, श्री चंदना जी एवं दीक्षार्थी शांतिलाल गांधी व ज्योति चैहान उपस्थित रहे। संचालन सुनील गांधी ने किया। अंत में श्री सौभाग्य अणु प्रकाश दीक्षा महोत्सव समिति ने प्रभावना का वितरण किया। बाहर से आए अतिथियों के आतिथ्य सत्कार का लाभ भी चांदनी चैक में श्री सौभाग्य अणु प्रकाश दीक्षा महोत्सव समिति द्वारा लिया गया।

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