⚫ जब भी मैदान में एक घास चर रहे बकरियों के झुंड में पहुंच जाती तो छोटा बकरी का बच्चा पकड़ कर गोद में उठा लेती। नानी भी नातिन को देखकर खुशी के मारे फुले नहीं समा रही थी। उसे भी मजा आ रहा था पारुल  की शरारतो में। नानी पारुल को जंगल ले गई, घने घने वृक्षों की भूल भुलैया सा प्यारा जंगल ,सुकून भरा जानवरों का जीवन, परिंदों का संगीत ,जंगल में चौकड़ी भरते हिरन दिख जाते थे, गायों के झुंड को ले जाता चरवाहा , पारुल को जरा भी थकान नहीं हो रही थी।⚫

⚫ इन्दु सिन्हा”इन्दु”

आज मैं जवान हो गई हूँ ये दिन ये साल ये महीना भूलेगा मुझको कभी ना ओ-मिट्ठू मियाँ भूलेगा मुझको कभी ना, यह गीत कई दिनों से मेरे मन में गूँज रहा था, कितनी खूबसूरती है,  इस गीत में लड़की ने बता भी दिया है कि  उसे पहली बार पीरियड आए हैं और उसके जीवन के नए अध्याय की शुरुआत हो गई है। वह जवान हो गई है,कही नग्नता  नहीं, कहीं भद्दा प्रदर्शन नहीं। सोशल मीडिया पर एक पोस्ट वायरल देखकर मुझे इस खूबसूरत बीच की याद आने लगी थी, वह पोस्ट इस प्रकार की थी, एक लड़की को पहली बार पीरियड्स आते  हैं तो वह कहीं बस में सफर कर रही होती है, जींस पर खून के धब्बे देखकर, एक लड़का जो कि उसी बस में सफ़र कर रहा था, उसे अपना स्वेटर उतार कर देता है कि वह इसे कमर में बांध लें, जिससे कि वह घर तक पहुंच जाए और खून के धब्बे भी छिपे रहे लड़के के संस्कारी होने में कोई संदेह नहीं है, लेकिन उसके पिता की मानसिकता समझ में नहीं आयी कि खून के गहरे दाग  वाली जींस का फोटो डालकर उसका प्रदर्शन करना भोंडापन ही लगता है, सोशल मीडिया पर डली इस पोस्ट पर बहुत से अच्छे, गंदे कमेंट्स भी आए लेकिन पिता की सोच क्या थी ?खुद की बेटी के पहली बार पीरियडस का प्रदर्शन करना या बेटे या लड़के के संस्कारी होने का ? यह सब देख कर मुझे पारुल याद आ गई, उससे जुड़ी हर एक बात।


गर्मियों की तपती धूप पारुल को अच्छी नहीं लगती थी, शहर की बड़ी-बड़ी इमारतों से ज्यादा उसे नानी के पास जाना पसंद आता था। जब भी स्कूल की छुट्टियों में वह पापा के साथ गांव चली जाती थी ,पापा उसे छोड़कर वापस आ जाते थे, उसके घर से सिर्फ दो ढाई घंटे की दूरी पर नानी का गांव था हैदरा। घनी घनी झाड़ियों पेड़ों की लंबी-लंबी कतारें, बहती हवा,हिरणों के झुंड , तितलियों के पीछे दौड़ती मासूम सी कली सी पारुल, तितली हाथ में नहीं आती थी ,एक बार फ्रॉक में तितली पकड़कर जैसे ही नानी के पास पहुंची तितली उड़ गई थी, पारुल ने रो-रोकर पूरा घर सर पर उठा लिया था। बड़ी मुश्किल से पारुल चुप हुई थी, हमेशा की तरह इन गर्मियों में भी पारुल तैयार हो रही थी, नानी के घर जाने को पापा मम्मी ने सुंदर-सुंदर कपड़ों से उसका बैग तैयार कर दिया था। और उसकी पसंद की सुंदर गुड़िया भी पापा ने रख दी थी। लगभग बारह वर्षीय पारुल की खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। बैग तैयार होने के बाद मम्मी ने पापा की नजर बचाकर एक काले रंग की पॉलिथीन भी उसके बैग में रखी थी। इतने में पारुल की नजर उस पर पड़ गई, नहीं नहीं मम्मी अब  जगह नही है।

क्या रख रही हो आप ? पारुल बोली
बेटी रख लो यह काम आ सकते हैं। मान लो नानी के यहाँ तुम्हें पीरियड्स आ गए ,अपनी जगह तो मम्मी जी धीमी आवाज में बोली।
अरे बाबा ये क्या मुसीबत है ?नन्ही पारुल गुस्से में थी।
पापा ,पापा देखो तो ,पारुल ने पापा को आवाज दी,
मैं बोल रही हूँ जब, रख लो जरूरत पड़ सकती है
ए -लड़की , चुप ,मम्मी ने गुस्से में कहा,
अच्छा बाबा रख लेती हूँ, पारुल ने  सहमते हुए कहा,
देखो बेटा यह नॉर्मल बातें है  हर एक लड़की को पीरियड्स  आते है  स्टेफ्री का पैकेट है कभी मान लो आ गए तो तुम को परेशानी नहीं आएगी।

ठीक है मम्मी रख दो, पारुल बोली,
पिछली बार नानी के यहाँ गयी थी तो नो वर्ष की थी,अब तुम लगभग बारह वर्ष की हो रही हो, इसलिए चिंता करनी पड़ती है ,यह कहकर पारुल को अपनी गोद में लिटा लिया,
सुनो बेटा, ऐसी बातें पापा के सामने नहीं बतायी  जाती,
क्योंकि तुम्हारे पापा ही क्या दुनिया के हर एक के पापा को पता होता है कि पीरियड्स  में क्या होता है।
हर लड़की को आता ही है नानी को भी मैं अलग से फोन कर दूँगी ठीक है मम्मी की आवाज में लाडो बेटी के लिए ठीक है ध्यान रखूँगी पारुल बोली पारुल के चेहरे पर चिंता भी झलकने  लगी थी ,
क्योंकि नयी जिम्मेदारी जो आ गई थी, नानी के गांव तक का सफर पापा के साथ कार में तय किया गया, पेड़ों की हरियाली तालाब में बतखों  को देखकर पारुल तो बावली हो रही थी, कई जगह कार रुकवा कर पारुल के पापा ने पारुल के साथ सेल्फी भी ली  पारुल की प्यार भरी जिद तो माननी ही थी। पापा ने मोबाइल चलाना जरूर सिखाया था लेकिन मोबाइल खरीद कर नहीं दिया था पारुल को जब कभी मोबाइल पर गेम खेलना होते तो पापा का मोबाइल ले लेती थी।

एक जगह मूंगफली वाला दिख गया फिर क्या था पारुल ने कार रुकवायी ,  मूंगफली के साथ नमक मिर्च का पेस्ट ,
मजा आ गया पारुल को,  पारुल ने खूब चटखारे लेकर मूंगफली खायी , ऐसी मस्ती मजाक में पारुल नानी के गांव हैदरा पहुंच गई।
कार रुकते ही आंगन में खड़ी बछिया  खुशी के मारे उछल कूद करने लगी ,बछिया कार को पहचानती थी, पारुल कार से उतरते ही नन्हें-नन्हें खरगोशों को पकड़ने के लिए उतावली हो गई, नानी के घर में खरगोश ,गाय, बकरियां  भी थी।
अरे थोडा रुक जा  नानी बाहर आते हुए बोली,
कार की आवाज सुन ली थी, बाहर आते हुए,
  थोड़ी देर कर कहकर पारुल खरगोश को लेकर खुशी के मारे आँगन में चक्कर लगाने लगी, खरगोश की नारंगी आँखे  कौतूहल  से भरी थी, पापा तो घंटे भर बाद घर के लिए वापस चले गए थे।
लगभग घंटे भर खरगोश से खेलने के बाद पारुल थक गई तो नानी की गोद में सिर रख कर लेट गई। पारुल पहले खाना खा ले, फिर शाम को जंगल घूमने चलेंगे, मजा आएगा, नानी बोली ,
अरे वाह नानी खाना दे दो पारुल बोली,
सिलबट्टे पर पिसी  हुई कच्ची अमिया की चटनी, मिट्टी की हांडी में पकाई हुई उड़द चने की दाल, ऊपर से तैरते  शुद्ध घी की खुशबू,  मेथी की भाजी, बाजरे की रोटी। पारुल खुश हो गई खाना खाने के बाद पारुल आँगन में  झूले पर झूलने लगी।
पहाड़ियों के से गिरते झरने का संगीत ,रह-रहकर आती मोर की आवाज, हरियाली की चादर सब कुछ पारुल को बड़ा ही सुखद और बड़ा ही मनमोहक लग रहा था।

नानी चलो जल्दी,घूमने  के लिए
अरे सुन तो ,थोड़ा आराम कर ले फिर शाम को चलेंगे, 
हाँ नानी, एक बात और हम लोग आँगन में सोएंगे खुली हवा में,
हाँ बिल्कुल, बाहर आंगन में सोएंगे,नानी हंसते हुए बोली शाम को तैयार होकर घूमने निकली पारुल  किसी हिरण की तरह कुलांचे भरती दौड़ लगा रही थी, फिर वापस आकर नानी को पकड़ लेती थी। जब भी मैदान में एक घास चर रहे बकरियों के झुंड में पहुंच जाती तो छोटा बकरी का बच्चा पकड़ कर गोद में उठा लेती। नानी भी नातिन को देखकर खुशी के मारे फुले नहीं समा रही थी।
उसे भी मजा आ रहा था पारुल  की शरारतो में। नानी पारुल को जंगल ले गई, घने घने वृक्षों की भूल भुलैया सा प्यारा जंगल ,सुकून भरा जानवरों का जीवन, परिंदों का संगीत ,जंगल में चौकड़ी भरते हिरन दिख जाते थे, गायों के झुंड को ले जाता चरवाहा , पारुल को जरा भी थकान नहीं हो रही थी, घर पहुँचते पहुंचते हल्का अंधेरा छाने लगा था ,चांद सफर पर निकलने की तैयारी में था ,सितारे मचलने लगे थे, इस चंदा को घेरकर शरारतें करने के लिए, जगह-जगह जुगनू चमक रहे थे पेड़ो ने झूमना  बंद कर दिया था। खामोश हो चले थे उस साधु के समान, जो किसी ध्यान में मग्न होता है |हवा शरारतें कर रही थी, बीच-बीच में पेड़ों का ध्यान भंग कर देती थी,  तो पेड़ सिहर जाते थे। घर पहुंचकर पारुल कपड़े बदल कर बैठक में आई तो दिखा मामी ने डिनर तैयार कर लिया है आलू टमाटर की सब्जी, पूरी ,पनीर भुर्जी ,चावल की खीर ढेर सारे मेवे डली हुई ,अरे वाह चावल की खीर !मजा आ गया पारुल बोली खुशी के मारे नानी से लिपटने लगी प्यार से, अरे अरे पागल है,पारुल यह क्या है ,मामी के चेहरे पर नाराजगी का भाव,  पारुल अब बड़ी हो रही हो, तुमको ऐसे उछलना कूदना  अच्छा नहीं लगता, फिर वह अंदर चली गई। अरे मामी कहाँ से बड़ी हूँ ?  पारूल बोली, फिर नानी के साथ खाना खाने में व्यस्त हो गई ,खाने के बाद पारुल नानी के साथ आँगन  में बिछी खाट पर आ गई ,जहाँ मामी ने बिस्तर लगा दिया था, नानी की गोद में सर रखकर पारुल चाँद को देखने लगी, नानी चाँद  चल रहा है धीरे-धीरे, पारुल बोली,
हाँ गुड़िया,  चाँद  चलता है, सफर तय करता है, कहकर नानी पारुल का सिर सहलाने लगी प्यार से, नानी ,पारुल ने मासूम सवाल किया,मामी  ने ऐसा क्यो बोला मै बड़ी हो रही हूँ ,
लड़कियां  पहले छोटी-छोटी होती है फिर बड़ी होती हैं, धीरे-धीरे बड़ी होने पर ही उनकी शादी होती है,नानी ने कहा,
नानी मैं तो स्कूल में पढ़ती हूं छोटी हूँ , पारुल बोली
हां बेटा ,स्कूल के बाद तुम कॉलेज जाओगी, पढ़ोगी,आपका मन होगा तो जॉब भी करोगी, उसके बाद ही शादी होगी ना !
नानी बोली ,अचानक पारुल को ध्यान आया कि मम्मी ने स्टेफ्री का पैकेट रखा था, उससे नानी को बताया अरे हाँ,नानी मेरा पेट दर्द कर रहा था, दोपहर से घूमने खेलने के चक्कर में मैं बताना भूल गई।
कोई बात नहीं बेटा सारा दिन दौड़ भाग करती रही हो ,थक गयी होंगी ,मैं सरसों के तेल से मालिश कर देती हूँ, तेल की मालिश से पारुल को आराम मिला,
नानी पेट क्यों दर्द कर रहा है,पारुल फिर बोली,
सारा दिन मूंगफली चटनी बेर क्या पता क्या क्या खाने में आ गया है, इससे पेट दुख सकता है,  ईनो भी पी लो आराम आ जाएगा,
पारूल ने ईनो पीया, उसके बाद नानी  के गले मे बांहे डालक नींद के रथ पर सवार होकर परियों के देश चली गयी।
सुबह पाँच बजे नानी उठकर आँगन की सफाई में लग गई, अपनी प्यारी नातिन को देख कर उसे प्यार आने लगा ,झुक कर उसने पारुल का माथा चूम लिया नींद में किसी प्यारी गुड़िया की मासूम लग रही थी। सुबह सुबह की हवा ताजगी भरी थी पारुल के कपड़े अस्त-व्यस्त थे।

उसकी फ्रॉक भी ऊँची  हो गई थी,नानी ने जैसे ही उसकी फ्रॉक नीचे की , उसके अंडवियर पर  नानी की नजर पड़ी ,तो वह खून से लाल था,नानी खुश हो गई  बोली पारूल  बेटा जल्दी उठ जा, नहीं नानी सोने दो ,पारुल ने करवट बदली,
अरे जल्दी से उठ कर नहा ले नानी बोली,
  नहीं नहीं अभी नहीं, चाय पीने के बाद ,पारुल बोली
अरे बेटी, तू बड़ी हो गई है उठ जा,नानी बोली
अरे, कल बोल रही थी , अभी मैं छोटी हूँ, अब रात भर में मैं बड़ी हो गई ,पारुल आश्चर्य से भर उठी,
नानी बोली बाथरूम में जाकर देख,
आखिरकार पारुल उठकर बाथरूम में गई, तो उसे पता चला , मम्मी  इसीके बारे में बता रही थी,  उसने स्टेफ्री का पैकेट निकाला  फिर बाथरूम से बाहर आयी,
नानी चाय ,पारुल बोली,
पहले नहा लो, फिर चाय पीना, ठीक है उदासी भरे स्वर में पारुल बोली,
नहाकर जैसे ही उसने नानी के गले लगने की कोशिश की तो नानी दूर हट गई, नहीं बेटा दूर हो,  चार-पांच दिन सब से दूर रहो, आराम मिलेगा।
चार-पांच दिन ,पारुल आश्चर्य से बोली ,
हाँ बेटा अब तुम जवान हो गई हो,मामी  ने अंदर के कमरे से बाहर आते हुए कहा,
नहीं होना मुझे जवान ,रात तक मै छोटी थी, पारुल ने रोना शुरू कर दिया,
पापा को  बुला दो मै ऐसे नही रह सकती, अगले दिन पारुल को उसके पापा आ गए थे ले जाने के लिए पारुल जवान हो गई थी।

इन्दु सिन्हा “इन्दु”
रतलाम (मध्यप्रदेश)

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