मुद्दे की बात : जो कांग्रेस अपने ही जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा कर रही, वही महंगाई के चूल्हे पर जनता को झोंककर सेकेगी अपनी रोटियां
⚫ पछता रहे हैं पद लेने वाले भी, बैठे ठाले आ गया स्वागत करने का खर्चा
⚫ पदाधिकारी ही दुखड़ा रो रो रहे हैं कि पैसे नहीं है खर्चा कैसे होगा पूरा
हेमंत भट्ट
रतलाम, 22 अप्रैल। देश, प्रदेश और जिले में अपनी पहचान गवाने वाली कांग्रेस अपने ही जनप्रतिनिधियों को उपेक्षित कर रही है, उन्हें संभाल नहीं पा रही है और महंगाई के चूल्हे पर जनता को झोंक अपनी रोटियां सेकने की शुरुआत प्रदेश कांग्रेस के मुखिया कमलनाथ करेंगे, जोकि अपनी ही सरकार को बचाने में नाकाम रहे हैं, वह फिर से जनता को बरगलाने की शुरुआत शुक्रवार को करेंगे। जो कमलनाथ मुख्यमंत्री जैसा पद नहीं संभाल पाए वे फिर से रतलाम आ कर चुनावी शंखनाद करने का कुत्सित प्रयास करेंगे। वैसे भी कहा जाता है कि “शुक्रवार की बात गधे की लात” के समान होती है। शुक्रवार को होने वाली बात और चर्चा निर्णय गत नहीं होती है। चाहे कोई माने या ना माने।
यह तो सर्वविदित है कि कांग्रेस अब वह कांग्रेस नहीं रही। ऊपर से लेकर नीचे तक के पदाधिकारी कांग्रेस के तौर तरीके और अपने ही लोगों को उपेक्षित करने के लिए कुख्यात हो गई है। सालों से जिले में जिला अध्यक्ष ही कांग्रेस के नाम पर तूती बजाते रहे। जैसे ही पता चला कि कांग्रेस की सरकार को बचाने में नाकाम रहे पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ रतलाम आ रहे हैं। तो आनन-फानन में सैकड़ों पद बांट दिए। पद लेने वाले भी खुश नजर नहीं आए थे क्योंकि वह डूबते जहाज पर सवार होना नहीं चाहते थे, लेकिन क्या करें कांग्रेसी चोला जो पहन रखा है। मन मसोसकर वह भी ले लिया लेकिन अब पछता रहे हैं कि उसी समय इन पदों से भी दूरियां बना लेती तो अच्छा होता। आज बिना वजह स्वागत समारोह का खर्चा नहीं करना होता। जब कोई बड़ा नेता आता है तो सभी को खुशी होती है, चाहे कार्यकर्ता हो या पदाधिकारी लेकिन कांग्रेस में पदाधिकारी ही दुखड़ा रो रो रहे हैं कि पैसे नहीं है। खर्चा कैसे पूरा होगा। यहां तो मातम पसरा हुआ है।
दो महिला नेत्री ने छोड़ी कांग्रेस पर उनकी सेहत पर कोई असर नहीं
उल्लेखनीय है कि पिछले एक पखवाड़े में कांग्रेस के दो दो महिला प्रतिनिधियों ने कांग्रेस से किनारा कर लिया। वजह यही थी कि कांग्रेस में उनकी लगातार उपेक्षा हो रही थी। कोई तवज्जो नहीं मिल रही थी। शुरुआत में पूर्व पार्षद व कांग्रेस की तेजतर्रार नेत्री अदिति दवेसर ने प्रदेश अध्यक्ष को इस्तीफा भेज दिया। यह वही महिला कांग्रेस नेत्री हैं जिन्हें पता था कि कांग्रेस वाले ही विधानसभा के चुनाव में हराने का जतन करेंगे फिर भी कांग्रेस के लिए चुनाव लड़ा और टक्कर भी दी। यदि कांग्रेस वाले उनका साथ देते तो आज भी विधायक भी हो गए होते।
ऐसे पदाधिकारी जिन्हें नहीं पता कि उन्होंने दिया इस्तीफा
यह चर्चा भी चल ही रही थी कि पूर्व मुख्यमंत्री के आने के ठीक 1 दिन पहले गुरुवार को पूर्व पार्षद बबीता नागर ने भी कांग्रेस की कार्यप्रणाली से नाराज होते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्रीनाथ को अपना इस्तीफा भेज दिया। बात तो यह है कि कांग्रेस को संभालने वाले अध्यक्ष महेंद्र कटारिया को यह पता ही नहीं है कि ऐसा भी कुछ हुआ है। जब कांग्रेस को संभालने वाले ही ऐसे रहेंगे तो फिर कांग्रेस का बंटाधार होना तो तय है। वैसे तो पूरा शहर जानता है कि कांग्रेस की गत और दुर्गति क्या हो गई है। बड़े ही नहीं बच्चे भी जानते हैं कि कांग्रेस, कांग्रेस नहीं, बल्कि भाजपा की गोद ली हुई संतान हो गई है। कांग्रेस को पालने पौषणे वाला कोई नहीं है। इसलिए कुपोषित कांग्रेस चुग्गा पानी के लिए तो किसी के तो संरक्षण में रहेगी ही, वरना उसकी रोजी रोटी कैसे चलेगी। जो इधर उधर से मांग तुंग कर पेट भरता हो, वह भला नेता के आने पर खुश कैसे हो सकता है।
… और उन्होंने दिखा दिया पंजा पार्टी को पंजा
खैर जो भी हो 22 अप्रैल का दिन दर्ज होगा आम जनता के लिए घड़ियाली आंसू बहाने के लिए। शुक्रवार का दिन यह तय कर देगा कि कांग्रेस का और क्या हश्र होना है। कांग्रेस के ताबूत में कील ठोकने की शुरुआत होगी, दो नेताओं ने तो पहले ही हाथ जोड़कर स्वागत करने की बजाय टाटा कह दिया है। यानी कि पंजा पार्टी को अपना पंजा दिखा दिया है।