दम तोड़ती योजना : जल जीवन मिशन योजना को पलीता, टंकी में कीड़े, काई और गंदगी, करोड़ों की योजना कटघरे में
⚫ जिम्मेदार झाड़ रहे हैं पल्ला
शरद भट्ट
पिपलौदा, 23 अप्रैल। शुद्ध पेयजल के लिए लागू की गई जल जीवन मिशन योजना आदिवासी अंचल सहित ग्रामीण क्षेत्रों में दम तोड़ती नजर आ रही है। इसका एक नमूना तहसील के ग्राम आम्बा के एकीकृत माध्यमिक विद्यालय में देखने को मिला, यहां बने प्याऊ पर लगी टंकियों में कीड़े, काई तथा गंदगी जमी हुई है। इस विद्यालय में स्कूली बच्चों के साथ ही आंगनवाड़ी केंद्र में आने वाले नन्हे बच्चे भी शामिल है। यहां सफाई की जिम्मेदारी कोई भी अधिकारी कर्मचारी लेने को तैयार नहीं है।
सभी व्यवस्था को एक दूसरे पर टाल रहे हैं, इससे इन बच्चों की जान पर खतरा बन गया है। शुद्ध पेयजल की आस में यहां आने वाले ग्रामीणों को भी यहां के कर्मचारियों की खरी खोटी सुनना पड़ती है। ग्रामीणों का कहना है कि शासन ने शुद्ध पेयजल देने का वादा किया तथा उसे निभा भी रहा है लेकिन शासन के कर्मचारी इस योजना को पलीता लगाने में पीछे नहीं है आदिवासी क्षेत्र होने से यहां की आवाज जिले के वरिष्ठ अधिकारियों तक नहीं पहुंच पाती जिसका लाभ उठाकर यह कर्मचारी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ रहे हैं।
बनने के बाद नहीं हुई अभी तक सफाई
गांव के विनोद चोधरी ने बताया कि प्याऊ बनने के बाद अभी तक प्याऊ की साफ सफाई नहीं हुई है,जिससे बीमारी का खतरा बना हुआ है। गन्दगी से अनजान मासूम यहां अपनी प्यास बुझा कर बीमारियों को न्योता दे रहे हैं और जिम्मेदार लापरवाह बने हुए हैं।
इस मामले मे जिम्मेदार नागरिक दीपक सांकला ने दोनों संस्था प्रमुख से चर्चा की तो उनसे मिले जवाब से पता लगता है कि इस समस्या का निराकरण नहीं होगा।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की जिम्मेदारी
विद्यालय के प्रधानाध्यापक वीरसिंह निनामा का कहना है कि साफ सफाई की जवाबदारी आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की है। हम सफाई नहीं करवा सकते, क्योंकि यह टंकियां आंगनवाड़ी केन्द्र की है। वही दूसरी तरफ आँगनवाडी के मामले में महिला बाल विकास की परियोजना अधिकारी ने बताया कि प्याऊ विद्यालय के भवन में बनी है ईसलिए रखरखाव की जिम्मेदारी शाला की है।
स्कूल के शिक्षक जता रहे हैं अविश्वास
वही विद्यालय के स्वच्छता प्रभारी शिक्षक प्रभुलाल जड़वाल का कहना है कि हम बच्चों को प्याऊ का पानी पीने के लिए नहीं कहते। एक ओर शासन ने करोड़ो रूपये ख़र्च कर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था की है और स्कूल के शिक्षक है कि पानी पीने को मना कर खुद की व्यवस्था पर अविश्वास जता रहे हैं। जिम्मेदारों के ऐसे जवाब से कई सवाल खड़े हो गए हैं।
साफ सफाई की जवाबदारी होना चाहिए तय
ग्रामीणों का कहना है कि दूषित पानी पीने से रोकना किसकी जिम्मेदारी है ? बच्चे अनजाने में इसी तरह दूषित पानी पीते रहेंगे ? प्याऊ के रखरखाव की जवाबदारी तय होना चाहिए। बच्चों को पीने के लिए स्वच्छ पानी उपलब्ध होगा तभी शासन की योजना सफल होगी।