नारद जी की तरह संवेदनशील और बिना किसी से प्रभावित हुए संवाद करने वाला हो हर पत्रकार : डॉ. मेहरा
⚫ विश्व संवाद केंद्र मालवा प्रांत द्वारा आयोजित महर्षि नारद जयंती महोत्सव में मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के चेयरमैन राजेश लाल मेहरा ने कहा
हरमुद्दा
रतलाम, 18 मई। अगर कोई अपने सिद्धांतों के लिए शापित होना भी स्वीकार कर लोक कल्याण की बात कर सकता है, तो वह नारद हैं। साहित्य और समाज में जिस प्रकार व्यासजी की देन है वैसी ही लोक कल्याण वाली पत्रकारिता और संवाद स्थापित करने के मामले में महर्षि नारद की देन है। एक-दो अपवाद को छोड़ दें तो उन्होंने कभी क्रोध नही किया, कभी उनमें झुंझलाट नहीं देखी, हमेशा धैर्य ही दिखा। नारद जी बिना किसी से प्रभावित हुए संवाद करने में पारंगत थे। कौन सी बात कब, किससे कहनी है यह उन्हें पता था। हर पत्रकार को नारद जी की ही तरह संवेदनशील और संवाद करने वाला होना चाहिए।
यह विचार मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के चेयरमैन राजेश लाल मेहरा ने व्यक्त किए। श्री मेहरा ‘विश्व संवाद केंद्र मालवा प्रांत’ के बैनर तले आयोजित महर्षि नारद जयंती महोत्सव में मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित कर रहे थे। रतलाम प्रेस क्लब भवन पर आयोजित महोत्सव की अध्यक्षता रतलाम प्रेस क्लब के अध्यक्ष मुकेश पुरी गोस्वामी ने की। विशेष रूप से डॉ. प्रकाश उपाध्याय मौजूद रहे। डॉ. मेहरा ने कहा कि- नारद जी को हर बात सबसे पहले पता चल जाती थी क्योंकि वे भगवान के मन थे। पत्रकार को भी ऐसा ही होता है। उसे भी हर बात सब से पहले पता चल जाती है। पत्रकार के पैरों के छालों से ही लोकतंत्र मजबूद और सुंदर होता है। यानी पत्रकार जितना भटकेगा और संवाद करेगा उतना ही कम समाज को भटकना पड़ेगा। जो सुर-असुर, देव-दान-मानव से खुलकर संवाद कर ले वही नारद है, सच्चा पत्रकार है।
पत्रकारिता और चुनौतियां तो साथ-साथ
पीएससी चेयरमैन प्रो. मेहरा ने पत्रकारिता की चुनौतियों के उदाहरण भी दिए। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी हुकूमत के वक्त पं. जुगल किशोर शुक्ला ने ‘उदन्त मार्तंड’ नाम से हिंदी का पहला अखबार प्रकाशित किया था। संयोग यह कि जिस दिन इसका पहला अंक प्रकाशित हुआ उस नारद जयंती थी और मंगलवार था। आज भी नारद जयंती है और मंगलवार है। तब अखबार निकलाना और विचारों के संप्रेषण के मामले में अंग्रेजी हुकूमत द्वारा काफी क्रूरता की जाती थी। उदाहरण ‘स्वराज’ समाचार अखबार में संपादक की नियुक्ति के लिए छपा एक विज्ञापन है। इसमें लिखा था संपादक चाहिए। संपादन करने के एवज में मेहनताने के रूप में एक गिलास ठंडा पानी, बैठने के लिए एक कुर्सी और एक संपादकीय प्रकाशित होने पर 10 साल की जेल मिलेगी। जिसके यहां पयाम-ए-आजादी की कतरन भी मिल जाए तो उसके मुंह में गोमांस ठूंस दिया जाता था। तब विचारों को संप्रेषित करने का काम पत्रकारों ने ही किया था। बड़े-बड़े साहित्यकार भी अखबारों से ही निकले हैं।
… और यह भी कहा
⚫ अच्छी किताबें पढ़कर के ही नहीं, अच्छा श्रोता भी अच्छा पत्रकार बन सकता है।
⚫ आज-कल वैचारिक गोष्ठी में संख्या कम रहती है। लाइब्रेरी में जाना कम हो गया है। इसमें सुधार होना चाहिए।
⚫ हमेशा मूल ग्रंथ पढ़ें, टीका नहीं। यह भी सही है कि आज मूलग्रंथ को समझाने वाले विद्वान कम हैं।
⚫ मिट्टी का दीपक जड़ों से, समाज से जोड़ता है किंतु सोने का दीपक तोड़ने का काम करता है, इसलिए मिट्टी का दीपक बनकर जलें।
⚫ पवित्र बनने का साधन ज्ञान है और ज्ञान प्राप्ति का स्रोत श्रद्धा।
⚫ खुद को जानना विशेष है, बाकी तो सबकुछ गूगल पर उपलब्ध है।
⚫ दुनिया के पास कुछ भी नहीं लेकिन भारत के पास सबकुछ है क्योंकि भारत के पास आत्मा को विशुद्ध और पवित्र बनाने का स्रोत ज्ञान है। भारत रहेगा तो दुनिया के पास संस्कृति रहेगी।
रतलाम से है गहरा नाता, यहीं से मिला था यह मुकाम
प्रो. मेहरा ने अपने उद्बोधन से पहले रतलाम से अपने रिश्ते का उल्लेख भी किया। उन्होंने कहा रतलाम ऐसा शहर है जो परायों को भी अपना बना लेता है। डॉ. मेहरा के अनुसार वे 1986-87 में वे बीएससी तृतीय वर्ष के विद्यार्थी थे और देवास में पढ़ते थे। तब रतलाम में होने वाली एक वाद-विवाद प्रतियोगिता काफी महत्वपूर्ण मानी जाती थी। उन्होंने भी उस प्रतियोगिता में भाग लिया था। उन्होंने रतलाम की कालिका माता, मेहंदी कुई बालाजी, ऊंकाला के खड़े गणेश जी और बरबड़ हनुमान जी साथ ही यहां की लोक दीर्घा और लोक संस्कृति तो भी प्रणाम किया। उन्होंने कहा रतलाम की पहचान सिर्फ सेव, सोना और साड़ी से ही नहीं है। यदि मालवा की मौलिक तासीर देखना हो तो रतलाम अवश्य आएं।
प्रो. मेहरा ने बताया वे 2012 में प्रोफेसर बने और छोटे-छोटे स्थानों के महाविद्यालयों में पढ़ाने के बाद पहली बार स्नातकोत्तर कक्षाओं में पढ़ाने का मौका रतलाम के शासकीय कला एवं विज्ञान महाविद्यालय में ही मिला। और 2017 में यहीं से उन्हें लोक सेवा आयोग जाने का सौभाग्य मिला। तब से आब तक के करीब साढ़े चार साल के कार्यकाल में यह पहला मौका है जब उन्होंने किसी मच पर संबोधित किया। यह रतलाम से जुड़ाव के कारण ही संभव हो सका।
महर्षि नारद के संचार दर्शन के अनुसार होगी रतलाम की लोक कल्याणकारी पत्रकारिता- गोस्वामी
अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए रतलाम प्रेस क्लब के नव निर्वाचित अध्यक्ष मुकेश पुरी गोस्वामी ने महर्षि नारदजी के संचार दर्शन की व्याख्या की। उन्होंने कहा नारद जी सृष्टि के पहले पत्रकार थे। जिस प्रकार उन्होंने अपने संचार दर्शन के माध्यम से लोक कल्याणकारी पत्रकारिता की वैसी ही पत्रकारिता रतलाम में रही है और आगे भी इसे बढ़ाने का प्रयास होगा। गोस्वामी ने रतलाम की पत्रकारिता के बड़े लोगों द्वारा उनके जैसे छोटी उम्र के व्यक्ति को अध्यक्ष जैसी बड़ी जिम्मेदारी देने को अपना सौभाग्य बताते हुए सभी के प्रति कृतज्ञता भी ज्ञापित की।
साहित्यकार डॉ. उपाध्याय ने सुनाई कविता, मेहरा दंपती का हुआ अभिनंदन
डॉ. प्रकाश उपाध्याय ने महर्षि नारद पर स्व-रचित रचना सुनाई। इस मौके पर मुख्य वक्ता मुख्य वक्ता प्रो. मेहरा एवं मप्र शासन के जनजाति विभाग में जनजातीय बोली व भाषा अधिकारी माधुरी मेहरा का अभिनंदन भी किया गया। उन्हें रतलाम प्रेस क्लब की नवनिर्चित कार्यकारिणी ने शाल ओढ़ाकर श्रीफल भेंट किया।
इन्होंने किया अतिथियों का स्वागत
इससे पूर्व मंचासीन प्रो. मेहरा एवं गोस्वामी का स्वागत साहित्यकार डॉ. प्रकाश उपाध्याय, डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला, भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी के प्रदेश कार्यसमिति सदस्य महेंद्र गादिया, रतलाम प्रेस क्लब के पूर्व अध्यक्ष राजेश मूणत एवं सुरेंद्र जैन, पत्रकार सुरेंद्र छाजेड़, तुषार कोठारी, वैदेही कोठारी, विजय मीणा, राकेश पोरवाल, किशोर जोशी, राजेंद्र केलवा, हिमांशु जोशी, दिलजीत सिंह मान सहित अन्य ने किया। प्रारंभ में मंचासीन अतिथियों ने महर्षि नारद जी के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्ज्वलित किया। मंचासीन अतिथियों का परिचय डॉ. रत्नदीप निगम ने दिया। संचालन अदिति मिश्रा ने किया। आभार नीरज कुमार शुक्ला ने माना।
ये रहे मौजूद
सुरेंद्र छाजेड़, अजयकांत शुक्ला, अरविंद पुरोहित, डॉ. मुनीन्द्र दुबे, विवेक जायसवाल, पंकज भाटी सहित बड़ी संख्या में गणमान्यजन मौजूद रहे।
डॉ. प्रकाश उपाध्याय ने महर्षि नारद पर सुनाई गई स्व-रचित रचना
हे देवर्षि !
आद्य संचार मनीषी
कल्प – कल्पांतरों पर्यन्त
अनुगुंजित होती रहेंगी
तुम्हारी वीणा की स्वर – लहरियाँ
प्रत्यक्षतः प्रकट शाश्वत
सत्य प्रतिरूपा नारायणी ध्वनियाँ
जब तक धरित्री पर
आलोक के संग तमस
सत के संग असत्
देवत्व के संग दानवत्व
शुचित्व के संग कल्मष
का अस्तित्व है
हे लोकमंगल के संवाहक !
तुम सदा – सर्वदा
दुखों – दुरभिसंधियों
दुर्गुणों – दुष्टताओं
छल छंदों – लिप्साओं के
उलझे समीकरणों के
हल सुझाने
मौजूद रहोगे
अपने वंशजों के बीच
तुम सदैव उनके मध्य होगे
उनका पथ प्रशस्त करने
और,प्रतिगामी ताकतों के विरुद्ध
अविरत संघर्षरत रहने की
दुर्दम्य शक्ति व सामर्थ्य प्रदान करने
और उनका दिशा – दर्शन करने
एक प्रखर – प्रदीप्त – जाज्ज्वल्य
आलोक – स्तंभ के सदृश
प्रतिपल – सतत – अनवरत
अपनी मौजूदगी का
जीवंत अनुभव कराते हुए !!
पीएससी चेयरमैन डॉ. राजेश लाल मेहरा के मन की बात
⚫ लोगों को अपके कारण परेशन न होना पड़े, इसलिए अपने आप को स्वस्थ रखिए, मन को संयमित रखिए ताकि मन के बहकावे में पसे कुछ गलत न हो।
⚫ अपने विचारों को पवित्र रखिए ताकि लोग आपको देखकर सन्मार्ग पर चलने को प्रेरित हों।
⚫ हृदय को परोपकार से भरा रखिए जिससे सब आपको अपना समझें।
⚫ खुद के लिए भले कठोर रहिए मगर अपने अधीनस्थ और आश्रितों के प्रति नरमी बरतें।
⚫ बुद्धि समझ ऐसी विकसित कीजिए कि वह लोगों की भलाई का सोचे न कि लोगों को नीचा दिखाने का।
⚫ अपने को जैसा भी रखें, समय का भान जरूर रखिए। यह लौटकर वापस नहीं आएगा।
⚫ जिसके लिए मनुष्य जन्म मिला है उसे ऊंचे उद्देश्य की पूर्ति में लाकर सार्थिक कीजिए। स्वार्थ में नहीं, परमार्थ में ही जीवन की सार्थकता है।
⚫ प्रकृति ने ऐसा विधान बना रखा है कि मांगने वाले को कुछ मिले न मिले, बन चाहत के जीने वालों को वह बिना मांगे सब दे देती है।
⚫ वह सचमुच भाग्यशाली होते हैं, जिन्हें सबकुछ देने वाले परमात्मा से प्रेम होता है। फिर उस प्रेम को श्रद्धा कह लो या विश्वास, बात एक ही है।