कलियुगी महामारी से बचने का एक ही उपाय है  कथा की वैक्सीन : श्री चिदम्बरानन्द सरस्वती जी

⚫ अखंड ज्ञान आश्रम में 31 वे पुण्य स्मृति महोत्सव का श्रीगणेश


हरमुद्दा
रतलाम, 19 मई। महामंडलेश्वर स्वामी श्री चिदम्बरानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा है कि कलियुगी महामारी से बचने का एक ही उपाय है – कथा की वैक्सीन।  इस वैक्सीन को लगवाने के लिए अखंड ज्ञान आश्रम में सात दिवसीय शिविर रूपी श्रीमद् भागवत कथा का आयोजन किया गया है। कलियुग के दोषों से केवल रक्षा केवल भगवान की कथा और नाम ही समर्थ है । इस कथा को श्रवण करने के लिए तो देवताओं ने अमृत का विनिमय करना चाहा था मगर शुकदेव जी ने धर्म को धंधा बनने से रोका था। आज हमें इन्हीं कथाओं के माध्यम से धर्म के व्यवसायीकरण को रोकना है।  कलियुग के प्रभाव से जिसकी बुद्धि भ्रमित हो गई है, ऐसे तथाकथित वाट्सएप विद्वानों से बचकर रहना ही बचाव का साधन है और इस दिशा में श्रीमद् भागवत कथा हमारा पथ प्रदर्शन करती है।

अखंड ज्ञान आश्रम में ब्रह्मलीन पूज्य स्वामी श्री ज्ञानानन्द जी महाराज के 31 वे पुण्य स्मृति महोत्सव का श्रीगणेश आज से अखंड ज्ञान आश्रम में श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान एवं विष्णु यज्ञ के साथ हुआ। आश्रम संचालक महामंडलेश्वर स्वामी श्री स्वरूपानन्द जी महाराज का के पावन सानिध्य में ज्ञान यज्ञ में देशभर से आये साधु – संत एवं भागवत कथारसिक धर्म लाभ लेने पहुँचे है। आश्रम सहसंचालक स्वामी श्री देवस्वरूपानन्द जी महाराज ने स्वामी जी का स्वागत वंदन कर महोत्सव की शुरुआत करवाई।

श्रीमद् भागवत ग्रंथ को सर पर धारण कर लाते हुए यजमान
पौथी पूजन करते हुए यजमान

इसके पूर्व आश्रम से पोथीजी की यात्रा में मुख्य यजमान श्रीमती मैनाबाई बसंतीलाल अग्रवाल ने  व्यासपीठ पर पहुंचकर पूजन अर्चन किया। 19 से 25 मई तक आयोजित कथा का समय दोपहर 3 बजे से है। स्वागत रतनलाल ठेकेदार, राजेन्द्र वाघेला, अनोखीलाल दवे, रमेश गर्ग, जनक नागल, निमिष व्यास, अनिल झालानी आदि ने किया। 

जयंती और जन्मोत्सव के बीच का भ्रम

स्वामीजी ने समाज को जागरूक करते हुए कहा कि आज समाज में मनमाने आचरण करने वाले ने बड़ा विरोधाभास खड़ा कर दिया है। हनुमान जयंती के स्थान पर जन्मोत्सव मनाये जाने के लिए उल्टे सीधे तर्क देकर समाज में भ्रम फैलाया जा रहा है। यह कहा जाता है कि जयंती केवल मृत व्यक्ति की मनाई जाती है जबकि सच यह है कि जिसकी सदा सर्वदा हर काल में जय होती है, जो अजर अमर है उसकी जयंती मनाई जाती है। हमारी सनातन संस्कृति में कई देवी देवताओं और महा पुरुषों की जयंती मनाकर यही सन्देश दिया जाता है कि वे चिरंजीवी है। जो लोग यह कहते है कि जयंती केवल मृत व्यक्ति की मनाई जाती है ? ऐसे लोगो से मै यह पूछना चाहता हूँ कि  वे अपनी शादी की रजत जयंती क्यों मानते है? स्वर्ण जयंती उत्सव क्यों मनाया जाता है? हमारे यंहा तो नरसिंह जयंती, वामन जयंती, परशुराम जयंती आदि पर्वो की विशाल शृंखला सदियों से चली आ रही है। मनमाने तर्कों से भ्रम फ़ैलाने वालों समाज को बचना जरूरी है।

धर्म को अर्थ के अनर्थ से बचाए

स्वामीजी ने कहा कि हमारे आध्यात्मिक और सामाजिक जीवन की नीव ही धर्म है। संबंधों में धर्म का स्थान जबसे अर्थ लेने लगा तब से परिवार बिखरने लगे। धर्म को भी धंधा बना दिया गया। व्यापार में धर्म होना चाहिए लेकिन धर्म में व्यापार की मानसिकता ने नुक्सान पहुंचाकर भटकाव ला दिया है। आज जरूरत इस बार कि है कि धर्म को अर्थ के प्रभाव से होने वाले अनर्थ से बचाने की है। अर्थ का उपयोग परमार्थ में होना चाहिए।

भागवत जी भगवान का साक्षात् स्वरूप

आपने कहा कि जीवन में संबंधी शमशान तक और देह चिताग्नि तक साथ निभाती है लेकिन यदि जीवन में जिसने धर्म का आश्रय लिया है, उसका साथ तो धर्म मरने के बाद भी निभाता है। यह विवेक बिना कथा श्रवण किये नहीं आ सकता है। इसीलिए कथा की महिमा का  श्रीमद् भागवत जी के महात्म्य में विस्तार से बताया गया है। कथा और सत्संग का आश्रय लेने से जीवन में भक्ति, ज्ञान और वैराग्य की त्रिवेणी का संगम मोक्ष के द्वार तक ले जाता है। श्रीमद् भागवत जी भगवान का साक्षात् स्वरूप है। इसके दर्शन और श्रवण से जीवन में अमिट पुण्यपुंज प्रकट होता है। जो कथा देवताओं को भी दुर्लभ है वह इस घोर कलियुग में हमे सर्व सुलभ है, भला इससे बड़ा हमारा सौभाग्य क्या हो सकता है।

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