विचार और दृष्टि से ही संपन्न होती है रचना : प्रो. चौहान
⚫ जनवादी लेखक संघ का ‘कविता विमर्श’ आयोजित
हरमुद्दा
रतलाम 26 जून। किसी भी रचना का प्रभाव तभी होता है जब वह अपने समय के साथ चले, समय की पहचान करे और समय को परिभाषित भी करे। जब तक रचना में वैचारिकता और समझ नहीं होगी तब तक रचना प्रभावी नहीं हो सकती। युगीन कविता एवं हमारे विभिन्न रचनाकारों को पढ़े बिना कोई रचना नहीं लिखी जा सकती है। लिखने से पहले पढ़ना बहुत ज़रूरी है।
यह विचार जनवादी लेखक संघ द्वारा आयोजित ‘कविता विमर्श’ कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि एवं समीक्षक प्रो. रतन चौहान ने व्यक्त किए। ‘कविता विमर्श’ कार्यक्रम शहर के वरिष्ठ रचनाकार फ़ैज़ रतलामी, रामचंद्र फुहार एवं जुझार सिंह भाटी की कविताओं पर केंद्रित था। तीनों कवियों ने अपनी चुनिंदा कविताएं प्रस्तुत की।
शेर लिखना और शायरी करना दो अलग-अलग पहलू
प्रस्तुत रचनाओं पर अपनी टिप्पणी करते हुए शायर एवं जनवादी लेखक संघ उर्दू विंग के संयोजक सिद्धीक़ रतलामी ने कहा कि शेर लिखना और शायरी करना दो अलग-अलग पहलू हैं। वक़्त के साथ रचनाकार के फ़िक्र में भी परिवर्तन आना चाहिए। इससे न सिर्फ़ रचना के संदर्भ बदलते हैं बल्कि उनमें नवीनता भी आती है। रचना इसी से याद रखी जाती है कि उसने अपने वक्त के साथ चलने की कितनी कोशिश की। उन्होंने उर्दू शायरी के विभिन्न पहलुओं का ज़िक्र करते हुए स्पष्ट किया कि रचनाशीलता से ही किसी रचनाकार को याद किया जाता है।
कविता में कवि की दृष्टि महत्वपूर्ण
कविताओं पर अपनी टिप्पणी करते हुए युवा रचनाकार आशीष दशोत्तर ने कहा कि कविता में कवि की दृष्टि महत्वपूर्ण होती है। कविता की भाषा, शिल्प के साथ कविता का मौन भी महत्व रखता है । कविता में जब तक एक लय नहीं होगी वह पाठक या श्रोता के साथ समन्वय स्थापित नहीं कर सकेगी। उन्होंने कहा कि कविता के साथ कवि तभी न्याय कर सकता है, जब वह उससे जुड़े और उसे पूरी तरह निभाए भी।
कविता की ताक़त तभी महसूस होती जब कहने में कामयाब होती
संचालन करते हुए युसूफ़ जावेदी ने कहा कि कविता की ताक़त को तभी महसूस किया जाता है जब वह अपनी बात कहने में कामयाब होती है। उन्होंने कहा कि हास्य और व्यंग्य दो भिन्न पहलू हैं । इन दोनों पहलुओं पर विचार करते हुए कवि को अपनी रचनाएं लिखना चाहिए।
यह थे मौजूद
कार्यक्रम में जनवादी लेखक संघ के अध्यक्ष रमेश शर्मा, सचिव रणजीत सिंह राठौर, वरिष्ठ कवि श्याम माहेश्वरी, प्रणयेश जैन, मोहन परमार, कारूलाल जमड़ा, मुकेश सोनी ,सुभाष यादव, प्रकाश हेमावत, जवेरीलाल गोयल, गीता राठौर, मांगीलाल नगावत, श्याम सुंदर भाटी सहित साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। अंत में उर्दू ग़ज़ल के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे डॉ. गोपीचंद नारंग, जुबेर रिजवी और शिव कुमार दीक्षित को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।