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प्रदेश निकाय निर्वाचन : यह शिवराज और वीडी के लिए बहुत बड़ी चेतावनी

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संगठन की मजबूती के लिए पहचान रखने वाली भाजपा से यह चूक कैसे हो गई, यह गंभीर सवाल है। क्या यह आत्ममुग्धता वाली खतरनाक स्थिति का संकेत है? या पार्टी को पूरी तरह से युवाओं के हाथ में सौंपने की कोशिशों का नतीजा। जाहिर है नए और पुराने कार्यकर्ताओं के अनुभव में जिस संतुलन की जरूरत होती है, उसमें शायद भाजपा कहीं गलती करती नजर आ रही है। निश्चित ही कई संदर्भों में भाजपा अब पहले जैसी नहीं रह गयी है।

⚫ प्रकाश भटनागर

नगरीय निकाय चुनाव (urban body elections) में बुधवार को भोपाल (Bhopal) के तुलसी नगर (Tulsi Nagar) स्थित एक मतदान केंद्र (Polling Booth) का मामला है। केंद्र के बाहर लगी टेबल पर भाजपा (BJP) का एक कार्यकर्ता मतदाताओं को पर्ची देने का काम कर रहा था। कई ऐसे लोग आये, जो मतदाता परिचय पत्र (voter ID card) की जगह आधार कार्ड (Aadhar card) साथ लिए हुए थे। उनकी समस्या यह भी थी कि उनके घर वोटर वाली पर्ची भी नहीं पहुंची थी। उस भाजपा कार्यकर्ता ने मेरे एक परिचित के सामने कम से कम एक दर्जन ऐसे लोगों की पर्ची बनाने में यह कहकर असमर्थता जता दी कि voter id के नंबर के बगैर मतदाता सूची से उनका नाम ढूंढ पाना नामुमकिन है। परिचित ने कहा, ‘मुझे ऐसा लगा कि वह कोई सरकारी दफ्तर है, जहां बैठा कोई कर्मचारी काम टाल रहा है।’ मजे की बात यह कि पास ही एक निर्दलीय प्रत्याशी (independent candidate) की टेबल लगी थी। भाजपा वाली जगह से निराश लोग वहां पहुंचे। उस टेबल पर मुस्तैद तीन या चार लड़कियों के समूह ने दनादन मतदाता लिस्ट पढ़ी और एक के बाद एक ऐसे लोगों को उनकी पर्ची बनाकर दे दी।

मतदान का प्रतिशत गिरने का असली कारण

यह एक बानगी है, जो इस बात की पुख्ता चुगली कर रही है कि कल हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में मतदान का प्रतिशत गिरने के पीछे असली कारण क्या हैं। डाले गए मतों की संख्या चार प्रतिशत गिर जाना आम बात नहीं कही जा सकती। कम से कम भाजपा (BJP) के स्तर पर तो यह तथ्य गले के नीचे उत्तर ही नहीं सकता। क्योंकि यह वह पार्टी है, जो बूथ स्तर तक अपनी मजबूती के प्रबंधों के लिए पहचानी जाती है। यह वह BJP है, जो बूथ पर अधिक से अधिक मतदाताओं को लाने के लिए कई कार्यक्रम चलाने का दावा कर रही है। जो अपने कैडर के लिए विशेष पहचान रखती है। पन्ना प्रमुख, बूथ विस्तार योजना, मेरा बूथ-सबसे मजबूत जैसे कार्यक्रम चलाने वाला राजनीतिक दल अगर मतदाताओें को बूथ तक नहीं ला सका तो मान लेना चाहिए कि ये सब कार्यक्रम कागजी साबित हो गए। बुधवार को कम से कम प्रदेश के बड़े शहरों में तो भाजपा के ये दावे और कार्यक्रम असफल ही नजर आए।

कोशिश तो दूर जहमत तक नहीं उठाई सोचने की

अखबार देख लीजिए। लगभग हरेक बूथ पर इन शिकायतों को सुना गया कि बड़ी संख्या में मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से कट गए हैं। इससे भी विशाल तादाद में यह बात आयी कि मतदाताओं के घर तक पर्ची ही नहीं पहुंचाई गयी है। निश्चित ही मतदाता सूची में नाम या पर्ची को भेजने का काम आजकल चुनाव आयोग (election Commission) करता है, लेकिन इसमें राजनीतिक दल भी तो हमेशा से सक्रिय रहते आए हैं। भाजपा तो इससे पहले तक इस बात की पूरी फिक्र और बंदोबस्त करती थी कि कोई नाम गलत तरीके से सूची से न हटे और घर-घर तक मतदाता पर्ची पहुंच जाए। लेकिन नगरीय निकायों के पहले चरण के मतदान में तो ऐसा लगा कि इस दिशा में कोशिशें तो दूर, सोचने तक की जहमत नहीं उठाई गयी।

तो चूक रह गई कैसे

कांग्रेस (Congress) से आप इस तरह की उम्मीद नहीं कर सकते। उसका संगठनात्मक ढांचा बहुत कमजोर है। लेकिन संगठन की मजबूती के लिए पहचान रखने वाली भाजपा से यह चूक कैसे हो गयी, यह गंभीर सवाल है। क्या यह आत्ममुग्धता वाली खतरनाक स्थिति का संकेत है? या पार्टी को पूरी तरह से युवाओं के हाथ में सौंपने की कोशिशों का नतीजा। जाहिर है नए और पुराने कार्यकर्ताओं के अनुभव में जिस संतुलन की जरूरत होती है, उसमें शायद भाजपा कहीं गलती करती नजर आ रही है। निश्चित ही कई संदर्भों में भाजपा अब पहले जैसी नहीं रह गयी है। लेकिन इस किस्म की लापरवाही वाली तब्दीली उन लोगों के लिए तकलीफदेह होनी चाहिए जिन्होंने पिछले कुछ सालों में भाजपा को चुनाव लड़ने वाली मशीन का दर्जा दिलाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है। स्थानीय निकायों के चुनाव तो सबसे अधिक जोश खरोश वाले होते हैं, तो फिर इसमें कैसे भाजपा होश खोकर सो जाने वाली मुद्रा में नजर आ गयी, क्या इसे संगठन की विफलता के रूप में देखा जाएगा?

प्रबंध पर चंदे की खरोच के निशान

साफ है कि कल भाजपा मतदाता को बूथ तक लाने वाले अपने प्रयासों (अगर वो किये गए हों तो) में बुरी तरफ असफल रही। मतदाता खुद ही घर से निकला। राज्य की छोटी जगहों पर जरूर मतदान के लिए उत्साह दिखा, लेकिन बड़े शहरों में जो स्थिति बनी उसने भाजपा के प्रबंधों पर संदेह की खरोंचों के निशान उकेर दिए हैं।

जोर का झटका दिया है धीरे से

बहुत संभव है कि भाजपा इन चुनावों में अधिकांश जगहों पर जीत जाए, लेकिन कम से कम चुनाव प्रबंधन के लिहाज से तो कल भाजपा का संगठन बुरी तरह हार गया है। और यदि ये परिस्थिति जीत वाले अति-आत्मविश्वास के चलते बनी है तो फिर यह शिवराज सिंह चौहान (Shivraj Singh Chauhan) से लेकर वीडी शर्मा (VD Sharma) के लिए बहुत बड़ी चेतावनी का संकेत है। भाजपा यदि अब भी नहीं जागी तो फिर 2023 के विधानसभा चुनाव (assembly elections) के नतीजे में शायद मतदाता ही कुछ ऐसा कर गुजरेगा, जिसे झकझोरकर जगाना कहते हैं। 2018 में भी मतदाता ने भाजपा को जोर का झटका धीरे से ही दिया था।

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