गौरव दिलाता लेख : होते हैं बलिदान कई जब देश खड़ा होता है
⚫ रतलाम के गीतकार की पंक्तियां शामिल हुई मुख्यमंत्री के स्वतंत्रता दिवस के उद्बोधन में
⚫ आशीष दशोत्तर
स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के संदेश में रतलाम के दिवंगत गीतकार मदन वर्मा की पंक्तियों का उल्लेख हुआ ,जो समूचे रतलाम के रचनाकारों के लिए गौरव की बात है। मुख्यमंत्री के उद्बोधन की शुरुआत में ही मदन वर्मा की पंक्तियां ” होते हैं बलिदान कई जब देश खड़ा होता है, अपने जीवन से भी बढ़कर देश बड़ा होता है” का उल्लेख कर इस रचनाकार को शिद्दत से याद किया गया है।
गीतकार श्री वर्मा ऐसे रचनाकार रहे जिन्होंने अपनी रचनाओं के ज़रिए एक नई उम्मीद जगाने का कार्य किया। वे साहित्यिक फलक पर बहुत कम पेश हुए मगर उनकी रचनाएं आज भी उनके न होने के बावजूद ज़िंदा हैं। यही उनकी रचनात्मक उपलब्धि है । शिक्षक रहते हुए मदन वर्मा ने कितने ही बेहतरीन गीतों की रचना की । एक नई उम्मीद जगाते ये गीत प्रेरक प्रतीत होते रहे।
ज़िंदगी के साज़ पर आशा के सुर सजाएं ,
आओ ऐसा गीत गाएं।
सुख की भीख मांगे क्यों ,सुविधा को क्यों तरसे
क्यूं न हम बादल बनकर बंजर धरती पे बरसें
सुख- सुविधा के फूल हम आओ मिलकर खिलाएं।
श्री मदन वर्मा न सिर्फ एक अच्छे गीतकार थे बल्कि संगीत में भी काफी दखल रखते थे। उन्होंने अपने जितने भी गीत लिखे उनको खुद ने ही कंपोज किया। उनका कंपोजिशन भी इतना प्रभावी हुआ करता था कि सुनने वाले मुग्ध हो जाया करते थे। उनके गीत आज भी प्रेरक वक्तव्य की तरह दोहराए जाते हैं।
एक समय जब विद्यालयों में सांस्कृतिक कार्यक्रम गरिमामयी हुआ करते थे, तब मदन वर्मा के लिखे और संगीतबद्ध किए हुए गीत विद्यार्थियों द्वारा सस्वर प्रस्तुत किए जाते थे तो उसका प्रभाव देखने लायक हुआ करता था। वे गीतों के ज़रिए समय की विद्रूपताओं का भी चित्रण करते रहे । किस तरह हमारे समय को कई सारे परदों में क़ैद किया जा रहा है। किस तरह चेहरे पर चेहरे लगा कर जनता को भ्रमित किया जा रहा है , इन सब का चित्रण मदन वर्मा ने अपने गीतों में बखूबी किया। इसके साथ ही उन्होंने हालात को बदलने की प्रेरणा भी अपने गीतों में दी। रचना वही सार्थक होती है जो न सिर्फ हालात को सामने लाए बल्कि हालत को बदलने की बात भी करे। मदन वर्मा के गीत ऐसी ही प्रेरणा देते हैं।
झूठ के परदे में यहां सच को बंद किया है,
अंधियारे ने उजियारे को सारा जला दिया है,
फिर से बसाएं किरणों की बस्ती सूरज नया उगाएं।
हम बदलें समय की धारा, मौसम का रंग बदलें,
हम बदलें दुनिया का चलन जीने का ढंग बदलें,
दुनिया हमें न अपनाए तो दुनिया नई बसाएं।
सामान्यतः एक रचनाकार को या तो किसी विचारधारा में क़ैद कर दिया जाता है या किसी खेमे से बांध दिया जाता है । मदन वर्मा इन सब से मुक्त थे । वे साहित्यिक आयोजनों में बहुत कम शिरकत किया करते थे, मगर विद्यार्थियों के बीच और अपने चाहने वालों से मिलते समय उसी रचनात्मक अंदाज़ से मिला करते थे । उनके पास रचनाओं की कमी नहीं थी। वे कई बार अपने गीतों को लेकर काफी भावुक भी हो जाया करते थे।
जीवन तो दिया तूने ,
जीना भी हमें सिखला देना,
जब-जब हम गिरने लगें,
तू ही सहारा दे देना।
जीवन की अंधियारी राहें,
कौन जाने कहां ले जाए।
पग-पग पर तूफान खड़ा है,
राह कहीं नहीं खो जाए।
जब हम राह भटकने लगें
तू राह हमें दिखला देना।
एक रचनाकार ही ईश्वर से उसके होने या न होने की बात कर सकता है । उसे अपने मन की बात से अवगत करवा सकता है। मदन वर्मा इन अर्थों में काफी आगे जाकर अपनी बात कहते रहे। उन्होंने ईश्वर की सत्ता को चुनौती नहीं दी बल्कि उन्होंने मनुष्य के महत्व को रेखांकित करते हुए ईश्वर और मनुष्य के बीच के रिश्तों को सामने रखा।
तेरी कृति को हम जग में
इतना महान बनाएंगे ।
तूने तो इनसान बनाए,
हम भगवान बनाएंगे ।
तू तो बस इतना करना
इंसान हमें बना देना।
यहां इनसान और ईश्वर के द्वंद्व को समझा जा सकता है। ईश्वर की नायाब कृति मनुष्य है। वही मनुष्य एक इनसान नहीं बन पाया है मगर भगवान को बनाने की बात करने लगा है। कई सारे अंतर्विरोध यहां नज़र आते हैं। मदन वर्मा ने देश भक्ति गीतों की रचना भी की। उनके कई गीतों के एल्बम भी निकले। वे निरंतर सक्रिय रहे और अपनी रचनाओं और अपनी कंपोजिशन को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत रहे। वे मुंबई का सफर भी करते रहे और वहां कलाकारों के साथ अपनी रचनात्मकता को पहचान दिलाते रहे। मायानगरी में अपनी पहचान कायम करने में कई ख़तरे भी हैं और कितने ही दर्द भी। मदन जी ने उन्हें भी सहा, मगर लगे रहे।
श्री वर्मा अपनी तरह के अलग थे इंसान थे। उन्होंने कभी अपने आप को प्रचारित नहीं किया। यहां तक कि उनके लिखे कई देशभक्ति गीत ऐसे भी हैं जो अक्सर राष्ट्रीय आयोजनों में दोहराए जाते हैं, मगर इन गीतों को दोहराने वालों को यह नहीं पता कि इसके रचनाकार मदन वर्मा हैं।
होते हैं बलिदान कई तब देश खड़ा होता है,
अपने जीवन से भी बढ़कर देश बड़ा होता है।
वो आदमी, आदमी क्या,
बोए जो नफ़रत के कांटे,
भाषा और मज़हब के लिए
देश को टुकड़ों में बांटे।
धर्म बड़ा है ,न भाषा बड़ी है, देश बड़ा होता है ।
हमें याद है इस ज़मीं को,
दुश्मन से कैसे बचाया,
शहीदों ने हर एक कण के लिए,
हंसते हुए खूं बहाया।
उनके खून-पसीने से ही देश खड़ा होता है।
मदन वर्मा ने जितना भी लिखा वह बेहतर लिखा। उनकी रचनाओं को अभी पूरी तरह सामने लाए जाने की आवश्यकता है। वे अपनी रचनाओं के माध्यम से हमारे बीच आज भी मौजूद हैं, यही हमारी धरोहर है।
⚫ 12/2, कोमल नगर,
बरवड़ रोड
रतलाम-457001
मो. 9827084966