कुछ खरी-खरी : शहर में चौपायों का राज, जिम्मेदार नहीं कर रहे कोई काज, आमजन नाराज, चुनाव जीतने वाले हो गए सरताज
हेमंत भट्ट
देश के दिग्गज साहित्यकार, समाजसेवी, सेंव, सोना, सद्भावना, सामाजिक सरोकार के लिए प्रसिद्ध शहर में चौपायों का राज है। शासन द्वारा नियुक्त जिम्मेदार अधिकारी और प्रदेश व शहर सरकार में जन प्रतिनिधित्व करने वाले शहर के प्रति वह कोई कार्य नहीं कर रहे हैं, जिनकी आमजन को जरूरत है। शहर के प्रथम नागरिक हो या वार्ड के पार्षद सब के सब सरताज हो गए हैं। इसीलिए आमजन नाराज है लेकिन उनकी नाराजगी का असर कहीं नजर नहीं आ रहा है। नजर आ रहा है तो शहर में गंदगी का आलम, सड़कों पर गोबर, कुत्तों की गंदगी, कचरा, सड़कों पर नालियों का बहता पानी। अतिक्रमण से परेशानी, बस यही रह गई है शहर की रवानी।
नगर निगम का चुनाव जीतने के बाद और आयुक्त के सेवानिवृत्त होने के बाद शहर बेबस और लाचार नजर आ रहा है। जहां देखो वहां मवेशियों का बसेरा है। कुत्तों का आतंक है। इनके द्वारा शहर को बद से बदतर किया जा रहा है। रही सही कसर रही सही कसर चार पहिया वाहन वाले पूरी कर रहे हैं। घर में पार्किंग की जगह होने के बावजूद सड़क पसरे पड़े हैं। यातायात अवरुद्ध हो रहा है। लोग परेशान हैं। यातायात जाम है। अतिक्रमण का दुकानदारों ने कर रखा पूरा इंतजाम है। अव्यवस्था जिम्मेदार सुधारने में नाकाम है।
शहर में चलने की सजा धूल खाकर
नवागत निगम आयुक्त नगर निगम आयुक्त ने जब पदभार ग्रहण किया तो उन्होंने शहर भ्रमण किया गड्ढों की भराई के निर्देश दिए तो पहाड़ों से खोदकर मिट्टी गिट्टी सहित डाल दी जोकि दूसरे दिन की बारिश में धुल गई। गड्ढे वही के वही। कुछ गड्ढों को तो तिबड्ढा बना दिया ऐसा लगता है ऊंट बैठकर सवारी कर रहे हैं। जैसे ही बारिश का दौर रुका, वाहनों से उड़ने वाली धूल खाद्य वस्तुओं विराजित हो रही है। लोगों के ऊपर भी उड़ रही है कई बार तो ऐसा लगता है कि धूल में स्नान हो रहा है। स्वागत हो रहा है या फिर शहर में चलने की सजा मिल रही है।
मोरम और चूरी की जगह डाल दिए बड़े-बड़े पत्थर
शांति समिति की बैठक में जब सदस्यों ने सड़कों के गड्ढों का मुद्दा उठाया तो जिम्मेदारों ने निर्देश दे दिया गड्ढों की भराई का। पर उन्हें यह देखने की फुर्सत नहीं कि गड्ढों में आखिर क्या कर रहे हैं। गड्ढों से 4 गुना मोटे पत्थर डाल कर चले गए, जो सड़कों पर चारों ओर फैल गए हैं। दुर्घटना को न्योता दे रहे हैं लेकिन निर्देश देने वालों को इस से कोई मतलब नहीं शहरवासी जिए या मरे। हाथ टूटे, हड्डी टूटे, पसली टूटे, माथा फूटे। यह सभी दिक्कत दो पहिया वाहन चालकों को आ रही है वहीं चार पहिया वाहनों से सड़क पर बिखरे पत्थर गोलियों की गति से निकलकर राहगीरों पर लग रहे हैं।
तो वे करते हैं दादागिरी
यातायात व्यवस्था को तो सुधारने का नाम लेना ही लगता बेमानी हो गया है। इस दिशा में कोई कार्य नहीं किया जा रहा है ऑटो रिक्शा हो या मैजिक वाहन सब के सब मनमानी कर रहे हैं। जब मन में आता है। जहां इच्छा होती है, वहां रुक जाते हैं। सवारी का इंतजार करते हैं भले ही दूसरे लोग उनके पीछे परेशान हो। उससे इनको कोई मतलब नहीं और यदि कोई बोलता है तो दादागिरी करते हैं सो अलग। उस दौरान पुलिस भी कुछ नहीं करती।
छोटे वाहन प्रतिबंधित मगर स्कूल की बसें नहीं
सकड़े होने के कारण जिन मार्गों पर मैजिक वाहन जैसी सुविधा प्रतिबंधित की गई है, उन मार्गों पर स्कूल के बड़े बड़े वाहन गुजरते हैं और छोटे-छोटे बच्चों को न केवल उतारते हैं अपितु उनके घर तक छोड़ने भी जाते हैं। तब तक बड़ा वाहन वहां खड़ा रहता है। यातायात को अवरुद्ध होता हैं। दोपहर के समय तो इन स्कूली वाहनों की बारात निकलती है। एक ही मार्ग पर चार चार बसें खड़ी हो जाती है और लोग हैरान परेशान। मगर इन पर कार्रवाई नहीं हो रही। आम जनता की परेशानी जिम्मेदारों को नजर नहीं आ रही है। जबकि चुनाव के पहले बड़े-बड़े वादे किए थे।
और हो जाती है इतिश्री
शहर वासियों को मूलभूत सुविधाओं के लिए मोहताज होना पड़ रहा है। ना सड़क पर झाड़ू निकल रही है और ना ही नालियों की सफाई हो रही है। हाल ही में बनी नई सड़कों पर बने डिवाइडर के आसपास तो घास और पौधे उगाने लगे हैं जो कि बता रहे हैं कि वहां पर झाड़ू लगे कितना समय बीत गया है। कचरा उठाया नहीं जाता है। उड़ता रहता है इधर उधर। इतना ही नहीं प्रतिदिन जल प्रदाय भी नहीं हो रहा है। 1 दिन छोड़कर होने वाला जल प्रदाय भी कई बार पटरी से उतर जाता है। बस शहर में ऐलान हो जाता है सुबह होने वाला जल प्रदाय शाम को होगा या शाम को होने वाला जल प्रदाय सुबह होगा। और हो जाती है इतिश्री। इसके एवज में कोई व्यवस्था नहीं होती है।
घूल गई पूरे महकमे में मक्कारी की भंग
आमजन का तो यही कहना है कि ट्रिपल इंजन की सरकार के बाद तो और भी हालात बिगड़ गए हैं। नगर निगम में जब तक प्रशासक का राज था, तब तक कुछ तो ढंग का काम हो रहा था लेकिन अब तो पूरे महकमे में मक्कारी की भंग घुल गई है। 2 महीने पहले तक जो पार्षद उम्मीदवार और पार्षद उम्मीदवार पति मतदाताओं को तवज्जो दे रहे थे, वह आज नजरअंदाज करके निकल रहे हैं। उनको वार्ड से कोई लेना देना नहीं है, बस नगर निगम में उनकी दुकानदारी का टेंडर जो मिल गया।