गांधी जयन्ती के अवसर पर एक संवाद : तो वह तंबाकू मसलते हुए कहेगा गांधी ने कर दिया देश को बर्बाद, आइए इंसानों की बेहतर नस्ल के लिए गांधीजी को करें आत्मसात

⚫ गजेंद्र सिंह राठौर

⚫ अहिंसा का पुजारी गांधी आज अपने देश में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। गली की नुक्कड़ पर आवारागिर्दी में व्यस्त तम्बाकू मसलता युवा (?) भी गांधीजी का जिक्र आते ही एक भद्दी गाली देकर कहेगा कि गांधी ने देश बर्बाद कर दिया। देशभक्ति का पाठ पढ़ाने वाले गांधीजी गाली के ही तो हकदार है! दुखद। नैतिक शिक्षाओ को जीवन में उतारकर, उस दौर में करोड़ो दिलो पर राज करने वाले गांधी को यही मिलना चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण ⚫

—‘पीके’ का एलियन भोजपुरी में कहता है,”समझ में आया……कि इस फ़ोटो (हमारे नोट जिस पर गांधीजी की तस्वीर छपी रहती है) का भैल्यू सिर्फ कागज पर है।दूसरे कागज पर इस फ़ोटो का भैल्यू जीरो बटा लूल।” गांधीजी वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आम जीवन में कितने अप्रासंगिक बना दिए गए है पीके के इस व्यंग्य कथन से ये यथार्थ प्रतिबिम्बित होता है।

—महान वैज्ञानिक आइंस्टीन ने जिनके 70 वे जन्मदिवस पर कहा था कि”हजार साल बाद आने वाली पीढियां इस बात पर बहुत मुश्किल से विश्वास करेगी कि हाड़ और मांस का कोई एक ऐसा इंसान इस धरती पर आया था। “सही थे आइंस्टीन उस समय,जिस व्यक्ति की एक झलक पाने के लिये लाखो लोग इकट्ठे हो जाये उस दौर में,जिसके एक इशारे पर असहयोग हो जाए,सविनय अवज्ञा हो जाए,भारत छोड़ो आंदोलन हो जाए, कुछ तो खास होगा उस शख्स में।

चंपारण से लेकर लन्दन तक गूंज थी गांधी की

—क्या होगा वो खास। लगान की मार झेलते किसान, कोड़ो की पीड़ा पीठ पर झेलता मजदूर और जिंदगी को कर्ज की तरह ढोता आम आदमी उस दौर के असली भारत थे। मध्यम वर्ग अपनी दाल-रोटी-डर में जी रहा था और धनाढ्य वर्ग अंग्रेजो के तलवों में।गांधीजी ने उस समय अहिंसा को हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। आजादी सब चाहते थे, गांधीजी ने उन्हें एकजुट किया उस दौर में, वो भी अपने विचारो और आचरण से। वे लोग जो देश को आजाद तो देखना चाहते थे पर शहीद चंद्रशेखर आजाद की तरह बन्दूक उठाने और शहीद भगत सिंह की तरह धमाके की गूंज ब्रिटीश हुकूमत को नही दे पा रहे थे, डरते थे ,उन करोड़ो लोगो की आवाज बनकर अग्रेजी हुकूमत पर गरजे गांधीजी। चंपारण से लेकर लन्दन तक गूंज थी गांधी की। जनमत का भारी दबाव बनाया था गांधीजी ने। “दे दी हमे आजादी बिना खड्ग बिना ढाल” का अभिप्राय भी तो यही है।

गांधी ने कर दिया देश को बर्बाद उनकी नजर में

—वही अहिंसा का पुजारी गांधी आज अपने देश में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। गली की नुक्कड़ पर आवरगिर्दी में व्यस्त तम्बाकू मसलता युवा (?) भी गांधीजी का जिक्र आते ही एक भद्दी गाली देकर कहेगा कि गांधी ने देश बर्बाद कर दिया। सही बात है सरदार पटेलजी, आंबेडकरजी, नेहरूजी, डॉ राजेंद्र प्रसादजी को साथ लेकर करोड़ो भारतीयों को सत्य, त्याग, अहिंसा, सद्भावना,समानता, मन की पवित्रता, व्यक्ति की नैतिक प्रगति, सभी से प्रेम, शांति का मार्ग और सबसे ऊपर देशभक्ति का पाठ पढ़ाने वाले गांधीजी गाली के ही तो हकदार है! दुखद। सत्य ही दुनिया का एकमात्र सत्य है, लक्ष्य तक पहुचने का रास्ता पवित्र हो, पहले खुद को बदलो, बुरा मत देखो-मत सुनो-मत कहो, समय ही धन है आदि शिक्षाओ को जीवन में उतारकर उस दौर में करोड़ो दिलो पर राज करने वाले गांधी को यही मिलना चाहिए!दुर्भाग्यपूर्ण।

उनका ज्ञान और मैं और मर्म दोनों शून्य

—जो बिना अच्छे सिद्धान्तों के राजनीती को धिक्कारते थे,जो बिना नैतिकता के व्यापार को बुरा मानते थे,जो बिना अंतरात्मा के सुख की प्राप्ति को पाप मानते थे ।जो कहते थे स्वयं अमल में लाते थे।जिनके महान जीवन पर उस दौर के महान लोगो को आश्चर्य होता था वो आज गाली खा रहे है उनसे, ,जिन्होने कुछ तथाकथित बहादुरो (?) लोगो को कहते सुना है कि कोई गांधी नाम का शख्स इस देश में हुआ था जो कहता था कोई एक गाल पर मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। इससे आगे उनका ज्ञान और मर्म दोनों शून्य है। गांधीजी जब अफ्रीका में ट्रेन से फेके गए तो उन्होंने इसी मर्म को अपना हथियार बनाया,देश की आजादी का।आज अफ्रीका में गांधीजी दिल से पूजनीय है, अमेरिका में बराक ओबामा के आदर्श है गांधीजी, और हमारे देश में?

… तो फिर क्यों नहीं अपनाया जा सकता उनके आदर्शों को

—हमे समझना ही होगा गांधीजी को, उनके विचारो को,उनकी समतामूलक समाज की अवधारणा को, उनके सर्व-धर्म मूल्यों के प्रति सम्मान के भाव को, स्वदेशी के प्रति अनुराग, अहिंसा के धर्म और सत्य के प्रति आग्रह को। जब गांधीजी का भजन “रघुपति राघव राजा राम,पतित पावन सीताराम। “ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सबको सन्मति दे भगवान” जीवन के अंतिम सत्य के रूप में मानव की अंतिम यात्रा में गाया जा सकता है तो फिर जीवन यात्रा में गांधीजी के आदर्शो को क्यों नही अपनाया जा सकता। आइए, इंसानो की बेहतर नस्ल के लिए गांधीजी को आत्मसात करें। जय हिन्द।

गजेंद्र सिंह राठौर,
उप प्राचार्य, सी एम राईज विनोबा स्कूल, रतलाम

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