विलक्षण प्रतिभा की धनी थी विचक्षणाश्रीजी

हरमुद्दा
रतलाम,10 जून। मृत्यु न क्षण देखती है, न स्थान,उसका समय निश्चित है। यह जब आएगी, तो भी दुख नही। मैं जाऊ, यह भी दुःख नहीं हो, यही समाधि है। ऐसे विरले व्यक्तित्व वाले हमेशा समभाव में रमण करते हैं। शासन दीपिका श्री विचक्षणाश्रीजी म. सा. ऐसी ही विलक्षण प्रतिभा की धनी थी।
यह भाव महासती श्री समीक्षणाश्रीजी ने शासन दीपिका श्री ज्ञानकंवरजी म. सा. के सान्निध्य में आयोजित श्रद्धान्जलि सभा में वक्ताओं ने गुणानुवाद करते हुए व्यक्त किए।
गुरु आज्ञा में हमेशा समर्पित
समता भवन नोलाईपुरा पर आयोजित सभा में साध्वी श्री ने कहा कि विचक्षणाश्रीजी आत्म साधक के साथ-साथ सेवा और सरलता की प्रतिमूर्ति थी। आत्मा को हमेशा सजग रखकर गुरु आज्ञा में हमेशा समर्पित रहने वाली थी। दीक्षा का लंबा अंतराल और त्याग, तपस्या के साथ साथ उत्कृष्ट संयम उनकी विशेषता रही।

संथारा पूर्ण देवलोकगमन 

उनका जन्म पिपलिया मंडी जिला मंदसौर में वर्ष 1955 में हुआ व दीक्षा सन 1974 में आचार्य श्री नानेश के पावन सान्निध्य में हुई। उनके परिवार से लगभग 17 सदस्य दीक्षित हुए है। आचार्य नानेश और आचार्य रामेश के शासन को शोभायमान कर रही साध्वीश्री की विहार के दौरान तबीयत बिगड़ी व जलगाँव में संथारा पूर्ण देवलोकगमन हुआ l
इन्होंने भी रखे भाव
सभा को नवदीक्षित श्रीरूपयशाजी म. सा. ने भी संबोधित किया। संघ अध्यक्ष मदनलाल कटारिया, पूर्व अध्यक्ष महेन्द्र गादिया,चन्दन पिरोदिया,कोषाध्यक्ष सुदर्शन पिरोदिया,युवा संघ के नीलेश मूणत, महिला मंडल अध्यक्ष सरोज पिरोदीया, आदि ने भाव रखे। संचालन मंत्री सुशील गोरेचा ने किया।

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