चरागाह बनने की राह पर हनुमान ताल : लोगों की मेहनत से सवार रहा है लेकिन जिम्मेदारों की नजरअंदाजी से बिगड़ रही है सूरत
1 min read⚫ मुद्दे की बात यह है कि हनुमान ताल भी अमृत सागर की राह पर
⚫ गंदगी से आ रही है बदबू
⚫ वेस्ट वेयर का बंद नहीं किया गया गेट निकल रहा है पानी
हरमुद्दा
रतलाम, 27 अक्टूबर। शहर के उत्तरी क्षेत्र का रमणीक एवं पर्यटन स्थल हनुमान ताल लोगों की मेहनत से जहां स्वर रहा है, वही जिम्मेदारों की लापरवाही की बदौलत उसका स्वरूप बिगड़ रहा है। सीधी सच्ची भाषा में कहें तो हनुमान ताल को अमृत सागर की राह पर चलाने का जतन शुरू कर दिया है। जिस तरह से अमृत सागर तालाब गंदगी की भेंट चढ़ गया और जिम्मेदारों के चरागाह का स्थल बन गया है, उसी तरह हनुमान ताल भी हो सकता है यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया तो। मुद्दे की बात यह है कि हनुमान ताल की दुर्दशा को देखकर सुबह भ्रमण करने वाले काफी व्यथित और दुखी है, जिन्होंने हनुमान ताल की सूरत संवारने में बहुत कुछ योगदान दिया है।
घूमने आने वालों की सेहत पर असर
ठीक अमृत सागर की तरह ही हनुमान ताल भी बनने लगा है। हनुमान ताल पर पटरी पर क्षेत्र के लोग सुबह मॉर्निंग वॉक के लिए आते हैं। अखिलेश गुप्ता, राकेश पोरवाल, धर्मेंद्र मंडवारिया सहित अन्य लोगों का कहना है कि जिम्मेदारों की लापरवाही का ही नतीजा है कि आसपास के क्षेत्र से मकानों का गंदा पानी और गंदगी हनुमान ताल में मिल रही है। इतना ही नहीं क्षेत्र के लोग इसमें गंदगी भी डाल रहे हैं। इसके चलते पानी सड़ांध मारने लगा है। काई जमने लगी है। सुबह घूमने वालों को बदबू परेशान कर रही है। लोग तो सुबह सेहत बनाने के लिए घूमने आते लेकिन गंदगी के चलते हुए उनकी सेहत खराब हो रही हैं।
तो हो जाएगा हनुमान ताल का अस्तित्व खत्म
श्री गुप्ता, श्री मंडवारिया, श्री पोरवाल का कहना है कि जिम्मेदारों द्वारा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। वैसे 15 अक्टूबर तक बेस्ट वेयर पर दरवाजे लगा दिए जाने चाहिए थे, लेकिन इस बार नहीं लगे। इसलिए ताल का पानी लगातार निकल रहा है इसका असर आसपास के क्षेत्र के जल स्तर पर भी पड़ेगा। जागरूक लोगों का कहना है कि समय रहते यदि ध्यान नहीं दिया गया तो हनुमान ताल का अस्तित्व खत्म होने में समय नहीं लगेगा और अमृत सागर बन जाएगा। लेकिन सुधारने के लिए दशकों का समय लग जाएगा। अतः जिम्मेदारों को समय रहते इसकी सुध लेना चाहिए।
चरागाह अमृत सागर के लिए योजनाएं बनती रही रुपया आया लेकिन उद्धार नहीं
शहर के जिम्मेदार और जागरूक लोगों मनोज शर्मा, सतीश राठौर, शांतु गवली सहित अन्य लोगों का कहना है कि जिस तरह शहर के दक्षिण क्षेत्र के अमृत सागर की दुर्दशा हुई है न केवल इस तालाब में गंदा पानी नालों के माध्यम से जा रहा था, बल्कि इस तालाब में क्षेत्र की गाय भैंस सुबह से शाम तक पानी में रहती थी और सब कुछ इसी में करती थी। इसी के साथ ही क्षेत्र के कई सारे वे लोग जिनके घर में शौचालय की सुविधा नहीं थी, वह भी मल मूत्र विसर्जन के लिए यही आते थे। उस समय भी जिम्मेदारों ने रोका नहीं था। इसीलिए अमृत सागर शहर का सबसे बड़ा गंदगी का महासागर बन गया। शहर भर के नालों का गंदा पानी इसमें आता रहा। गंदगी आती रही और कई से लोग परेशान होते रहे। दशकों तक यह कार्रवाई चलती रही और जिम्मेदारों की नींद नहीं खुली। 4 दशक से अधिक समय हो गया। अमृत सागर झील का स्वरूप नहीं ले सका। न ही उसमें नौका विहार हो सका।
सामाजिक संस्थान ने श्रमदान करके शुरू की थी सुधारने की कोशिश
श्री शर्मा, श्री गवली, श्री राठौर का कहना है कि कुछ साल पहले शहर के लोगों ने गंदगी के महासागर अमृत सागर में श्रमदान कर इसे सुधारने की कोशिश की, लेकिन सरकारी अमला ऐसा नहीं चाहता था कि बिना राशि खर्च हुए उद्धार हो जाए। इसलिए कुछ सालों में जिम्मेदारों ने जरूर योजनाएं बनाई ताकि अधिकारी चर सके। अमृत सागर चरागाह बन गया और योजनाएं बनती रही रुपए आते रहे लेकिन उद्धार नहीं हुआ। अभी भी केवल बाहरी दर्शन के लिए ही रुपए खर्च हो रहे हैं जबकि गंदगी के महासागर के लिए कोई मुहिम नहीं उठाई गई है। तालाब की गाद, गंदगी और पानी तो वैसा का वैसा ही है। आसपास की दीवारें बनाने से केवल तालाब की सुंदरता बढ़ेगी, उसकी उपयोगिता नहीं।
तालाब का सुरक्षा चक्र टूटता गया और जोड़ते गए जिम्मेदार
मुद्दे की बात पर क्षेत्र के बुजुर्गों का कहना है कि प्राचीन धरोहर अमृत सागर की आसपास की दीवारें भी सरकारी तंत्र की लापरवाही के चलते ही गिरी है और उन्होंने गिराई भी है। चाहे वह तालाब की पाल पर बनी पुरानी छतरी हो या दीवारें। सफाई के नाम पर उन्हें तोड़ा गया। यहां तक कि तालाब की दीवारें तो काफी ऊंचाई लिए हुए थी लेकिन भराव के चलते हुए काफी अंदर दब गई और दीवारें छोटी-छोटी साबित होने लगी तो अब दीवार की ऊंचाई बढ़ाने का जतन शुरू हुआ, ताकि फिर उन्हें जोड़कर अपने लिए कुछ जोड़ सकें।
⚫ फोटो : राकेश पोरवाल