कुछ खरी-खरी : प्रदेश के तहसीलदारों की हड़ताल के एक्शन का रिएक्शन, तबादला, पदोन्नति, … डरते हुए डराया,… दोनों तरफ गांधी की आंधी,… औचित्य से परे दिशा समिति की बैठक
हेमंत भट्ट
प्रदेशभर के पटवारियों ने पदोन्नति, वेतन विसंगति सहित अन्य मांगों को लेकर तीन दिनी हड़ताल शुरू कर दी। उन्हें पता भी नहीं था कि उनकी मांग इतनी जल्दी मांग ली जाएगी। संभवतया पहली बार ऐसा हुआ होगा कि हड़ताल के तुरंत बाद प्रदेश सरकार ने निर्णय ले लिया। पहले तो तहसीलदारों का तबादला कर दिया और फिर पदोन्नति आदेश जारी कर दिया। जबकि तबादला आदेश तो कहीं नजर नहीं आया लेकिन पदोन्नति आदेश जरूर दिखाई दिया। इसके चलते अब पटवारियों में हड़कंप मचा हुआ है। बैठे ठाले मुसीबत मोल ले ली। इधर बच्चों की परीक्षाएं चल रही है और अब उनको बोरिया बिस्तर बांध कर अन्य जिले में जाना पड़ रहा है, वह भी दूर। तहसीलदारों की हड़ताल के एक्शन का ऐसा रिएक्शन होगा, उन्होंने सोचा नहीं था।
और उन्होंने डरते हुए डराया
पिछले दिनों शहर के हिस्ट्रीशीटर गुंडे अज्जू शेरानी के कब्जे से लोगों की जमीन मुक्त करवाने में कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। उनकी काफी प्रशंसा हुई कि उन्होंने अज्जू शेरानी को साफ शब्दों में कहा कि गुंडागर्दी भुला दूंगा। नेस्तनाबूद कर दूंगा। इस दौरान भारी संख्या में पुलिस बल सहित प्रशासनिक अधिकारी मौजूद थे। कलेक्टर साहब ने उसे डराने की हिम्मत की लेकिन खुद डरते डरते, उसे डराया जबकि अज्जू उनकी आंखों में आंखें डाल कर खड़ा रहा। जितनी बार उन्होंने धमकी भरे शब्द सुनाए, तब तक उनकी गर्दन इधर-उधर हुई। दोनों आमने-सामने थे मगर नजरों से नहीं। आंखों में आंखें डाल कर नहीं डरा पाए। यह वीडियो भी वायरल हुआ जिसमें लोगों का यही कहना था कि आखिर कलेक्टर साहब डर क्यों रहे हैं? बार-बार इधर उधर देख रहे हैं और उसे डांट रहे हैं। इस दौरान कलेक्टर साहब किसी मेहता को बुला रहे थे मगर वह नजर नहीं आया।
मालवा में “गांधी” की “आंधी”
भाजपा हो या कांग्रेस दोनों तरफ गांधी की आंधी छाई हुई है। जिले के दो नेता मालवा के गांधी के नाम से प्रसिद्ध हुए हैं। अपनी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा के लिए प्रसिद्ध दिवंगत प्रभु दयाल गेहलोत को क्षेत्र में “मालवा का गांधी” कहा जाता है। बेबाक शैली के कारण उन्हें 1998 में निर्दलीय प्रत्याशी होने के बावजूद मतदाताओं ने भारी मतों से जिताया था। ठीक इसी तरह भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता 11 बार सांसद रहे सरल सहज डॉक्टर लक्ष्मीनारायण पांडेय को भी “मालवा का गांधी” कहा जा रहा है। जबकि भाजपाइयों को तो गांधी से परहेज है। लेकिन अपनी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के लिए गांधी के नाम का सहारा जरूर लिया जा रहा है। जिले के भाजपा और कांग्रेस नेताओं का कद ऊंचा दिखाने के लिए “गांधी” बैसाखी बने हुए हैं।
दिशाहीन दिशा समिति की बैठक, अधिकारियों के आगे किसी की कुछ नहीं चलती
जिले के करीब 17 विभागों के कार्यकलापों की समीक्षा करने के लिए दिशा समिति की बैठक की औपचारिकता बदस्तूर जारी है। कई तारीखों के बदलाव के बाद 10:30 बजे बैठक शुरू हो ना कि मगर 12:00 बजे शुरू हो पाई। उसमें भी शहर विधायक नदारद।
दिशा समिति की बैठक में कुछ पूर्व जनप्रतिनिधि इसलिए अपना मुंह खोल देते हैं कि अधिकारियों को पता रहे कि वे सक्रिय हैं। बाकी किसी को कोई लेना देना नहीं। कांग्रेस के एक विधायक को तो पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता की आवभगत करने के लिए जाना था। तो वे चले गए। जबकि दूसरे कांग्रेस विधायक तो आए ही नहीं थे। खास बात तो यह कि जनप्रतिनिधियों को जानकारी ही नहीं होती है कि क्या चल रहा है तो वह प्रश्न, प्रति प्रश्न कैसे करें, जो अधिकारी बोलते हैं, वह जनप्रतिनिधि सुन लेते हैं। अधिकारी को तो अपनी ही मर्जी करना होती है, चाहे जनप्रतिनिधि कुछ भी निर्देश दें। पालन नहीं करना, मतलब नहीं करना। दिशा समिति की पिछली बैठक में सांसद महोदय ने निर्देश दिए थे लेकिन उसका पालन नहीं हो पाया तो फिर ऐसी दिशाहीन दिशा समिति की बैठक करने के औचित्य पर सवालिया निशान लगना लाजमी है। क्यों सरकारी जनधन का दुरुपयोग किया जा रहा है, दिशा समिति की बैठक के नाम पर। कार्यों की समीक्षा की बजाय केवल खानापूर्ति की जाती है। हकीकत में काम नहीं होता। और मोटी चमड़ी वाले अधिकारियों की सेहत पर कोई असर नहीं होता, चाहे उनको डांट दो फिर भी वह बैठक के बाद बाहर मुस्कुराकर ही निकलते हैं।