गीत : ममता भी है फ्लाॅपी में
⚫ आशीष दशोत्तर
भूल गए हैं या तो रखकर किसी पुरानी फ्लाॅपी में,
ममता की तस्वीरें या फिर पहुंची हैं ई-शाॅपी में ।
वक़्त -ज़रूरत फेसबुक पर ज़िक्र उसी का होता है,
बूढ़े घर में जिसका दामन फूट -फूटकर रोता है।
कितनी ही रातों को उसने जगते हुए गुज़ारा था ,
उसकी सांसों से ही बजता रिश्तों का इकतारा था।
उसकी धड़कन भी रख छोड़ी किसने फोटोकॉपी में ?
उसकी आंखों से भी आंसू कितनी बार ढले होंगे।
उसके भी तो हाथ तवे पर चिपके और जले होंगे।
हो सकता है बहुत उजालों में भी वो घबराई हो,
शोर शराबे में भी उसके भीतर इक तन्हाई हो।
उसको अब महसूस करो भी क्या इस आपाधापी में!
हो सकता है गाथा शायद सबकी सुनी सुनाई हो,
संभव है कि अब न ह्रदय में वो आंखें पथराई हो।
भूल भुलैया में शायद ही उसका भीगा आंचल हो,
बाट जोहती कहीं पुराने घर में अब तक पागल हो।
राम नाम लिखती बैठी हो फटी-पुरानी काॅपी में।
जगह-जगह से उसने सी कर चादर यही बनाई थी,
सबको सीने से चिपटा कर वो इसमें सिमटाई थी।
देख नहीं पाए उसको जो वे तो बहुत अभागे थे,
पाप किया जो तुमने खुद ही तोड़े क्यूंकर धागे थे?
शामिल फिर भी नहीं किसी को करती है वो पापी में।
⚫ आशीष दशोत्तर
12/2, कोमल नगर
रतलाम
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