धर्म संस्कृति : द्वेष, इंसान को इंसान और राग इंसान को भगवान नहीं बनने देता, दोषों के दर्शन कराता है गुणों पर अभिमान

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

हरमुद्दा
रतलाम,06 जुलाई। परम पूज्य प्रज्ञा निधि युगपुरूष आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने राग और द्वेष दोनो से दूर रहने का संदेश दिया है। समता शीतल पैलेस छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि द्वेष, इंसान को इंसान नहीं बनने देता और राग इंसान को भगवान नहीं बनने देता है। भगवान बाद में बनना, पहले इंसान बनो।

सद्गति के लिए द्वेष से बचना जरूरी

श्री हुक्मगच्छीय साधुमार्गी शान्त क्रांति जैन श्रावक संघ द्वारा आयोजित प्रवचन में आचार्यश्री ने दुर्मति के दोषों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मनुष्य भव में व्यक्ति अनंत पुण्यवानी लेकर आता है। द्वेष से हमारी प्रसन्नता खत्म हो जाती है, पवित्रता कम हो जाती हे, प्रज्ञा का नाश होता है और पुण्यवानी का भी नाश हो जाता है। द्वेष के कारण शरीर रोगों से जुड जाता है और परिवार बिछुड जाता है। पाप का ऐसा उदय होता है, जिसमें सिवाय दुर्गति के कुछ नहीं मिलता। सदगति के लिए द्वेष से बचना आवश्यक है।

दोषों के दर्शन कराता है गुणों पर अभिमान

आचार्यश्री ने कहा कि गुणों का अभिमान ही पर दोषों का दर्शन कराता है। इसलिए अपनी अच्छाईयों पर कभी अभिमान नहीं करना चाहिए। जड से राग और जीव से द्वेष नहीं करे। व्यक्ति में दोषों की अधिकता और गुणों की अल्पता हो, तब भी सदैव गुणों देखना चाहिए। इससे प्रसन्नता मिलेगी। उन्होंने बंटवारे से बचने का आव्हान करते हुए कहा कि बंटवारा भाईचारा खत्म करता है। इससे मानवता प्रभावित होती है और संवेदनशीलता चली जाती है। बंटवारे से दूर रहने का प्रयास करो और सदैव भाईचारे से रहो।

तब तक मनुष्य भटकता रहता है जब तक स्वयं का नहीं होता ज्ञान

आचार्यश्री से पूर्व उपाध्याय, प्रज्ञारत्न श्री जितेशमुनिजी मसा ने कहा कि मनुष्य को जब तक स्वयं का ज्ञान नहीं होता, तब तक वह भटकता रहता है। इससे सबको अपने आत्म स्वरूप को जानने का प्रयास करना चाहिए। विद्वान सेवारत्न श्री रत्नेश मुनिजी मसा ने भी संबोधित किया। संचालन हर्षित कांठेड द्वारा किया गया।

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