धर्म संस्कृति : जिस धर्म में भाव नहीं होता, उसका कोई मूल्य नहीं
⚫ आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा
हरमुद्दा
रतलाम, 6 जुलाई। जिस धर्म में भाव नहीं होता उसका कोई मूल्य नहीं होता है। भाव एक कोमल तत्व है। दान, शील, तप अगर भाव पूर्वक नहीं किया गया तो उसकी कोई कीमत नहीं होती है। चाहे मनुष्य की गति में जाओ या देव गति में लेकिन बुरे विचार छोड़कर जाओ। कोई भी व्यक्ति, वस्तु के वातावरण से बच सकता हैं लेकिन विचार से नहीं। अशुभ विचार मन में कभी न कभी आ ही जाते हैं।
यह बात आचार्य श्री विजय कुलबोधी सूरीश्वरजी म.सा. ने मोहन टाॅकीज सैलाना वालों की हवेली में प्रवचन में उपस्थित धर्मालुजनों से कही।
कभी ना कभी आ ही जाते हैं मन में अशुभ विचार
आचार्य श्री ने प्रवचन में भाव और भावना के बीच अंतर बताते हुए कहा कि यदि अशुभ भाव मन में है तो इंसान का नर्क सामने है और अगर शुभ भाव प्रकट हो गया तो ईश्वर की प्राप्ति हो जाएगी।
वाणी के कारण होता है व्यवहार
आचार्य श्री ने कहा कि कोयल अपनी आवाज से सबका मन मोह लेती है लेकिन उसके पास बैठा कौआ जब आवाज निकालता है तो उसे भगाया जाता है। ठीक ऐसे ही हमारे साथ जो व्यवहार होता है, वह हमारी वाणी, हमारे कंठ के कारण होता है। मनुष्य या देव गति किसी में भी जाओ पर बुरे विचारों को छोड़कर जाओ।
भावना वाले जुड़ते हैं भगवान से साधना वाले नहीं
आचार्य श्री ने बताया कि जब भाव बार-बार प्रकट होते हैं तो वह भावना बन जाते हैं। कृति के क्षेत्र में हम पीछे हो जाते हैं, जैसे कि दान-धर्म लेकिन जब रुचि की बारी आती है तो हम आगे रहते हैं। हमें यह तय करना है कि मैं जगत के लिए उपलब्धि हूं या जगत मेरे लिए उपलब्धि है। जगत चाहिए या जगतपति, यह हमें ही तय करना है। साधना में स्थिति की अपेक्षा होती है पर भावना में नहीं। भावना वाला व्यक्ति अल्प संसारी होता है, जल्द भगवान से जुड़ता है, साधना वाले नहीं।
धर्म सभा में मौजूद थे श्रद्धालु
श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम द्वारा आयोजित प्रवचन में बड़ी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।