धर्म संस्कृति : संसार और मोक्ष दोनों का स्वामी मन, यही करता है भक्ति के बीच रुकावट भी

आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा

रविवार को विशेष जाहिर प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम, 7 जुलाई। प्रभु से संपर्क करने जाते है तो मन रूपी दलाल बीच में आ जाता है, हमे जुड़ने नहीं देता है। मन मालिक बन गया और हम गुलाम बन गए। संसार और मोक्ष दोनों का स्वामी मन है। शरीर और पांच इंद्रियां स्वीच है लेकिन इनका मैन स्वीच मन है। भक्ति के बीच रूकावट करने वाला मन ही होता है।

यह बात मोहन टाकीज सैलाना वालों की हवेली में आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कही। आचार्य श्री ने प्रवचन में कहा कि व्यक्ति के मन में तप और धर्म करने का विचार आता है, लेकिन मोह की दीवार बीच में आ जाती है और वह संसार के सुख को छोड़ नहीं पाता है। यह सोचे कि हमारी इज्जत पैसे है या इज्जत की वजह से पैसा है।

कौन करता है प्रभावित और कौन भावित

आचार्य श्री ने प्रवचन में प्रभावित और भावित को परिभाषित करते हुए कहा कि दो घडे़ लेकर एक में पानी और एक में घी भरकर उसे खाली करो तो 24 घंटे बाद दोनों खाली नजर आएंगे,लेकिन घी के घडे़ से सुंगध आएगी, यानी वह भावित हुआ है। जबकि पानी के घडे़ से महक नहीं आएगी क्योकि वह सिर्फ प्रभावित हुआ था। यदि प्रवचन में जाकर उससे प्रभावित होते है, तो यह पात्रता गुरू की है।

धर्म सभा में मौजूद श्रोता जन

आचार्य श्री ने कहा कि प्रभावित होना मिलना है, भावित होना मिटना है। दो गिलास में पानी लेकर एक में पत्थर और दूसरे में मिश्री डालेंगे, तो पत्थर पानी में मिलेगा लेकिन वह मिटेगा नहीं, यानी प्रभावित हुआ लेकिन मिश्री पानी में घुल जाएगी, उसका अस्तित्व मिट जाएगा। यानी वह भावित होगी। प्रभावित से चित शांत नहीं, लेकिन भावित होने से मन शांत होगा। रूकावट करने वाले तीन परिबल भावित नहीं होने देते है, जो मोह की दीवार, मन रूपी दलाल और मान रूपी दलील है।

रविवार को विशेष जाहिर प्रवचन

मोहन टाकीज सैलाना वालों की हवेली में आचार्य श्री विजय कुलबोधी सूरीश्वरजी म.सा. के मुखारविंद से “मां-बाप को भूलना नहीं” विषय पर रविवार को विशेष जाहिर प्रवचन होंगे। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी रतलाम द्वारा युवाओं से अधिक से अधिक संख्या में उपस्थित रहने की अपील की।

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