धर्म संस्कृति : दही जमाने के लिए खटास चाहिए, तो व्यवहार जमाने के लिए मिठास

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

अनुमोदना की गूंज से तपस्वियों का बहुमान

नवकार भवन में चातुर्मासिक प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम, 04 अगस्त। बैर का अनुबंध जीवन में महाभय पैदा करता है। बैर भाव से उपर उठना हो, तो जीवन व्यवहार में परिवर्तन लाना जरूरी है। व्यवहार में परिवर्तन ना लाओ, तो भाषा में जरूर परिवर्तन लाओ। भाषा और जुबान में मिठास रहे, तो बिगडे से बिगडे काम बन जाते है। जबकि खटास से संबंधों में दरार पडती है। इसीलिए कहा गया है कि-दही जमाने के लिए खटास चाहिए, तो व्यवहार जमाने के लिए भी मिठास चाहिए।


यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने सिलावटों का वास स्थित नवकार भवन में कही। चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान शुक्रवार को उन्होने कहा कि दुर्मति का आठवां दोष बैर भाव होता है। इससे बचने का एकमात्र मार्ग भाषा और व्यवहार में सुधार है। संसार में भाषा ही बैर पैदा करती है और भाषा ही बैर को शांत कर सकती है। इसलिए ऐसी भाषा बोलने से बचो, जो बैर की जन्मदात्री हो। धर्म मार्ग पर चलने के लिए हमारे आगम साधना को आमंत्रण देते है। साधना स्वाद पर नियंत्रण करती है और स्वाद का नियंत्रण स्वास्थ्य को मजबूत करता है। स्वास्थ्य से संयम से फलित होता है। इसी प्रकार भाषा पर नियंत्रण प्रेम है। प्रेम से आत्मा मजबूत होती है और आत्मा संयमित रहेगी, तो वह ध्यान और समाधि देने वाली हो जाएगी।

तीन कारणों से होती है बैर में वृद्धि

आचार्यश्री ने कहा कि बैर की वृद्धि तीन कारणों अति बोलने, असत्य बोलने और अपशब्द बोलने से होती है। जीवन में जिनकी भी गाडी नानस्टाप चलती है, वे फेल हो जाते है, इसलिए अति बोलने से बचना चाहिए। असत्य बोलने वाला अपनी इज्जत और प्रतिष्ठा खो देता है और अपशब्द बोलकर लोग अपने खानदान को लज्जित करते है। ये हल्क खानदान की पहचान होती है, इसलिए अपशब्द नहीं बोलना चाहिए। अति बोलना, असत्य बोलना और अपशब्द बोलना ये तीनों बैर का अनुबंधन करते है, जो महाभय पैदा करता है। बैर भाव से बचने के लिए सबकों व्यवहार में परिवर्तन लाना चाहिए।

भाषा और व्यवहार में सुधार का करे प्रयास

आचार्यश्री ने कहा कि अब तक जो हुआ, उसे भूलकर हर व्यक्ति अपनी भाषा और व्यवहार में सुधार लाने का प्रयास करे। इससे दुर्मति का निवारण कर हम सारे दोषों से बच जाएंगे। आरंभ में उपाध्याय प्रवर, प्रज्ञारत्न श्री जितेश मुनिजी मसा ने संबोधित किया। इस दौरान बडी संख्या में श्रावक-श्राविकागण उपस्थित रहे।

अनुमोदना की गूंज से तपस्वियों का बहुमान

नवकार भवन में आयोजित चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उपस्थित श्रावक-श्राविकाआंे ने अनुमोदना-अनुमोदना की गूंज से अठठाई की तप आराधना पूर्ण करने वाले तपस्वियों का बहुमान किया। आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा की प्रेरणा से हर्ष पटवा और सुनीता बोहरा ने 8 उपवास की तपस्या की। इसी प्रकार मुकेश चाणोदिया ने 10 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। युवा संघ के महामंत्री हर्ष पटवा की तपस्या की श्वेता पटवा ने स्तवन प्रस्तुत कर अनुमोदना की।

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