खरी खरी : एकता और संकल्प की अनूठी मिसाल, सुंदर रतलाम की दशा बिगाड़ने में सब दिखा रहे हैं अपना अपना कमाल, यदि कोई रोकता है तो करते हैं पुरजोर धमाल
हेमंत भट्ट
⚫ कोई माने या ना माने मगर रतलाम जैसी एकता और संकल्प की अनूठी मिसाल विश्व में कहीं भी देखने को नहीं मिलेगी। कोई भेदभाव नहीं है। राजा हो या रंक सब के सब शहर की दशा बिगाड़ने में अपना अपना कमाल दिखा रहे हैं। अथक निरंतर पुरजोर प्रयास करते हैं। इतना ही नहीं जब कोई इन्हें रोकने की कोशिश करता है तो एक जुट होकर धमाल भी करते हैं। आंदोलन करते हैं ताकि उनके मेहनत के फल को कोई असफल ना कर पाए। और यदि कोई हिमाकत करे तो वह सीधा रतलाम से विदा हो जाए। अब बताइए ऐसी एकता कहीं ओर देखने को मिलेगी।⚫
वैसे देखा जाए तो किसी को सुंदर बनाने में, अच्छा करने में समय लगता है। मेहनत लगती है। कल्पना शक्ति लगती है इच्छा शक्ति लगती है, तब जाकर कुछ सुंदर हो पाता है। कुछ अच्छा हो पता है। कुछ लोगों का भला हो पाता है, मगर रतलाम में शहर की दशा बिगाड़ने में इच्छा शक्ति का परिचय यहां के व्यापारी, छोटा-मोटा कारोबारी ठेला चलाने वाले हम्माल, सब्जी बेचने, वाले गोपालक, नगर सेवा के लिए मैजिक और ऑटो चलाकर दिन रात एक आंख में सोने वाले कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ते हैं। सबके सब अपनी हिम्मत और हौसलों से डबल मेहनत करके शहर को बिगाड़ने में अथक मेहनत कर रहे हैं। वास्तव में इनके प्रयास काबिले तारीफ है। हजारों वाहन हर साल बढ़ते हैं मगर पार्किंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं। योजना बनती है मगर अमली जामा नहीं पहनाया जाता।
इनका भी कंधे से कंधे मिलाकर सहयोग
खास बात तो यह है कि रतलाम में आने वाले पुलिस, प्रशासन, यातायात, नगर निगम में ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा का पूरा महकमा और इनके आला अफसर भी इन लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर तैयार हो जाते हैं कि आप शहर की दशा बिगाड़ो, देखते हैं, कौन रोकता है? हम किसी को भी नहीं रोकेंगे। तुम अपना कार्य निरंतर करते रहो। हमें हमारी खर्ची देते रहो और क्या चाहिए? कलेक्टर से लेकर कर्मचारी तक, एसपी से लेकर हवलदार तक, आयुक्त से लेकर सफाई कर्मचारी तक सब के सब केवल नाम के हैं काम के नहीं। अपना श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम देने का प्रयास नहीं करते हैं यही विडंबना है शहर की।
ऐसे सिस्टमैटिक तरीके से करते हैं अतिक्रमण
चाहे बात दुकान के सामान से अतिक्रमण करने की हो या पक्का अतिक्रमण करने की हो। थैला गाड़ी से अतिक्रमण करने की हो। शेड बनाकर कई स्क्वायर फीट जमीन पर कब्जा करने की हो। शिद्दत के साथ करवाई होती है। जिस तरह से मंदिर की पेढ़ी-पेढ़ी चढ़कर भगवान के पास दर्शन के लिए जाते हैं, ठीक उसी तर्ज पर हमारे रतलाम के दुकानदार बिलकुल सिस्टमैटिक ढंग से अतिक्रमण करते हैं। ऐसा लगता है, अतिक्रमण करने में तो एचडी हासिल कर ली है
अतिक्रमण करने की सीख
पहले केवल सामान बाहर रखते हैं। फिर दुकान के लिए फ्लोर के लेवल का लोहे की स्टेण्ड बनाते हैं। उस पर दुकान का शोकेस आता है। कुछ समय बाद स्टेण्ड के यहां पर तो दो-दो, चार-चार ईंट जोड़कर पत्थर को लगाकर दुकान के लेवल का ओटला बनाते है। फिर दुकान का शोकेस उसके ऊपर रखते हैं, 8 से 15 दिन जब कोई कुछ नहीं कहता है तो फिर पहले कभी जो स्टेण्ड बनाया था, ओटले के लेवल का। उसे आगे रखकर उस पर पहले तो सामान रखते हैं। कुछ दिन फिर शोकेस आ जाता है। अब बारी आती है। अपने दो पहिया वाहन को सड़क तक ले जाने की। फिर वहां तक अपनी दुकान का सामान रख देते हैं। दो पहिया वाहन पर कपड़े, कंबल लटका दिए जाते हैं। कुछ को पहना दिए जाते हैं ओढ़ा दिए जाते हैं ताकि लोगों को पता चले कि यहां पर कंबल और कपड़े बिकते हैं। इस तरह शहर के लिए बनी टूलेन और फोर लाइन एक पतली सी गली में तब्दील हो जाती है और आमजन रखते हुए निकालने को मजबूर रहते हैं मजाल हैं कोई इन पर कार्रवाई कर दे।
ऐसा चमत्कार सिर्फ रतलाम में
वैसे तो शहर के विकास, सौन्दर्यीकरण और सुविधाओं के लिए करोड़ अरबो की मोटी राशि खर्च की जाती है मगर यहां पर लोगों को असुविधा देने के लिए। उनको परेशान करने के लिए। उनकी सहनशक्ति को परखने के लिए। जहां देखो वहां बाधा उत्पन्न करते हैं। उसके लिए रुपए खर्च करते हैं। क्योंकि जब तक खर्च नहीं होगा तो फिर कमीशन कहां से मिलेगा? अरबो रुपए के काम करने की महारत कैसे हासिल होगी। वाकई में यहां के अधिकारी, ठेकेदार की दूरदर्शिता किसी मिसाल से कम नहीं है क्योंकि करोड़ों खर्च करने के बाद भी ऐसा नहीं लगता कि कुछ खर्च हुआ है या फिर कुछ सुविधा शहर के लोगों को मिली है। ऐसा चमत्कार सिर्फ रतलाम में ही हो सकता है। करोड़ खर्च करके सुविधा आम लोगों के लिए बनाई जाती है मगर उन सुविधाओं का उपयोग करने के पहले ही वह जर्जर हो जाती है या यूं कहीं की उबड़ खाबड़ हो जाती है मगर आमजन के उपयोग में नहीं रह जाती। यह तो शहरवासियों की जिंदादिली और साहस ही कहा जाएगा कि वह अपने कठोर से कठोरतम प्रयास की बदौलत जैसे तैसे करोड़ों की सुविधाओं को क्षणिक लाभ ले पाते हैं। अपने आप को खुद किस्मत समझते हैं।
पूरा शहर है गोपालक
वैसे बहुत खुशी की बातों की पूरा शहर ही गोपालक है। उनको गायों को पालने के लिए किसी स्थान की जरूरत नहीं है। बस कुछ राशि खर्च करके गाय ले लीजिए और उसको शहर भर में छोड़ दीजिए। वह अपने गौनित्त और गोबर से शहर की सड़कों को पवित्र करती रहती है, जिसे सफाई कर्मचारी भी नहीं उठाते हैं। यह सभी वाहनों के माध्यम से इधर-उधर छापे लगाते हुए शहर भर में गोबर के होने का और उसकी खुशबू का एहसास होता है। सीसी रोड पर गोबर की परत जम जाती हैं। और जब गाय सड़क पर रहेगी तो सेंड भी रहेंगे। कुत्ते भी रहेंगे। यह सिर्फ रहते ही नहीं है बल्कि आमजन पर हमला भी करते हैं। सिंग मारते हैं। कुत्ते बच्चों पर लपकते हैं। उनको घायल करते हैं।
यह भी रहते पशुओं की सेवा में तत्पर
मवेशियों को जो भोजन पानी मिलता है, उसका पूरा-पूरा श्रेय शहर की तमाम सड़कों पर बैठकर सब्जी बेचने वालों को जाता है जो कि उनको सब्जी डालते रहते है, वे खाते रहते है। जब दूध देने का समय आता है तो मालिक के पास मवेशी पहुंच जाते है। मालिक दूध निकाल लेता है। पुनः अपने शहर की सड़कों पर छोड़ देता है। ताकि वह अपने शहर में स्वच्छंद रूप से विचरण करें। आराम सहित अन्य सब कुछ होता रहे। चौपायों का सड़कों पर रहना ही इनकी आदत में शुमार है। इसी तरह चार पहिया वाहन भी सड़कों पर पसरे रहना भी वाहन मालिकों की खास पसंद है। जबकि अधिकांश के पास अपने गैरेज हैं। मगर गैरेज के अंदर उनकी मर्सिडीज़ और ऑडी कैसे नजर आएगी। उनका रुतबा कैसे बढ़ेगा। यही सोचकर वे अपनी गाड़ियां सड़कों पर खड़ी करते हैं।
धाक जमाने वालों से निभाता हैं प्रशासन भी दोस्ती
ठीक इसी तरह मैजिक और ऑटो वाले जब चाहे, जहां चाहे खड़े हो जाते हैं सवारी के इंतजार में। और खासकर चौराहे पर तो इनकी धाक रहती है। इस तरह व्यवस्था को बिगाड़ने में अपनी अहम भूमिका का निर्वाह करते हैं। सामान्य जन जब इनको अपने वाहन हटाने के लिए कहते हैं तो घूर कर देखते हैं जैसे कि कच्चा खा जाएंगे। पुलिस और प्रशासन इनसे केवल दोस्ती ही निभाते हैं। कार्रवाई नहीं करते। उनको बुलाते हैं बैठक करते। चाय नाश्ता होती है, मगर सबक नहीं सिखाते। कानून और नियमों का पालन करने की बात नहीं कहते। कहते भी होंगे तो अमल कितना होता है यह नहीं देखते।
किराया लेने वाले भवन मालिक भी करते हैं अपनी भूमिका का निर्वाह
अब बारी आती है बैंक वालों की जिनकी बाजारों में बैंक है, लेकिन उनका अपना पार्किंग नहीं है। सैकड़ो ग्राहकों को अपने वाहन सड़क पर ही खड़ा करना पड़ते हैं और नतीजतन शहर की दशा बिगाड़ने में अहम भूमिका का निर्वाह बैंक भवन का किराया लेने वाले मालिक निभाते हैं।
सड़कों पर मलबा और निर्माण सामग्री शहर की शोभा में लगाती है चार चांद
2 साल से शहर में सीसी रोड का निर्माण कार्य चल रहा है ठेकेदारों का सामान वहीं पर पसरा पड़ा रहता है चाहे सड़क बनी हो या ना बनी हो सामान वहीं रहेगा। गिट्टी, रेती, पत्थर सरिया सब कुछ सड़कों पर। उनके डंपर और मशीनरी पड़े रहते हैं। यातायात व्यवस्था बिगड़े तो हमें क्या ? हम तो सरकार के जमाई हैं। यहां तक की कार्य पूरा होने के बाद मलवा उठाने की जहमत नहीं उठाते हैं और यही मलबा शहर की शोभा में चार चांद लगाता है। इसमें भी सरकारी विभाग जब सड़कों की खुदाई करता है तो वह तो केवल काम के बाद तिबड्डा बनाकर चला जाता है। या फिर उसके आसपास बैरिकेड से लगा देंगे जो कि महीनों तक कोई नहीं हटाएंगे, ना हिलाएगा।
… तो विश्व में नंबर वन आता रहे रतलाम
इस प्रकार की संकल्प शक्ति और एकता दूसरी जगह नजर नहीं आएगी। वह सिर्फ रतलाम है, रतलाम है और रतलाम है। यहां के राजा से लेकर रंक तक एक जुटता के साथ शहर की दशा बिगड़ने में शिद्दत के साथ लगे हुए हैं। चौराहों की स्थिति आज भी बद से बदतर है। एक नमूना चौमुखी पुल का ही ले लीजिए। तीनों तरफ से सीसी रोड बन गई मगर चौराहे की हालत अभी भी खस्ता है। लाखों लोग कितनी ही मिन्नतें कर ले मगर हजारों लोग के प्रयास सार्थक हो रहे हैं। शहर की दशा बिगाड़ने, सूरत बिगाड़ने के लिए यदि कोई पुरस्कार होता तो रतलाम हर बार, लगातार देश की नहीं विश्व में नंबर वन आता। आता ही क्या ? लगतार आता रहता।