धर्म संस्कृति : सरलता की लता पर ही लगते धर्म के फल
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ चातुर्मासिक प्रवचन में सन्मति के तीसरे गुण की चर्चा
हरमुद्दा
रतलाम, 05 सितंबर। परमात्मा के दर्शन के लिए कपट के कपाट खुलना बहुत जरूरी है। मन में कपट रहता है, तो धर्म नहीं होता। धर्म हमेशा निष्कपट व्यक्ति को ही फलित होता है और निष्कपट वह है, जिसके जीवन में सरलता, शुचिता और निर्मलता होती है। सन्मति का तीसरा गुण है सरलता। सरलता की लता पर ही धर्म के फल मिलते है।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने छोटू भाई की बगीची में कही। चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि व्यक्ति उम्र से बडे होने पर भी उतने सरल नहीं होते, जितने बच्चे सरल होते है। बच्चों में सरलता और निर्मलता दोनो रहती है। जीवन में सन्मति की प्राप्ति के लिए सरलता, निर्मलता और शुचिता सभी जरूरी है। इनके बिना सन्मति नहीं आती और सदगति उन्हीं की होती है, जिनके जीवन में सन्मति होती है।
आचार्यश्री ने कहा कि व्यक्ति जितना सरल रहता है, उतना ही निश्चित, निर्भय, र्निबंध होता है।
सुख इतना दें कि अहंकार नहीं आए
लुकाव-छुपाव की मानसिकता हमे सरल नहीं बनने देती है, जबकि जिसके भाव, भाषा, व्यवहार में सरलता होती है, वह हमेशा धर्म के नजदीक रहता हैं। धर्म किसी जाति, कुल, समाज से बंधा हुआ नहीं है, उसे सिर्फ सरलता से पाया जा सकता है। पुण्य हमे ताकत देता है, तो धर्म पात्रता देता हैं। मनुष्य भव में परमात्मा से सदैव यही प्रार्थना करनी चाहिए कि सुख इतना दे कि अहंकार नहीं आए और दुख इतना ही दे कि आस्था नहीं जाए।
करना चाहिए अधिक से अधिक तप और त्याग
धर्मसभा में उपाध्याय प्रवर श्री जितेश मुनिजी मसा ने आचारण सूत्र का वाचन करते हुए अधिक से अधिक तप और त्याग करने की प्रेरणा दी। इस मौके पर ब्यावर श्री संघ ने वर्ष 2024 के चातुर्मास की विनती की। संघ अध्यक्ष सम्पतराज ढेडिया ने भाव व्यक्त किए।
यह थे मौजूद
पूर्व अध्यक्ष शांतिलाल कोठारी, कार्यकारी अध्यक्ष पारस बुरड, उपाध्यक्ष गणपत लोढा, कोषाध्यक्ष राजेन्द्र करनावट, संरक्षक मीठालाल लोढा, त्रिलोक ढेडिया, विजयराज एवं सौभाग्य नाहर आदि मौजूद रहे। संचालन विजेन्द्र गादिया ने किया।