साहित्य सरोकार : जन्म बार- बार

पद्माकर पागे

हे कृष्ण
हमें मालूम है तुम
एक ही दिन जन्मे थे
अष्टमी को।

उसे ही मानते है
तुम्हारा जन्मदिन आजतक,
हमने पढे है
तुम्हारे गीता में दिये वचन
अर्जुन के माध्यम से मानव जाति को।

कुछ पालन करते कुछ नहीं
चलते उस राह तो
हो जाता उध्दार
परंतु ऐसा हुआ नहीं।
आज भी याद करते है
लोग रोज तुमको
गली मोहल्लो और मंदिरो में तुमको।

रोज रोज जन्म ले रहे हो
पढ़ रहे है अखबारो में
हे कृष्ण फिर भी
अता पता नहीं
पांडवो का इनदिनो
बहुत कौरव पैदा हो गये
महाभारत के बाद भी
एक बार फिर आ जाओ
इस धरा पर
हे श्रीकृष्ण।

⚫ पद्माकर पागे

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