धर्म संस्कृति : धर्म तिरने और तिराने का मार्ग
⚫ आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा
⚫ छोटू भाई की बगीची में प्रवचन
हरमुद्दा
रतलाम, 14 सितंबर। धर्म देह में आरोग्य देता हैं। धर्म से दिमाग में प्रशान्तता मिलती है और दिल भी प्रसन्न रहता है। धर्म को प्रत्येक मनुष्य को धारण करना चाहिए। हमे धर्म से कुछ मांगने की जरूरत नहीं है, धर्म को केवल जीवन में धारण कर लो, तो जीवन तिर जाता हैं। धर्म ही तिरने और तिराने का मार्ग है।
यह बात छोटू भाई की बगीची में परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। पर्यूषण पर्व के तीसरे दिन धर्मसभा में उन्होंने धर्म की महत्ता बताते हुए कहा कि धर्म से शक्ति मिलती है, यह हमे शांति देता है, इससे सुरक्षा होती है, यही सन्मति देता है और इससे मरने के बाद सदगति की प्राप्ति होती है। धर्म के बिना जीवन अधूरा हैं। धर्म से मिलने वाले तीन वरदान देह की आरोग्यता, दिमाग में शांति और दिल की प्रसन्नता जिसे मिल जाती है, उसे किसी वरदान की आवश्यकता नहीं रहती।
आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान में लोग अन्य मामलों में दृढ बनते है और धर्म के मामले में नरम रहते है। जबकि धर्म में दृढ रहना चाहिए। धर्म कायरों का काम नहीं, अपितु शूरवीरों का काम है। इससे त्यागी, वैरागी और गंभीर लोग ही जुडते है। धर्म का मूल दया हैं। दया का मूल विवेक है और विवेकपूर्ण जीवन जीने से सुख ही सुख की प्राप्ति होती है। सुख का मूलमंत्र विवेक है और धर्म विवेक में ही निहित है। विवेक की प्राप्ति सत्संग से होती है। सत्संग बिना पुण्य और भाग्य के प्राप्त नहीं होता। जीवन की आपाधापी और दौडभाग के दौर में जो लोग धर्म के लिए समय निकालते है, वे बहुत ही भाग्यशाली है।
श्रावक-श्राविकाओं ने लिए तपस्या से प्रत्याख्यान
आरंभ में श्री विशाल मुनिजी मसा ने अंतगढ सूत्र का वाचन किया। उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने कहा कि ऐसा धर्म, गुरू और संत-महापुरूषों का सानिध्य मिलना दुर्लभ है। इसका लाभ उठाकर अधिक से अधिक धर्म करना चाहिए। धर्मसभा में आचार्यश्री से कई श्रावक-श्राविकाओं ने तपस्या से प्रत्याख्यान ग्रहण किए। पर्यूषण पर्व के दौरान प्रतिदिन देश के विभिन्न स्थानों र्से गुरूभक्त रतलाम आकर दर्शन-वंदन का लाभ ले रहे है।