खरी खरी : तो कमीशन देने वाले ठेकेदार दूध के धुले, मलाई वाले तबादले निरस्त, हमदर्दी की नौटंकी

हेमंत भट्ट

नगर निगम के भ्रष्ट इंजीनियर के खिलाफ कार्रवाई की मांग को लेकर ठेकेदारों ने कलेक्टर को ज्ञापन दे दे दिया लेकिन क्या कमीशन देने वाले ठेकेदार दूध के धुले हैं, यह नहीं सोचा। प्रदेश सरकार के शिक्षा विभाग ने पहले तबादले कर दिए मलाईदार लोगों के। फिर निरस्त भी कर दिए। इसके पीछे आमजन यही कहते नजर आ रहे हैं कि यह सब चुनावी खर्च निकालने का सिलसिला चल रहा है। भले ही उन मतदाताओं से कई महीनो तक कोई सरोकार नहीं रखा लेकिन जब चुनाव सिर पर आ रहे हैं तो दौड़-दौड़ कर उनके पास जा रहे हैं ताकि उनका सच्चा हमदर्द होने की नौटंकी की जा सके।⚫

बात तो सही है कि कमीशनखोरभ्रष्ट इंजीनियरों के खिलाफ कार्रवाई तो होनी ही चाहिए। ऐसे ही लोगों के कारण आमजन की को मिलने वाली सुविधाएं दोयम दर्जे की होती है। समय से पहले खराब ही नहीं होती बल्कि उसकी नींव ही कमजोर होती है। बनावट ही घटिया होती है। नतीजतन आमजन को परेशानी होती ही है। मगर इस मामले में ठेकेदार भी कोई दूध के धुले हुए नहीं है, वह भी अपना काम निकलवाने के लिए जिम्मेदार इंजीनियरों को कमीशन के मिशन में घेर लेते हैं और अपना उल्लू सीधा करवाते रहते हैं ऐसे ठेकेदारों के कारण ही शहर का विकास होने की बजाय विनाश हो रहा है। धन खर्च करने के बावजूद भी वह सुविधा आमजन को नहीं मिल पाती, जिनके हकदार हैं, जिनके लिए योजनाएं बनती है। मगर योजना का आधे से ज्यादा तो ठेकेदार, इंजीनियर और जनप्रतिनिधि ही डकार जाते हैं। तो जिला प्रशासन के जिम्मेदार को इंजीनियर के साथ ही ठेकेदारों के खिलाफ भी कार्रवाई करनी चाहिए।

उनके मुंह में कमीशन का दही

डोंगरे नगर मुख्य मार्ग के आसपास सड़के पाइप डालने के लिए खुदी पड़ी थी, तेज बारिश में लबालब हो गई। कई घटनाएं भी हुई मगर जिम्मेदार पर कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि वहां पर उन्हें बेरिकेट से लगाने थे लेकिन नहीं लगे। इसी तरह बाजना बस स्टैंड से अमृतसर तालाब की ओर बन रही सड़क पर चूरी और गिट्टी फैली पड़ी हुई है। डिवाइडर के साड़ी है निकले हुए पड़े हुए हैं जो की दुर्घटना को आमंत्रण दे रहे हैं। मगर जिम्मेदार अधिकारी और पार्षद ध्यान नहीं दे रहे हैं। लगता है उनके मुंह में कमीशन का दही जम चुका है। उनकी बला से आमजन की सुविधा भाड़ में जाए उन्हें कोई वास्ता नहीं।

जन सुविधा की जमीन को नकार कर बेच रहे हैं सभी जमीर

प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग में रक्षाबंधन उत्सव के बाद प्रदेश के 14 जिम्मेदारों का सिंहासन हिलाकर इधर से उधर कर दिए, इसके चलते जिम्मेदारी का निर्वहन करने वाले कई लोगों की तो सेहत बिगड़ गई। लंबी छुट्टी पर चले गए दिखावे के लिए मगर हकीकत में वे कहीं और लगे हुए थे। क्योंकि वह अपना मलाईदार ओहदा छोड़ने के पक्ष में नहीं थे। जोर का झटका उन्हें जोर से तो लगा मगर गांधी दर्शन के चलते सब कुछ रखा दफा हुआ और प्रदेश के पांच जिम्मेदारों को फिर से वही रहने के आदेश दे दिए। जहां पर वह पहले से बने हुए थे। जन चर्चा तो यही है कि चुनावी साल है सरकार को धन तो चाहिए ही इसलिए यह खेल खेला जा रहा है इसी तरह धन एकत्र किया जा रहा है। वहीं कुछ लोग यह भी कहते नजर आई कि यह तो रिन्यूअल फीस है जो कि उन्हें देना ही पड़ती है। इससे साफ है कि जो धन दे रहे हैं, वह धन डकार भी रहे होंगे यानी कि वे भी जन सुविधाओं की जमीन को नकार कर अपना जमीर बेच रहे हैं।

अधिक चतरे होते हैं वह, उनकी तुलना में

सितंबर माह शुरू होने के बाद तक प्रदेश में बारिश की स्थिति चिंताजनक थी। सूखे के हालात निर्मित हो रहे थे मगर महाकाल की मन्नत ने कुछ दिन में ही सब कुछ बदल दिया बारिश के आंकड़े में जो अंतर था, वह पार कर दिया। फिर क्या था? ऐसा ही कुछ जनप्रतिनिधि भी करने पर आमादा है। 1 महीने का कोटा 2 दिन में पूरा कर दिया, ठीक उसी तरह 4 साल नदारत रहने वाले कुछ महीने से सक्रिय हो गए। वह कुछ दिन मतदाताओं के आगे पीछे घूम कर बड़ा हितेषी समझाने में सफल हो जाएंगे ? लेकिन वे साहब जानते नहीं है कि शहरी मतदाताओं की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र के मतदाता अधिक चतरे होते हैं, यह सभी जानते हैं। बावजूद इसके ग्रामीण क्षेत्र में दौड़ दौड़ कर ग्रामीणों के आंसू पौंछने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं। देखा जाए तो यह करना भी जरूरी है ताकि खुदा न खास्ता टिकट मिल गया तो फिर उन्हीं मतदाताओं से उनका वास्ता रहेगा। हालांकि यह ग्रामीण मतदाता तो जानते हैं कि न 9 मण तेल होगा और न ही राधा नाचेगी। मतदाताओं का यही कहना है की हमदर्दी की नौटंकी चल रही है।

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