धर्म संस्कृति : मराठी समाज की माता श्री महालक्ष्मी का विशिष्ट पूजन उत्सव शुरू, होगी सुख- समृद्धि और शांति की कामना
⚫ काष्ठ और पत्थर बनाई जाती है श्री महालक्ष्मी की प्रतिमाएं
⚫ आगमन पर मुख्य द्वार से लेकर स्थापना स्थल तक बनाए पद चिह्न रंगोली से
⚫ सप्तमी से शुरू तीन दिवसीय उत्सव का नवमी को होगा समापन
हरमुद्दा
रतलाम, 21 सितंबर। मराठी समाज की माता ज्येष्ठा और कनिष्ठा श्री महालक्ष्मी का विशिष्ट पूजन उत्सव की शुरुआत गुरुवार को धार्मिक हर्षोल्लास के साथ हुई। सप्तमी से शुरू हुए तीन दिवस उत्सव का समापन नवमी को होगा। कल परिवार की विधि और रीति के अनुसार उत्सव होगा। महालक्ष्मी जी के प्रतिमाएं काष्ठ और पत्थर बनाई जाती है।
परंपरा के पोषक धर्मनिष्ठ दंपति आशीष स्वाति घोटीकर ने हरमुद्दा से चर्चा में बताया कि भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि अनुराधा नक्षत्र में महालक्ष्मी, गौरी की प्रतिमा की स्थापना की जाती है। महालक्ष्मी जी के आगमन पर सौभाग्यवती महिलाएं बालिकाएं सर पर प्रतिमा को उठाकर लाती है। काष्ठ की प्रतिमा पर चांदी अथवा पीतल का मुखौटा लगाया जाता है। घर के मुख्य द्वार से लेकर प्रतिमा स्थापना स्थल तक रंगोली से पद चिह्न (पगलिया) बनाए जाते हैं। विधि विधान के साथ पूजन अर्चन कर भोग लगाया जाता है।
कोंकण ब्राह्मण समाज पत्थर पर बनता है आकृति
श्री घोटीकर दंपति ने बताया अष्टमी में ज्येष्ठा नक्षत्र में कुल परिवार की रीतियों से पूजन अर्चन कर महानैवेद्य अर्पित किया जाता है। तीसरे दिन मूल नक्षत्र में विसर्जन किया जाता है। मराठी समाज में देशस्थ ब्राह्मण द्वारा काष्ठ (लकड़ी) प्रतिमा की स्थापना और पूजा अर्चन होता है। वही कोंकण ब्राह्मण समाज द्वारा जलाशय से दो पत्थर लाकर उस पर आकृति बनाकर स्थापित किया जाता है। पूजा अर्चन होता है।
नक्षत्र प्रधान रहता है उत्सव
राजेश घोटीकर ने बताया कि यह नक्षत्र प्रधान उत्सव रहता है । अनुराधा, ज्येष्ठा और मूल नक्षत्र इन तीन दिन विधि-विधान उत्सव होता है। गौरी के महालक्ष्मी स्वरूप का ज्येष्ठा नक्षत्र में पूजन अर्चन के कारण ज्येष्ठा गौरी कहलाती हैं। मराठी समाज में माता महालक्ष्मी की विशिष्ट पूजन किया जाता है। धर्मालु माधुरी पौराणिक ने बताया महालक्ष्मी के पूजन अर्चन के पूर्व सुचिता और साफ-सफाई का ध्यान विशेष रूप से किया जाता है। नैवेद्य बनाने वाली महिलाओं को सुचिता और साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। माधुरी शौचे ने बताया कि मन मस्तिष्क से पूर्ण मनोयोग से भोग बनाने से महालक्ष्मी जल्द-से-जल्द भोग ग्रहण करती हैं। भोग में खासकर पूरनपोली बनाई जाती है।
घर परिवार में होती है उत्तरोत्तर उन्नति
महालक्ष्मी पूजन करने भाग्यश्री यार्दे ने बताया कि भक्तिभाव से भगवती प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं, जिससे धन धान्य और पुत्र संतति की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। मराठी समाज में पीढ़ी दर पीढ़ी परंपराओं को आगे बढ़ाने से सनातन संस्कृति आगे बढ़ रही है। रतलाम में समाज के करीब 350 घर हैं जहां पर इस परंपरा का निर्वाह हो रहा है।