धर्म संस्कृति : उत्तम विचार बहुत बड़ी संपदा

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम, 22 सितंबर। वर्तमान दौर में स्वस्थ रहने के लिए लोग योग करते है, जिम जाते है, लेकिन अपना स्वास्थ्य अपने हाथ में होता है। यदि तन से स्वस्थ रहना चाहते हो, मन से प्रसन्न रहना चाहते हो और आत्मा में आनंद चाहते हो, तो हर समय उत्तम विचार बनाए रखो। उत्तम विचार बहुत बड़ी संपदा है।

यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन में उन्होंने कहा कि समझदार लोगों के लिए विचार ही बडी पूंजी होते है। यदि विचार शक्ति नहीं होती, तो पता नहीं क्या होता? विचार शक्ति ऐसी संपदा है, तो व्यक्तित्व और कृतित्व दोनो का निर्माण करती है। हमारे अंदर उत्तम विचार यदि हर समय बने रहेंगे, तो हम निर्मलता, पवित्रता और विशुद्धता को प्राप्त कर सकेंगे।


आचार्यश्री ने कहा कि दूसरी पंूजी तो नष्ट हो सकती है। विभाव में विभाजित हो जाती है, लेकिन उत्तम विचारों का कभी विभाजन नहीं होता। ये हमारी स्वयं की पूंजी होते है। इन्हें बनाए रखने के लिए हमारे भीतर अनुत्तमता नहीं आनी चाहिए,क्यों कि यह बहुत बडी बिमारी है। उत्तमता सारी समस्याओं का समाधान है। जीवन में यदि उत्तम विचार होंगे, तो व्यक्ति सदैव स्वस्थ, मस्त और आनंदित रहेगा।

उत्तराध्यन सूत्र का किया वाचन

उपाध्याय प्रवर श्री जितेशमुनिजी मसा ने इससे पूर्व दिव्य दृष्टा पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि जिसे सम्यत्व प्राप्त हो जाता है, उसकी तीसरी आंख खुल जाती है। तीसरी आंख जिसकी खुलती है, वही दिव्य दृष्टा होता है। श्री विशालप्रिय मुनिजी मसा ने उत्तराध्यन सूत्र का वाचन किया। प्रवचन में महासती श्री पारसकुंवर जी मसा ने 7 उपवास, महासती श्री इन्दुप्रभा जी मसा ने 5 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। श्रावक-श्राविकाओं ने भी विभिन्न तपस्याओं के प्रत्याख्यान लिए।

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