धर्म संस्कृति : स्वदोष दर्शन और परगुण प्रशंसा करने वाले आराधक

आचार्य प्रवर श्री विजयराजजी मसा ने कहा

छोटू भाई की बगीची में प्रवचन

हरमुद्दा
रतलाम, 04 अक्टूबर। सबसे बेहतरीन नजर वह होती है, जो अपनी कमियों को देखती है। इंसान की नींद रोज खुलती है, लेकिन आंखे कभी-कभी खुलती है। आंखे खुलती है, तो ही स्वदोषों का दर्शन होता है। आंख खुलने पर सबकों स्वदोष दर्शन करना चाहिए। स्वदोषों का दर्शन और परगुणों की प्रशंसा करने वाला ही सच्चा आराधक होता है।


यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन देते हुए उन्होंने कहा कि आराधक वही बनता है, जो परदोषों का दर्शन नहीं करता। संसार में स्वदोष-परदोष और स्वगुण-परगुण ये आराधक के पैमाने है। इनके लिए कहा है कि बेहतरीन नजर वह होती है, जो अपनी कमियों को देख लेती है। व्यक्ति जब तक अपनी कमियां नहीं देखता, तब तक उनमें सुधार नहीं कर सकेगा। सचमुच में यदि आराधक बनना है, तो अपनी कमियों को देखकर उन्हें दूर करने का प्रयास करो।


आचार्यश्री ने कहा कि वर्तमान समय में लोग अपने दोषों को देखने के बजाए दूसरे के दोष अधिक देखते है। इसी प्रकार परगुणों की प्रशंसा के बजाए अपने तारीफ करते नहीं थकते, जिससे वे कभी आराधक नहीं बन पाते है। आराधक बनने के लिए मन को बदलना आवश्यक है। इसमें स्वदोष दर्शन और परगुणों की प्रशंसा करने का भाव लाना आवश्यक हैं। इस मौके पर महासती श्री इन्दुप्रभाजी मसा ने 16 उपवास एवं रंजना चैरडिया ने 23 उपवास के प्रत्याख्यान लिए। अन्य तपस्वियों ने भी तपस्या के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। प्रवचन में बडी संख्या में श्रावक-श्राविकाएं उपिस्थत रहे।

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