खरी-खरी : क्या “सरकार” भी नहीं चाहती कि बने “सरकार”!, उनकी उम्मीदों पर होगा वार, वे कद छोटा करने पर आमादा, बड़ा न हो जाए आधार, बदस्तूर चल रहा बदहाली का कारोबार
हेमंत भट्ट
⚫ चुनावी वैतरणी में कुछ नाव उतर गई है। बाकी बहुत कुछ शेष है। किनकी उम्मीदें खरी उतरेगी और किन पर वार होगा। मैदान संभालने वालों को अभी इंतजार करना होगा। सूची आने के बाद कईयों की सेहत बिगड़ेगी तो कोई अचानक खुश खुशाल हो जाएगा। मगर कद छोटा करने के लिए वे आमादा है, जिनके पास बड़ा आधार है। मगर क्या सरकार नहीं चाहती कि सरकार बने। कुछ भी हो शहर की बदहाली का कारोबार बदस्तूर चल रहा है।⚫
जैसे-जैसे दिन बढ़ रहे हैं वैसे-वैसे चुनावी समर में जोर आजमाइश करने वालों की धड़कनें भी बढ़ने लगी है। जन-जन की भावनाओं को समझते हुए सरकार को भी पता चल गया है कि नया इस बार नैया पार लगाना बहुत मुश्किल लग रहा है। इसीलिए राष्ट्रीय नेतृत्व को चुनावी समर में कूदना पड़ा है। चाहे प्रधानमंत्री हो या फिर गृहमंत्री या फिर अन्य सब के सब मध्य प्रदेश के पीछे पड़े हुए हैं जिस तरह से कर्नाटक में लगे हुए थे। इसके चलते आम जन में चर्चा तो यही है कि क्या मध्य प्रदेश में भी कर्नाटक जैसा काम होगा? यह तो तय माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री तो बदलेगा ही तभी तो मामा जी भैया जी बार-बार यक्ष प्रश्न कर रहे हैं। प्रदेश के मुखिया सहित अन्य मंत्रियों सहित विधायकों के चेहरे पर भी शिकन का भाव आसानी से देखा जा सकता है।
पत्ता साफ होगा या परचम लहराएगा
40 लोगों की सूची घोषित होने के बाद एक बार फिर केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक भी हो गई, मगर सूची अब तक जाहिर नहीं हुई है। इसके चलते उम्मीदवार असमंजस में है कि आखिर क्या होगा? उनका पत्ता साफ होगा या परचम लहराएगा। किस नई की किस्मत चमक जाएगी। यह अभी सभी सूचियां में बंद है, मगर जो चुनावी समर में धर्म कर्म के बल पर लगातार डटे हुए हैं, जनता को अपना हमदर्द जता रहे हैं। लगातार ऐसे ऐसे लोगों के हाथ जोड़ना पड़ रहे हैं, जिनको फूटी आंख भी देखना पसंद नहीं करते हैं। यह न केवल मतदाता बल्कि उनका महिमा मंडन करने वाले भी ऐसे एहसान फरामोश जनप्रतिनिधियों से खफा है। वह भी नहीं चाहते हैं कि इस बार वे फिर से उम्मीदवार बने।
मुगालते में है जनप्रतिनिधि तो
प्रदेश भर में जनप्रतिनिधि इसी मुगालते में है कि वह फिर दाव मार जाएंगे। उन्होंने अपनी फील्डिंग काफी भारी है वरिष्ठों को काफी मनाया है, मगर उनकी उड़ान के पर कौन काट रहा है। यह तो वह भी नहीं जानते हैं, मगर यह बात तय है कि पर कटेंगे और घायल उम्मीदवार फिलहाल तो रोएंगे नहीं, मगर जो मैदान में आएगा, उनको धूल चटाने के लिए मैदान तत्पर रहेंगे। ऐसे में किसका भला होगा, यह सब जानते हैं।
हो जाती घोषणा तो खत्म हो जाता वजूद जिले का
पिछले महीने की आखिरी तारीख को मुख्यमंत्री का जावरा दौरा तय था। जावरा को जिला बनाने की घोषणा होने वाली थी। बाबूजी की पुस्तक का विमोचन होने वाला था। एक तरीके से और कद बढ़ने वाला था। सब पर एक झटके में पानी फिर गया। सालों की मांग के बावजूद रतलाम जिला संभाग नहीं बन पाया मगर जावरा को जिला बनाने का जोर चरम पर होने के चलते विश्व में ख्यात रतलाम के वजूद जरूर प्रभावित होता। इसी के चलते मुख्यमंत्री का दौरा ही खत्म करवा दिया गया। ना रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। राजनीति के पंडितों और जानकारों का तो यही मानना है कि कहीं ऐसा ना हो कि पिताजी के नाम का चिकित्सा महाविद्यालय करने के बाद बेटे की विधायकी भी छीन ली जाए, तो अचरज नहीं होगा क्योंकि कई बार के सांसद रहने के बाद भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में डॉक्टर साहब को हिस्सा नहीं बनाया, ऐसी पार्टी वालों से उम्मीद भी क्या रख सकते हैं?
कौन-कौन जाएगा हाशिए पर
यानी कि एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। अब वह अनार फिर से किसे मिलेगा? यह तो आने वाली सूची बताएगी और जो सूची होगी, वह सेहत बिगाड़ेगी ही। अब जब सेहत बिगड़ेगी तो बहुत कुछ बिगड़ जाएगा। फिर चाहे वह अपनी पार्टी ही क्यों ना हो, फिर वे एक ही राप अलापेंगे कि जब पार्टी हमारी नहीं हुई तो हम पार्टी के क्यों होंगे? हम तो हाशिए पर लाकर पटक दिए गए हैं।
बदस्तूर चल रहा बदहाली का दस्तूर
प्रदेश के चुनाव की चिंता देश के नेतृत्व को सता रही है मगर नगर सरकार को कोई फिक्र नहीं है। लगता है वह चाहती भी नहीं है कि सरकार बने क्योंकि दिन-ब-दिन जो दुर्दशा शहर की हो रही है, वह किसी से छिपी नहीं है, जिम्मेदारों को कोई असर नहीं हो रहा है। चाहे वह राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त हो, जनप्रतिनिधि हो या फिर जिम्मेदार अधिकारी। सब के सब मठाधीश हो गए हैं। शिकायत कर दो, जांच हो जाएगी फिर बहाल हो जाएंगे। यह दस्तूर चलता रहता है और लोग परेशान होते रहते हैं। सुविधाओं को मोहताज लोग जिम्मेदारों का मुंह ताकते रहेंगे हैं, शायद यही किस्मत है शहरवासियों की। मनमानी करने वाले शहर में मनमानी करते रहेंगे और परेशान होने वाले परेशान होते रहेंगे। कुल मिलाकर शहर की बदहाली का कारोबार बदस्तूर चल रहा है।