शख्सियत : हमारी दुनिया को बड़ा बनाती हैं कविताएं : डॉ. गायत्री प्रियदर्शनी

नरेंद्र गौड़

’समय की क्रूरता हमें अकेला कर देती है। भीड़ भरे समाज की भागमभाग और आपदाओं के झंझावात हमें निरीह बना देते हैं, लेकिन कविता हमारी दुनिया को बड़ा बनाती है। वह हमारा अकेलापन तोड़ती है। हम दूसरों के दुख और वेदना साझा करते हैं। कविता उत्पीड़ितों में एका करने में मदद करती है। यह भावनात्मक एका है। यह मनुष्यता के धागे का नाजुक-सा बंधन है।’


यह बात जानीमानी कवयित्री डॉ. गायत्री प्रियदर्शनी ने चर्चा में कही। इन्होंने कहा कि ’मनुष्य उन प्राणियों में से है जो स्वप्न देखता हैं। स्वप्न नया रचने, नई सृष्टि करने की प्रेरणा है। हमारी खुली आंखों के सपने हैं, भले ही ये बार-बार टूट जाते हैं। कविता हमारे इन सपनों को जिंदा रखती है, इन्हें मरने नहीं देती। ये स्वप्न जो हमारे जीने का संबल हैं।’
यहां गायत्री जी के परिचय में यह कि इनका जन्म बदायूं उत्तरप्रदेश में हुआ। इन्होंने ’भीष्म साहनी की कहानियों में सामाजिक यथार्थ, भीष्म साहनी के साहित्य में जन जीवन की अभिव्यक्ति’ विषय को लेकर पीएचडी किया है।

बहुमुखी प्रतिभा की धनी गायत्री जी की रचनाएं कथ्यरूप, सहकारी युग, कल के लिए, अभिनव कदम, गूंज, समय माजरा, पनघट, मुक्तिबोध, गोलकुंडा दर्पण, कविताश्री, उद्भावना, उत्तरार्ध, कथन, स्वाधीनता, वागर्थ, वर्तमान साहित्य, जनपथ, अक्षर पर्व, गाथान्तर, कृति ओर, देशज, पाखी, साहित्य हेतु, संप्रेषण आदि अनेक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। इसके अलावा इनकी रचनाओं का प्रसारण बरेली दूरदर्शन तथा आकाशवाणी केंद्र से भी होता रहा है। रंगायन बदायूं एवं नटराज बरेली की नाट्य संस्थाओं व्दारा प्रस्तुत पूर्णकालिक नाटकों अभिनय एवं पार्श्वगायन भी आप करती रही हैं। नटराज बरेली व्दारा प्रस्तुत ’वापसी’ शीर्षक टेली फिल्म में भी आप अभिनय कर चुकी हैं।

साहित्यिक पत्रिका ’कल के लिए’ व्दारा आयोजित मुक्तिबोध स्मृति काव्य प्रतियोगिता में भी गायत्री जी पुरस्कृत हो चुकी हैं। इन दिनों आप इग्नू से सम्बद्ध एन.एम.एस.एन. दास कॉलेज, बदायूं एवं राजकीय महाविद्यालय बदायूं व्दारा संचालित हिंदी विभाग में काउंसलर के पद पर कार्यरत हैं। इनका कविता संकलन ’उठते हुए’ लोकोदय प्रकाशन प्रा.लि. लखनऊ से प्रकाशित हो चुका है जो कि साहित्य के सुधि पाठकों के बीच खासा चर्चित हो रहा है।

गायत्री जी की कविताएं स्वयं ही नहीं संपूर्ण मनुष्य की अपराजेयता को समर्पित हैं। वह उसे हारने नहीं देती है। निराश क्षणों में भी मनुष्य को संबल प्रदान करती हैं-

नदी मैं हारूंगी नहीं
क्या हुआ जो बिखर गई
टूट गया मेरा आत्म-विश्वास
रेत के घरौंदे की तरह

इनकी कविताओं में प्रकृति के अनेक चित्र अवश्य हैं, लेकिन वह अपने कहन को सशक्त बनाने के लिए हैं। वहां कोरा प्रकृति चित्रण नहीं है। इनकी कविताएं नाटकीय एकलाप से बचकर चलती हैं। कविता की अर्थवत्ता उसके स्वप्नचित्रमय वातावरण में है। कविता की भाषा सरल तथा पारदर्शी है। इनकी कविता के सभी संदर्भ जीवन में खुलते हैं। कविता की संरचना में लय निहित होती है-

आऊंगी मैं फिर एक बार
जैसे बच्चे की कॉपी के नदी
पहाड़, समुद्र  उतर आए हों
उसकी आंखों में
उसकी कॉपी के फूल
खिल गए हों

इनकी कविताओं में मनुष्य के सुख-दुख का लेखा जोखा है और मनुष्य से परे कुछ भी नहीं है। इनकी कविताएं हमें इसलिए प्रभावित करती हैं कि उनमें कुछ ऐसा व्यक्त होता है जिस पर हम नए सिरे से दृष्टिपात करते हैं। हम सोचते हैं कि हमने चीजों को इस तरह क्यों नहीं देखा अथवा अनुभव किया। एक नई दृष्टि से देखने पर चीजें सहसा आलोकित हो उठती हैं-

नन्हीं मुट्ठी में से
जैसे निकलेगा वह
दमकता हुआ लाल सूरज
वैसे ही उठूंगी मैं फिर एक बार

गायत्री जी का मानना है कि कवि व्दारा खड़े किए गए चिरित्र अपने वर्ग या समूह का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस पर कविता की श्रेष्ठता और सार्थकता बहुत कुछ निर्भर करती है। एक श्रेष्ठ कविता हमें संस्कारित करती है। कवि वस्तु जगत की क्रिया प्रतिक्रियाओं, घटनाओं का विवेकवान दृष्टा होता है। इनके संकलन में अनेक यादगार और बेहतरीन कविताएं हैं। एक कविता दिनभर फेसबुक और वाट्सअप की दुनिया में रमी रहने वाली औरतों को लेकर भी है। जो कि ऐसी महिलाओं के जीवन को लेकर करारा व्यंग्य करती है।

इनके कविता संकलन में शामिल अनेक कविताएं बार- बार पढ़ी जाने लायक हैं। ऐसी कविताओं की फेहरिस्त लम्बी है, लेकिन फिर भी कुछ खास कविताएं हैं जिन्हें अनेक बार पढ़ने को मन करता है। ऐसी कविताओं में – हम मजदूर औरतें, समय की आंखों से, कड़ाही पूजन, क्वांर की हवा, पंख, आत्महंता, उल्लास के घेरे, मन्नतों के धागे, ओ मेरे तुम, सूरजमुखी, कितना अधूरा सा है, समय की शाखों से, बेटियां, अहेरी, हत्या, गांधी के अनुयायी, स्त्री एक नदी, नंगी टांगों का कोरस  जैसी शामिल हैं।

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