सनातन संस्कृति और साहित्य परंपरा : देवी आराधना का नवरात्र उत्सव और कलमकारों की रचनाधर्मिता

हरमुद्दा

नवदुर्गोत्सव, नवभक्ति, आराधना व कन्या पूजन के साथ ही गरबोत्सव के असीम आनंदोत्सव के रूप में विख्यात है। इन दिनों देवी भगवती को स्थापित कर उनकी आराधना स्वरूप कन्या, बालिकाएं नृत्याराधना कर माता रानी को प्रसन्न करने का प्रयास करती है। नवरात्रि के अंतिम दिन माता की माटी से निर्मित प्रतिमाएं विसर्जित कर घर में सुख समृद्धि की कामना की जाती है।

वहीं अगले दिन विजयदशमी पर्व बड़े हर्षोल्लास से मनाने की परंपरा है। कहा जाता है अयोध्या नरेश राजा रामचंद्र जी ने राक्षस कुल सम्राट रावण का वध कर लंकापति पर विजय प्राप्त की और इसी निमित्त विजयदशमी पर्व मनाया जाता है। वहीं प्रबुद्धजन इसे बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में देखते हैं।


वहीं आजकल के रचनाकार इन पर्वों को किस नजरिये से देखते हैं और अपनी रचनाओं में इन पर्वों के संदर्भ में क्या रचनाधर्मिता प्रकट करते हैं, यह भी देखने पढ़ने और समझने की बात होती है। आइये हम भी कुछ रचनाकारों से इस संदर्भ में उनकी रचनाओं के माध्यम से यह जानने का प्रयास करते हैं कि वह अपनी लेखनी के जरिए इन त्योहारों को किस नजरिये से देखते हैं।

बाघिन वाहिनी

सौम्य रूप से हृदय समातीं, शिवजी की मनभाविनी।
मधुर नाद है महक अलौकिक, अनुपम अनुभव दायिनी।।
दुष्ट जनों के लिए विनाशक, दुष्ट बुद्धि की नाशिनी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

मुख पर ओज तेज है रहता, अंध तमस की हारिणी।
मस्तक पर तुम चंद्र सजातीं, अर्ध चंद्रमा धारिणी।।
तारो तुम ही ये जग सारा, हे भव सागर तारिणी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

शिव के संग ब्याह कर आईं, प्राण प्रिया राजेश्वरी।
शिव सम ललाट चंद्र सजाए, महा चंद्रघंटेश्वरी।।
घर में सुख के कारण लाए, शुक्र ग्रह की तुम शासिनी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

पुष्प चरण में सभी बिछाएं, तिलक करें संयोग से।
रूठ गई मां उसे मनाएं, दूध खीर के भोग से।।
नाव भक्त की पार लगातीं, सर्व कर्म शुभ कारिणी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

वाम हाथ में गदा, कमंडल, सह तलवार, त्रिशूल है।
दाएं तीर, धनुष, जपमाला, साथ कमल का फूल है।।
दसों भुजा में शस्त्र विराजे, शस्त्र अस्त्र बहु धारिणी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

सारे असुरों का वध करने, हाथ रखे तलवार है।
अनुपम रूप देखकर पापी, दुष्टों की तो हार है।।
घंटे की ध्वनि साधक सुनते, भूत प्रेत की नाशिनी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

निस दिन ‘स्वयं’ मंत्र को जपना, करूं अंत में आरती।
नयन बंद कर शीश झुकाऊं, चरणों में मैं भारती।।
धन, वैभव से भर देतीं तुम, सुख संतोषी दायिनी।
हे माता तुम शांत स्वरूपा, तुम हो बाघिन वाहिनी।।

दिव्या भट्ट ‘स्वयं, इंदौर

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माँ दुर्गा

सारे संसार की माँ ‘
“जय माँ दुर्गा “
करते हम तेरी पूजा ।
माँ करना हमारी रक्षा ।
आया नवरात्र माँ ।
होती इसमें तेरी विशेष पूजा ।
हर तरफ होती तेरी जयकार माँ ।
तेरी भक्ति से रहे सदा कायम ये संसार माँ।
तेरी शक्ति से होती दुष्टों की हार माँ ।
रखना हमेशा हमारे सर पर अपना हाथ माँ ।
कभी न छूटे तेरा मेरा साथ माँ ।
हमेशा वर्षाना हम पर अपने स्नेह भरा प्यार माँ ।
कभी छूटे तेरा साथ माँ।

निवेदिता सिन्हा
भागलपुर , बिहार

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कृपा बरसती हैं…

नवरात्रि की दृष्टि कृपा सब पर बरसाती है,
मां दुर्गा की शक्ति सबके जीवन में परिवर्तन लाती है,

नवरात्रि के पावन दिनों में माँ हम सभी को मिलाती है,
मां आशीर्वादों का सन्देश लाती हैं, सकारात्मक परिणाम देती हैं,

शरद पूर्णिमा का चाँद शीतलता धरे,
धरती को शीतलता भर उर्जावान कर दे,

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा और कुष्मांडा, जगदम्बा नौ रूप धारण करती,

ये सृष्टि रच हम सब का भाग्य भी बदले,
कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी की शक्ति अद्वितीय है, नवरात्रि

कालरात्रि के अंधकार से हम न डरे,

माँ दुर्गा शुद्धता हमारे मन और आत्मा को पावन करती है,
सिद्धिदात्री हमें आशीर्वाद देकर बनाती हैं सुखमय जीवन की राह करती हैं।

सौ. निशा अमन झा बुधे, जयपुर

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हाँ,  मैं नारी हूँ

जब भ्रूण बनकर आई थी
दादी के मन में यह बात आई थी
मेरा कुल का चिराग है या मनहूस
मां ने अपनी वेदना छुपाई थी।

मां कहने लगी भगवान से
आने दो इसको संसार में
मेरा हिस्सा है यह अनोखा
सिचूँगी अपनी कोख़ में ।

मैने सोचा आऊंगी जरूर आऊंगी
सब को समझाने  के लिए
सबकी  सोच को बदलना है
मै अब हार नहीं मानने वाली।

नारी होकर नारी पर ही अत्याचार
कभी होता दुर्व्यवहार
कभी लगते उसपर लांछन
कभी मिलता व्यभिचार।

मैं अहल्या, पत्थर बन तप करने वाली
सावित्री हूँ , सत्यवान को जगाने वाली।
दुर्गा हूँ  राक्षस का संहार करने वाली
लक्ष्मी हूँ , धनधान्य करने वाली।

हाँ, मैं नारी हूँ !
हां मैं सरस्वती, वीणावादिनी हूँ
ज्ञान देने वाली
मैं यशोदा हूँ ,कान्हा को दुलारने वाली।
द्रोपदी बन कृष्ण को पुकारने वाली ,
सीता बन सहन करने वाली ।
हां, मैं नारी हूँ  ! हाँ, मैं नारी हूँ !!

मित्रा शर्मा, महू

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विजय पर्व


पर्व विजय का,विजया दशमी।
विजय हुई रावण पर,राघव की।
दुष्वृत्तियों पर थी, सद्वृत्ति की।
अधर्म पर हुई,विजय धर्म की।

अशोकवाटिका में सीता थीं,
वह कैद लंकापति रावण की।
कई सीताएँ हो रहीं आज भी,
कैद साधुवेषधारी रावण की।

इस जगत् में हैं आज भी,
घूम रहें हैं रावण कई-कई।
हे श्रीराम!करना अवश्य ही,
पापियों का संहार तुरंत ही।आत्म चिंतन करें सभी,
          विजय-पर्व विजया दशमी।
          अंदर सोये रावण को भी,
          जाग्रत नहीं होने दें कभी।

आत्म चिंतन करें सभी,
विजय-पर्व विजया दशमी।
अंदर सोये रावण को भी,
जाग्रत नहीं होने दें कभी।

सुरक्षित रह पायेंगी तभी,
राष्ट्र की हमारे,बहनें-बेटी।
माँ दुर्गे!करें हम ये विनति,
सर्वापदाओं से हो मुक्ति।

डॉ. शशि निगम, इंदौर

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जलाना किसे है?

कह रावण ईन्सान से,
काहे  मुझे  जलाय।
मैरा  विवाद  राम  से ,
तू क्यूँ टांग फसाय।।

मुझे ,जलाने से प्रथम ,
ले तू खुद को आँक।
कितना दामन साफ है,
 गरेबान में  झाँक ।।

मना दशहरा इस तरह,
बनजा तू  भी  राम।
रावण जो तुझ में छिपा,
करदे काम तमाम।।

रावण तो मरता नहीं,
साईज बड़ती जाय।
ऐसा ना हो एक दिन,
आसमान छू जाय।

कैलाश वशिष्ठ, रतलाम

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प्रहार

क्या तुम
मार सकोगे मुझको?
मुझे मारने से पहले
पहचान पाओगे
मेरी दुष्वृत्तियों को

यदि हां/ तो
पहले खोजो
अपने अस्तित्व में
उन कृत्यों को

क्या रावण रूपी
दुष्वृत्तियों से
तुम भी
हो पाए हो मुक्त

यदि नहीं/ तो
किसने दिया/ तुम्हें अधिकार
मुझे मारने का

पहले अपने
कुविचारों और कुकृत्यों की
मालीनता करो दूर
मन और हृदय करो
स्वच्छ, निर्मल
और फिर
प्रहार करो
मेरे अस्तित्व पर।

संजय परसाई ‘सरल’,

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विजयादशमी मनाएं…

दम्भ के रावण का,
दहन करें हम,
आओ विजयादशमी मनाएं,
स्नेह की सुन्दर बाती से,
चलो मन का दीप सजाएं..।

बातें बहुत हो चुकी,
कुछ करने की अब बारी हो,
मानवता के हित में,
हम सबकी तैयारी हो,
इस पुनीत दिवस पर आओ,
कोई शुभ संकल्प उठाएं,
स्नेह की सुन्दर बाती से,
चलो मन का दीप सजाएं..।

दम्भ के रावण का,
दहन करें हम,
आओ विजयादशमी मनाएं,
स्नेह की सुन्दर बाती से,
चलो मन का दीप सजाएं..।

यशपाल तंँवर
फिल्म गीतकार,रतलाम

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