पुस्तक समीक्षा : महर्षि अरविंद के दर्शन का सार मानवीय चेतना का विकास और मानव जाति का कल्याण निहित

डॉ. खुशबू जंगलवा द्वारा लिखित पुस्तक “क्रांति और आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता महायोगी श्री अरविंद”

समीक्षा : श्वेता नागर

अरविंद, रवींद्र का लो नमस्कार
हे बंधु, हे देशबंधु , स्वदेश आत्मा के
वाणीमूर्ति तुम ! तुम्हारे लिए नहीं मान
न धन, न सुख अथवा क्षुद्रदान
कभी नही चाहा क्षुद्र कृपा-भिक्षा हेतु
पसारे नहीं आतुर हाथ  ! तुम सदा सजग
परिपूर्णता हेतु सर्व बाधा हीन
जिस के लिए नर-देव चिर रात्रि -दिन
तपोमान, जिस के लिए कवि वज्र रण में..


‌  ये पंक्तियाँ  गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता ‘नमस्कार’ से है जिसमें उन्होंने आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता महर्षि अरविंद के दिव्य और तपोमय व्यक्तित्व को प्रणाम करते हुए अपना सम्मान भाव प्रकट किया।  अद्भुत.. अकल्पनीय.. अवर्णनीय.. अलौकिक व्यक्तित्व के स्वामी थे महर्षि अरविंद! अपनी आध्यात्मिक शक्तियों से भारत माँ को स्वतंत्र कराने क्रांति का सूत्रपात किया। महर्षि अरविंद के व्यक्तित्व का अध्ययन करना यानी दिव्य लोक की यात्रा करना। और ऐसे ही महर्षि अरविंद के दिव्य और भव्य व्यक्तित्व के प्रति श्रद्धा भाव को अपनी लेखनी के माध्यम से व्यक्त करने का सराहनीय प्रयास किया है लेखिका डॉ. खुशबू जांगलवा ने , जिसका प्रमाण है उनकी प्रथम प्रकाशित पुस्तक ( मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी से प्रकाशित)” क्रांति और आध्यात्मिक क्रांति के प्रणेता महायोगी श्री अरविंद ”।  डॉ खुशबू जांगलवा वैसे तो कवयित्री हैं, उनके लिए कविताओं का संकलन प्रकाशित करना कहीं न कहीं सरल कार्य होता लेकिन उन्होंने महर्षि अरविंद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लेखन कार्य करने का साहस दिखाया जो निश्चित ही प्रशंसनीय है।

इस पुस्तक की लेखिका डॉ. खुशबू जांगलवा एक प्रसिद्ध चित्रकार भी हैं और पुस्तक के प्रारंभ में महर्षि अरविंद का सुंदर और भावपूर्ण चित्र भी उनके द्वारा बनाया गया है।

पुस्तक में पुरोवाक् में उन्होंने अपने इस प्रयास पर लिखा है कि ‘श्री अरविंद कठिन है, श्री अरविंद का योग समझना और कठिन है। प्रत्येक मन की अपनी जिव्हा, अपना- अपना विचार है लेकिन, किंतु, परंतु, मुश्किल सभी शब्दों को विराम दे और कैलाश पर्वत के शिखर को छूने का संकल्प ले ले तो कैलाश पर्वत का स्पर्श करने हेतु, चरणों का स्पर्श करना अत्यंत आवश्यक है। तात्पर्य यह है कि शुरुआत तो चरण वंदना से ही करनी होगी। ‘ निश्चित ही महर्षि अरविंद को समझना यानी समुद्र की गहराई को नापना। क्योंकि अरविंद का व्यक्तित्व कहीं सरल, कहीं कठिन, कहीं रहस्यमयी, कहीं पारदर्शी , कहीं स्पष्ट तो कहीं.  अस्पष्ट । लेकिन फिर भी महर्षि अरविंद उस उच्च आसन पर विराजमान है,क जहाँ उन्हें संपूर्ण मानवता प्रणाम कर रही है।

पुस्तक की भूमिका लिखी वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने

इस पुस्तक की भूमिका प्रसिद्ध साहित्यकार  डॉ. मुरलीधर चाँदनीवाला द्वारा लिखी गयी है । भूमिका में महर्षि अरविंद के विचारों के सार तत्व को सुंदर और पूर्णता के साथ प्रस्तुत किया गया है। महर्षि अरविंद के जीवन दर्शन का गहन अध्ययन चाँदनी वाला जी द्वारा किया गया है। वे लिखते हैं कि ”श्री अरविंद का जीवन जटिल रहस्यों से भरा हुआ है। वह दिव्य अग्नि की तरह है। श्री अरविंद के जीवन पर लिखना सरल काम नही है। डॉ खुशबू जांगलवा की पहली प्रशंसा केवल इस बात के लिए ही हो सकती है कि उन्होंने यह साहस दिखाया। ” इसके आगे श्री अरविंद के दर्शन को समझाते हुए चाँदनीवाला जी लिखते है कि ‘ श्री अरविंद का जीवन वैश्व कविता की तरह है। वे उस विश्व  के प्रजापति हैं, जो कभी तीव्र, कभी मंद गति से निरंतर रूपांतरित हो रहा है। उनकी साधना को देशभक्ति के साथ- साथ मानवीय चेतना के विकास और उसके महा- अभियान के रूप में देखना होगा। ” निश्चित ही महर्षि अरविंद के दर्शन का सार मानवीय चेतना का विकास करना ही है। जिसमें संपूर्ण मानव जाति का कल्याण निहित है।

योग, साधना और ध्यान की त्रिवेणी बन गया था महर्षि अरविंद का व्यक्तित्व

इस पुस्तक में लेखिका का महर्षि श्री अरविंद के प्रति श्रद्धा भाव प्रमुख रहा है इसलिए पुस्तक के अध्ययन में केवल शब्दों में नहीं अपितु श्रद्धा भाव में भी डूबना होगा। तभी महर्षि अरविंद के दिव्य स्वरूप को समझा जा सकेगा।
इस पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 80 पर कारावास में श्री कृष्ण चेतना के दिव्य दर्शन पर बखूबी प्रकाश डाला गया है। इस अध्याय में जब महर्षि अरविंद को कारावास की सजा दी गयी थी तब उनके लिए ये सजा भी पुरस्कार की तरह सिद्ध हो गयी क्योंकि इस कारावास की अवधि में उन्हें ईश्वर के दिव्य अनुभूतियों से साक्षात्कार हुआ। योग,  साधना और ध्यान की त्रिवेणी बन गया था महर्षि अरविंद का व्यक्तित्व।

योग, साधना और ध्यान की त्रिवेणी बन गया था महर्षि अरविंद का व्यक्तित्व

ईश्वर जिन्हें इस संसार में किसी विशेष उद्देश्य के लिए भेजते हैं उनके लिए जीवन की कठिन और जटिल परिस्थितियां विशेष उद्देश्य की पूर्ति में बाधक नहीं सहायक बन जाती है या कह सकते हैं वरदान सिद्ध हो जाती है। पुस्तक के पृष्ठ क्रमांक 89 पर जेल में श्री अरविंद को  हुई दिव्य अनुभूतियों के बारे में बताया गया है कि ” उनकी साधना इतनी ऊँचाई पर चली गयी कि अब दुख का कोई स्थान न रहा। दीवारों में, वृक्ष में, प्रत्येक दिखाई देने वाली भौतिक वस्तुओं में भी उन्हें श्री कृष्ण के दर्शनों की अनुभूति होने लगी। ” इसके साथ ही पुस्तक के  पृष्ठ क्रमांक 126 पर महर्षि श्री अरविंद के ‘अतिमानस’ यानी मनुष्य के मन मस्तिष्क का प्रज्ञा के  उच्चतम शिखर को छू लेना। इसे समझाते हुए लिखा है ” श्री अरविंद ने एक मनुष्य के मन की चार अवस्थाओं को उजागर किया है। ये चारों ऊर्ध्वगामी है। मन और अतिमानस के बीच की चार सीढ़ियां हैं, जिनमें मन के तल से प्रारंभ करे तो पहला ऊर्ध्व मन, दूसरा प्रकाशित मन, तीसरा प्रेरणात्मक मन।”

कई प्रेरक प्रसंग को किया पुस्तक में समाहित

महर्षि अरविंद से जुड़े कईं प्रेरक प्रसंगों को इस पुस्तक में समाहित किया गया है जिसमें से एक महत्वपूर्ण प्रसंग पृष्ठ क्रमांक 58 पर है जिसमें श्री अरविंद द्वारा अपनी जीवन संगिनी श्री मृणालिनी देवी को पत्र लिखा गया था जो बाद में महर्षि अरविंद के विचारों और चिंतन का प्रतिबिंब साबित हुआ इस पत्र में श्री अरविंद ने तीन पागलपन के बारे में बताया पहला पागलपन जो कुछ भी हम कमाते है उस पर केवल हमारा हक नही है वह देश के लिए है। दूसरा पागलपन है भगवान् तक पहुंचने का कोई मार्ग तो होगा उसे में खोज कर रहूँगा। तीसरा पागलपन है राष्ट्र केवल जमीन का टुकड़ा नही है यह माँ के समान है इसलिए अगर कोई माँ के सीने पर रक्तपात करता है तो हमारा कर्तव्य है उस राक्षस का वध करना।

महर्षि श्री अरविंद के जटिल दर्शन की सरल व्याख्या

और इस पुस्तक के अंत में पृष्ठ क्रमांक 128 पर जिसमें अरविंद के योग और दर्शन का सार है जो इस प्रकार है “श्री अरविंद कहते हैं कि हमें इस योग में जगत की किसी वस्तु का त्याग नही करना है। राजनीति, उद्योग, समाज, कविता , साहित्य आदि सभी कार्य करते रहेंगे परंतु हमें उन्हें एक नई आत्मा, नया रूप देना होगा। इस प्रकार इस संयोग में किसी भी तरह का त्याग नहीं करना है परंतु चेतना की सच्ची अवस्था में रहकर सभी कार्य करने है। “निः संदेह डॉ खुशबू जांगलवा की पुस्तक महर्षि श्री अरविंद के जटिल दर्शन की सरल व्याख्या है।

पुस्तक : म. प्र. साहित्य अकादमी द्वारा प्रथम कृति अनुदान योजना के अंतर्गत चयनित
प्रकाशक : संदर्भ प्रकाशन, भोपाल

श्वेता नागर ( लेखिका)

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