धर्म संस्कृति : दुःख अपनी अज्ञानता और मोहांधता का ही परिणाम

आचार्यश्री विजयराजजी मसा ने कहा

मंगलम् सिटी के नवकार आराधना भवन में धर्मसभा

हरमुद्दा
रतलाम, 7 दिसंबर। मंगलम् सिटी के नवकार आराधना भवन में आयोजित धर्मसभा में शांत क्रांति संघ के आचार्यश्री विजयराजजी महाराज ने कहा कि रोगी, भोगी और वियोगी ये तीन दुःखी होते है। दुःख अपनी अज्ञानता और मोहांधता का ही परिणाम होता है। जब व्यक्ति दुःख की हाजरी लेने लगता है, तब वह बढ़ता जाता है।


आचार्यश्री ने दुःख मुक्ति के उपायों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उपेक्षा व नजर अंदाज करने वाले व्यक्ति अपने दुःखों को घटाते है और जो बार-बार दुःखों को गिनता है, गिनाता है ,वह अपने दुःखों को पुष्ट करता है। दुःख गिनने और गिनाने से पुष्ट होते है। इनकी पुष्टि और तुष्टि में मानव लगा रहता है, जबकि इनकी उपेक्षा और उदासीनता इनकी शक्ति को कमजोर करती है।

सुख नहीं दुख को गिनता है मनुष्य

आचार्यश्री ने कहा मानव को सुख ज्यादा है। कानों का सुख श्रवण शक्ति है। ऑंखों का सुख दर्शन शक्ति है। नाक का सुख गंध ग्रहण शक्ति और रसनेन्द्रिय का सुख स्वाद शक्ति है। ये सुख हर मानव को प्राप्त है। इन सुखों की और ध्यान न देकर मानव सिर्फ एक या दो दुःखों को गिनता रहता है और जहां-तहां अपने दुःखों को जिक्र करता रहता है। सुख ज्यादा मिले है, इस और उसका ध्यान नहीं रहता। कम दुःख ही उसे पीड़ित करते है।

सदैव सकारात्मक सोच के साथ जिए

आचार्यश्री ने कहा कि साधक सदैव प्राप्त सुखो की और ध्यान देते है, इसीलिए उन्हें छोटे-छोटे दुःखों की पीड़ा कभी नहीं सताती। वे सदैव सकारात्मक सोच के साथ जीते है। इसीलिए वे प्रसन्न रहते है। साधक ये मानते है कि सुख-दुःख में कर्मों के फल है। जैसे हमने कर्म किए है, वैसे ही फल आएंगे। मिर्ची खाना या मिश्री दोनों हमारे हाथ में है, मगर उनका फल हमारे हाथ में नहीं होता। इसी चिंतन से साधक सुख में रमण करते है। दुःख का विस्मरण ही सुख में रमणता प्रदान करता है। प्रवचन में बड़ी संख्या में लोगों ने उपस्थित रहकर श्रवण लाभ लिया।

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