विचार सरोकार : अपनी लक्ष्मण रेखा को कभी नहीं लांघना
⚫ सरोज शर्मा
आज के समय में पूरा वातावरण बदल गया है। पश्चिमीकरण हर तरफ नजर आ रहा है। तभी हमारी संस्कृति सभ्यता का ह्रास होता दिखाई दे रहा है। स्वच्छंदता बढ़ गई है। बहन बेटियों को रावण छल रहे हैं। रावण की कथा से एक बात तो सामने आती है। अधर्मी व्यक्ति कितना भी सुंदर हो, वह अधर्मी ही होता है। जैसे रावण सुंदर थे और धार्मिक कर्म भी करते थे। भगवान शिव के भक्त भी थे मगर अविश्वासी निकले। छलिया रूप बनाकर सीता का हरण किया। साधु वेश में आकर धोखा दिया।
आज समाज में वही हो रहा है। तिलक लगाकर कलावे बांधकर बेटियों को छला जा रहा है। उनका अपमान हो रहा है। मारी जा रही है। ना जाने कितने टुकड़ों में काटा जा रहा है यह सब स्वछंदता का ही परिणाम है। हम अपने माता-पिता की बात को नहीं सुनते और मनमाने ढंग से समाज में प्रेम के जाल में फंस जाते हैं। जब-जब हम अपनी मर्यादाओं को तोड़ेगें। हम अपनी लक्ष्मण रेखा से पार हो जाएंगे। लक्ष्मण रेखा चाहे संस्कृति की हो, समाज की हो, मर्यादा की हो अगर इसको लांघेंगे, तो हमारा हरण होगा ही। आप स्त्री हैं या पुरुष अपने सुरक्षित जीवन के लिए मर्यादाओं में रहना अनिवार्य है। अगर आप मर्यादा रूपी लक्ष्मण रेखा से बाहर आए तो हरण होगा ही। विशेष कर हमारी बहन बेटियों को अपने संस्कारों और मर्यादाओं का अवश्य ध्यान रखना चाहिए। हर जगह रावण घूम रहे हैं। ना जाने कौन सा रावण भेष धरकर हमारी मर्यादाओं का हरण कर ले और हम असुरक्षित हो जाएं।
मर्यादाओं को दिया है महत्व भारतीय संस्कृति में
हमारी भारतीय संस्कृति हर जगह पूजनीय है क्योंकि इसमें मर्यादाओं को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। मर्यादा का अर्थ है एक सुचारू रूप से समाज में चलना। बड़ों की बात को महत्व देना माता-पिता की बात को सुनना। अपनी मनमर्जी नहीं करना। जो कि बहुत महत्वपूर्ण है। धर्म को अपना स्वरूप बदलने की आवश्यकता नहीं है। राम जैसे वन गए थे, वैसे वापस आ गए मगर रावण को सीता जी का हरण करने के लिए भेष बदलना पड़ा, तब जाकर वह हरण कर पाए। इसी प्रकार आज समाज में सब जगह रावण भी चल रहे हैं। असावधानी से ही दुर्घटना होती है। अधर्मियों के गिरने की कोई सीमा नहीं है। खुद को ही बचाना है।
आज बहुत सी सूर्पनखा भी घूम रही हैं। रावण की बहन सूर्पनखा भी अपने भाई रावण के समान चरित्र वाली थी। उसने भी राम को कहा पत्नी छोड़ मुझे विवाह कर लो मगर राम चरित्रवान थे उन्होंने अपनी सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया। जैसे सीता जी ने राक्षस राज रावण का प्रेम स्वीकार नहीं किया वैसे राम ने भी राक्षसी का प्रेम स्वीकार नहीं किया अधर्मियों की कोई सीमा तथा मर्यादा नहीं होती। वह अपना मकसद पूरा करने के लिए 100 बार आपके समक्ष अच्छे बनेंगे लेकिन स्त्री हो या पुरुष हमें अपनी मर्यादाओं को रहना होगा। अपनी लक्ष्मण रेखा को नहीं लांघना।