धर्म संस्कृति : विद्यार्थियों ने की भारत माता की वन्दना, अद्भुत प्रस्तुतियों ने कर दिया अभिभूत
⚫ शिविर में सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति
यशपाल तंँवर
रतलाम, 7 दिसंबर। यदि किसी विद्यालय के छात्र-छात्राओं में शिक्षा के साथ हमारी संस्कृति और संस्कारों के बीज भी बो दिए जाए तो वे अध्यात्म और देशभक्ति के फूल बनकर अपनी सुगंध व सौन्दर्य से भारत माता की आराधना करने में जुट ही जाएंगे।
श्रीअरविंद मार्ग स्थित ओरो आश्रम में श्रीमातृ विद्या मंदिर के विद्यार्थियों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुतियों ने इस बात की पुष्टि कर दी। विद्यार्थियों की अद्भुत प्रस्तुतियों ने उपस्थितों को अभिभूत कर दिया।
सांस्कृतिक कार्यक्रम की चित्रमयी झलकियां
हृदय की गहराई को स्पर्श कर उन्हें अभिभूत कर
ओरो आश्रम में चल रहे स्वध्याय-साधना- सत्संग- समागम शिविर में विद्यार्थियों की सुंदर प्रस्तुतियों ने शिविरार्थियों और अभिभावकों के हृदय की गहराई को स्पर्श कर उन्हें अभिभूत कर दिया। कार्यक्रम में आनन्दमयि,चैतन्यमयि,सत्यमयि गीत पर नृत्य से लेकर सरस्वती वंदना और वन्देमातरम् तथा देशभक्ति का अलख जगाती लघु नाटिका की कलात्मक प्रस्तुतियों ने उपस्थित दर्शकों के मन-मस्तिष्क में भारत माता के प्रति कृतज्ञता के भाव जगा दिए । प्राचार्य लोकेन्द्र सिंह सिसौदिया ने सांस्कृतिक कार्यक्रमों की रुपरेखा प्रस्तुत की। शिक्षिका प्रियंका शिवहरे एवं दिव्या टांक ने संचालन किया। आभार राघवेन्द्र तंँवर ने माना।
श्रीमाँ हमारे साथ है
शिविर को सम्बोधित करते हुए वेद मर्मज्ञ डॉ. मुरलीधर चांदनीवाला ने कहा कि माताजी हमारे पीछे-पीछे चल रही है। उन्होंने कहा कि हम जो भी कार्य करें उसे आनन्द भाव के साथ करना चाहिए। ये भाव हमें पूर्णता की ओर लेकर जाता है। वेदों में प्रार्थनाएं सामूहिक है।
प्रथम कर्म बने योग
श्री अरविन्द एवं श्रीमाँ के आलोक में “पूर्णयोग” पर श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए सूरत से आए मुख्य वक्ता श्री कैवल्य स्मार्त ने कहा कि यदि योग करना है तो जीवन का प्रथम कर्म इसे बनाना होगा। हमें हमारी मंशा स्पष्ट करना होगी। हम सिर्फ प्रभु के लिए अभीप्सा करें। उनका ही चिन्तन करें, उनके लिए ही जिये और अपने आपको पूर्ण रूप से प्रभु को सौंप दें। जो भी कर्म करें उसे साधना में बदल दें।