धर्म संस्कृति : 46 साल में जैसा ना हुआ, वैसा रहा रतलाम चातुर्मास

आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. ने कहा

ऐतिहासिक चार्तुमास के बाद विदाई समारोह का आयोजन

सेठजी का बाजार स्थित आगमोद्धारक भवन से किया प्रथम विहार

हरमुद्दा
रतलाम, 10 दिसंबर। रतलाम में ऐतिहासिक चार्तुमास के बाद रविवार को आचार्य श्री विजय कुलबोधि सूरीश्वरजी म.सा. का विदाई समारोह हुआ| इसमें “रतलाम! तुझे सलाम” विषय पर अंतिम प्रवचन देते हुए आचार्यश्री ने कहा 46 साल में जैसा ना हुआ, वैसा रतलाम चातुर्मास हुआ है। आपके दिल मे मेँ हूं यह स्वाभाविक है , लेकिन मेरे दिल में रतलाम हमेशा रहेगा, यह याद रखियेगा। आचार्य श्री ने सेठजी का बाजार स्थित आगमोद्धारक भवन से विहार किया। 11 एवं 12 दिसम्बर को उनकी बिबड़ौद जैन तीर्थ में स्थिरता रहेगी।

सैलाना वालों की हवेली, मोहन टाकीज में सुबह आयोजित विदाई समारोह में श्री संघ के साथ विभिन्न संस्था एवं संगठनों द्वारा आचार्य श्री के शीघ्र रतलाम आने की विनती करते हुए उन्हें भावभीनी विदाई दी। विदाई समारोह के दौरान गीत संगीत एवं सुमधुर प्रभु भक्ति के साथ आचार्य श्री एवं साधु साध्वी भगवंत को सभी ने प्रणाम करते हुए आशीष लिया और विदाई दी। श्री देवसूर तपागच्छ चारथुई जैन श्रीसंघ गुजराती उपाश्रय, श्री ऋषभदेवजी केशरीमलजी जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढ़ी द्वारा आयोजित इस विदाई समारोह में हजारों की संख्या में श्रावक- श्राविकाएं उपस्थित रहे।

आचार्य श्री ने उन्हें सम्बोधित करते हुए भाग्य एवं सौभाग्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कुछ प्राप्त होना भाग्य है , जबकि उसका सदुपयोग करना सौभाग्य होता है। पावरफुल शरीर मिला , ये भाग्य और इसे सही कार्यो में लगाना सौभाग्य है। इसी प्रकार सम्पत्ति मिलना भाग्य है, लेकिन चैरिटी करना सौभाग्य होता है। आचार्य श्री ने सास-बहू का प्रसंग सुनाते हुए सबसे भाग्य को सौभाग्य में बदलने का आह्वान किया।

विदाई समारोह के पश्चात दोपहर 3.15 बजे सेठजी का बाजार स्थित आगमोद्धारक भवन से आचार्य श्री ने प्रथम विहार किया। इस दौरान सैंकड़ों श्रावक श्राविकाएं उपस्थित रहे। विहार यात्रा नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए सागोद रोड स्थित जैन दिवाकर हास्पिटल पहुंची।आचार्य श्री की निश्रा में 11 दिसंबर को बिबड़ौद जैन तीर्थ में ध्वज आरोहण समारोह होगा। 12 दिसंबर को उनकी स्थिरता यही रहेगी।

भव्य दीक्षा के साथ कई उपलब्धियों वाला रहा चातुर्मास

आचार्य श्री ने चातुर्मास सहित रतलाम में 6 माह का प्रवास किया। रतलाम में प्रवेश के साथ ही उनकी निश्रा में तप त्याग की गंगा प्रवाहित होना शुरू हो गई थी। चातुर्मास के पांच माह में सैलाना वालों की हवेली मोहन टॉकीज में लगातार प्रवचनों की धारा बही। आचार्य श्री की प्रेरणा से 650 वर्धमान तप के पारणे हुए | 1800 आयम्बिल, 1300 तेले, 600 बेले , 200 अठ्ठाई की तपस्याएं हुई। युवाओ के लिए 2500 की उपस्थिति में शिविर हुए। बाल संस्कार शिविर भी संपन्न हुए।

ऐतिहासिक चातुर्मास के दौरान सैकड़ो की संख्या में गुरु भक्तों द्वारा आयमबिल करने के साथ पाया डालकर धर्मलाभ लिया गया था। चातुर्मास के अंतिम दौर में भव्य दीक्षा हुई , इसमें नूतन दीक्षित मुनि श्री ज्ञानयोग विजय जी मसा ने संयम धारण किया।

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