नए वर्ष पर साहित्यकार रेणु अग्रवाल और डॉक्टर नीलम कौर की रचना : कैसे जश्न मनाऊँ ! स्वागत-24

हर साल दिसंबर जाता है
और हर साल जनवरी आता है
मैं अकसर सोचती हूँ कि
क्या नया बदल जाता है?

रेणु अग्रवाल

हर साल दिसंबर जाता है
और हर साल जनवरी आता है
मैं अकसर सोचती हूँ कि
क्या नया बदल जाता है?

क्या इस साल उन सभी
हाथों को रोजगार मिलेगा
जो घिस गए हैं नौकरी के
फॉर्म भरते- भरते

क्या इस साल कुछ ऐसा होगा
कि फिर से ना दोहराई जाए
समाज में कभी मणिपुर जैसी
कोई शर्मनाक घटना

क्या इस साल लोग जागेंगे
और मंदिर मस्जिद से अलग
हटकर किसी ऐसे रास्ते पर
चलेंगे जिससे होगा इस
समाज का भला

क्या इस साल युवा पीढ़ी
रुककर सोचेगी जो बढ़ रही है
आधुनिकता के मोह में फँसकर
पतन की राह पर

क्या इस साल बूढ़ी लाचार
आँखों को नहीं भेजा जाएगा
किसी वृद्धाश्रम में अंतिम
दिन गुजारने के लिए

क्या इस साल नहीं बरपाएगी
प्रकृति फिर से करोना और
सुनामी जैसे कोई प्राकृतिक कहर

क्या इस साल फिर से
गरीब भूखी और बेबस
जनता को वेबकूफ बनाकर
धर्म के नाम पर नहीं सेंकी
जाएँगी राजनीतिक रोटियाँ

क्या इस साल नहीं चढ़ेगी
फिर से किसी गरीब की
बेटी दहेज के नाम पर
मौत की वेदी पर

क्या इस बार औरतें
पहचानेंगी अपनी अस्मिता को
और करेंगी स्वयं उसकी रक्षा

क्या नहीं बहेंगी इस साल
जश्न के नाम पर क्लबों और
डिस्को में शराब और
शैंपेन की नदियाँ

क्या इस बार फिर से
नहीं किए जाएँगे विकास के
नाम पर खोखले वादे और
बड़ी-बड़ी बातें

अगर इन सबसे अलग
हटकर कुछ हो तो
सच में नये साल का
जश्न झूमकर मनाऊँ

स्वागत-24

डॉ. नीलम कौर

रुको जरा थम जाओ
पूरे बरस साथ चले हो
कुछ देर तो ठहर जाओ
माना के रात भारी है
जाने की पूरी तैयारी है
दिल को जरा संभाल लूं
जाने के तेरे ग़म बहुत है
मगर नाच-गा कर गम को जरा संवार लूँ

समेट तारे दामन में
रजनी भी तत्पर जाने को
मगर स्याह गेसू समेटने
बाकी है
बहती चाँदनी भोर के
उजाले से मिलनातुर
बेलाग बढ़ी जा रही
चाँद तू तो जरा थम जा
दिल अभी भरा नहीं
तेईस से।

माना है जो आया उसे
जाना ही पड़ेगा
आने वाला है जो आएगा ही,मगर इतनी क्या
जल्दी कि पल की
छलांग लगा भाग जाओ
नये का स्वागत तो कर
लो जरा, जाते-जाते
नाच-गाकर अपनी यादें
कुछ बना जाओ
आने वाला चौबीस है
स्वागत तो करते जाओ।

डॉ. नीलम कौर

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