शख्सियत : अधिकांश रचनाकारों के विषय भूमंडलीकरण से बहुत दूर
⚫ डॉ. सुधा गुप्ता ’अमृता’ का कहना
⚫ “कविता और गीत लेखन किसी भी काल में फैशन नहीं होकर सामाजिक विसंगतियों के विरोध में आवाज उठाने वाली एक जरूरी विधा रही है। यही बड़ा कारण है कि हिंदी साहित्य में काव्य रचना का जितना ऊंचा मुकाम है, उतना किसी अन्य विधा का नहीं।” ⚫
⚫ नरेंद्र गौड़
’हमारा देश भूमंडलीकरण के रंग में भले ही पूरी तरह रंगकर अंतरराष्ट्रीय हो गया हो, लेकिन देश के अधिकांश लेखकों की रचनाओं के विषय अभी तक ‘भूमंडलीकरण’ से बहुत दूर हैं। आज समय की मांग है, दूरगामी सोच की और खतरों को पहचानने की ताकि उनका चुनौतीपूर्ण मुकाबला किया जा सके। देश ही नहीं विश्व का भी राजनीतिक और सामाजिक ढ़ांचा इतनी तेजी के साथ बदल रहा है कि रचनाकार उसे व्यक्त नहीं कर पा रहे हैं।’
यह बात जानीमानी कवयित्री डॉ. सुधा गुप्ता ’अमृता’ ने चर्चा में कही। इनका मानना है कि “कविता और गीत लेखन किसी भी काल में फैशन नहीं होकर सामाजिक विसंगतियों के विरोध में आवाज उठाने वाली एक जरूरी विधा रही है। यही बड़ा कारण है कि हिंदी साहित्य में काव्य रचना का जितना ऊंचा मुकाम है, उतना किसी अन्य विधा का नहीं। कविता का उद्देश्य अब पाठकों को भावुक बनाकर रूलाना नहीं है, वरन् युग के यथार्थ को समझकर चलना ही एक बड़ी उपलब्धि है। आज कविता वास्तविकता के धरातल पर खड़ी है और अपने सामने आई चुनातियों का सामना कर रही है। इसलिए वह लोक मानस में व्यापक प्राण और प्रभाव डालती है।”
सुधाजी का परिचय
यहां उल्लेखनीय है कि सुधा गुप्ता गद्य और पद्य दोनों लिखती हैं। हालांकि गीत रचना के प्रति भी इनमें अतिरिक्त उत्साह है। आप मंच पर रचनापाठ की सिध्दहस्त कलाकार हैं और इसका इन्हें व्यापक अनुभव रहा है, लेकिन इन दिनों मंचीय कविता के क्षेत्र में जिस प्रकार की फूहड़ अराजकता आ रही है, उसे लेकर दुखी भी हैं। कथ्यपूर्ण ढ़ंग से इन्होंने अनेक गीतों की रचना की है, जिन्हें लय के साथ गाया भी जा सकता है।
स्व. जगदीशजी से मिली प्रेरणा
कटनी मध्यप्रदेश में जन्मी सुधाजी को लिखने की प्रेरणा अपने पति स्व. जगदीश गुप्त से मिली, लेकिन वर्ष 2021 में उनका कोरोना की वजह से असामयिक निधन हो गया जिसका गहरा प्रभाव सुधाजी की रचनाओं में आज भी देखा जा सकता है और वह अवसाद कभी भी इनकी रचनाओं से मुक्त नहीं होगा। यहां उल्लेखनीय है कि स्व. जगदीश भी जाने माने रचनाकार रहे। उनका नाम कविता, कहानी, लेख तथा बालगीतों की रचना के क्षेत्र में आदर के साथ लिया जाता है। उनका कविता संकलन ’शब्द सिर्फ कहते नहीं’ हिंदी साहित्य जगत में खासा चर्चित रहा है। इसके अलावा स्व. जगदीशजी की और भी बहुत सी रचनाएं हैं। उन्हें अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारों से भी अलंकृत किया जा चुका है और जाहिर है उनका असामयिक निधन हिंदी साहित्य की अपूरणीय क्षति है।
गायन और चित्रकला में पारंगत
सुधा गुप्ता एमए हिंदी साहित्य के अलावा हिंदी विशारद, बीएड संगीत प्रभाकर तथा ड्राइंग में डिप्लोमा भी कर चुकी हैं। आप अनेक वर्षांे तक शासकीय शिक्षिका रही है और इन दिनों स्वतंत्र रूप से लेखन में व्यस्त हैं। लेखन के अलावा आप गायन तथा चित्रकला के क्षेत्र की सिध्दहस्त कलाकार हैं। गीत, नवगीत, कहानी, लेख, समीक्षा, बालगीत तथा लघुकथा के क्षेत्र में आपका जाना पहचाना नाम है।
प्रकाशित रचनाएं
सुधा गुप्ता का गीत संकलन ’ धूप के पंख’, कविता संग्रह ’ बिना नेल पॉलिश वाली उंगलियां हिंदी साहित्य जगत में खासे चर्चित रहे हैं। इसके अलावा कहानी संकलन ’किरदार बालते हैं, बालगीत संकलन ’ताकि बची रहे हरियाली’, बालकथा संकलन ’चुलबुली पम्पी- शम्मी’, ’जंगल की एकता’ और शोध ग्रंथ ’राष्ट्रीय फलक पर स्वातंत्र्योत्तर बालकविता का अनुशीलन’ इनकी उल्लेखनीय कृतियां हैं।
पुरस्कार सम्मान
सुधा गुप्ता को अनेक सम्मान तथा पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इनमें प्रमुख हैं बाल कल्याण एवं बाल साहित्य शोध केंद्र भोपाल व्दारा ’ब्रजबिहारी टंडन सारस्वत सम्मान’ एवं ’विद्यादेवी भदोरिया बाल साहित्य सम्मान’ ’जानकी नेगी स्मृति बाल साहित्य सृजन सम्मान अल्मोड़ा’, हिंदी लेखिका संघ भोपाल व्दारा ’ब्रह्मदत्त तिवारी स्मृति सम्मान’, भक्त शिरोमणी मीरा राष्ट्रीय सम्मान, शब्द प्रवाह उज्जैन व्दारा ’शब्द भूषण सम्मान’, निर्दलीय भोपाल व्दारा ’राष्ट्रीय साहित्य साधना अलंकरण’, ’प्रेमलता नीलम गीत पुरस्कार भोपाल’, ’राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान भागलपुर’, बाल कल्याण संस्थान कानपुर व्दारा ’भगवती प्रसाद गुप्त स्मृति बाल साहित्य सम्मान’, ’विद्यावाचस्पति सम्मान भागलपुर’ के अलावा आप मध्यप्रदेश बाल कल्याण परिषद भोपाल तथा हिंदी लेखिका संघ भोपाल की आजीवन सदस्य भी हैं। यहां विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सुधाजी राष्ट्रपति सम्मान से पुरस्कृत शिक्षिका भी हैं।
सुधाजी की चुनिंदा रचनाएं
मौन
मौन! अभिमन्यु
चला भेदने
पीड़ाओं का व्यूह
यातनाओं की चाबुक कराहती
अभिलाषाओं की पीठ
घनघोर कौरवी नाद!
संवादों का अट्हास
जूझ रहा अकेला
चिंघाड़ते सबल हाथी
चारों तरफ शोर
दस्तक दे रही मौत
जूझ रहा वह मौन!
सत्य
वह नहीं पहनता कोई चोला
लोग उसे पहनाते हैं
हर तरह के लिबास
कीमती लिबासों को पहनकर
वह घबराता है
छटपटाता है
क्योंकि वह जानता है
मैं एक विदूषक की
भूमिका का निर्वाह करूंगा।
सांझ के लिए
तेज तपता है
सूरज
दुनिया के लिए
किंतु पिघलता है
सिर्फ सांझ के लिए।
संबंधों की रस्सियां
वातावरण जहरीला
जब से हुआ
शहर थरथराने लगा
अबोध अनब्याही बच्ची सा
सुख करवट बदलकर
सो रहा है
नहीं सुनता पास लेटे दुख की
सिसकियां
थाम लें
लम्बे सफर में
भावना की हथेलियां
टूटंे नहीं यह संकल्प ले लें
संबंधों की रस्सियां।
प्यास
मन जब होता है
उदास बैठ जाता है
नर्मदा के पास
खींच देता है
उसकी रेतीली देह पर
लकीर
लिख देता है प्यास।